लूणकरणसर (श्रेयांस बैद) तेरापंथ भवन में तेरा पंथ मेरा पंथ कार्यशाला का आयोजन किया गया उपस्थित उपासिका सरिता सामसुखा कोलकाता, सुनीता पुगलिया ने उद्बोधन देते हुए कहा कि धर्म की जड़ सदैव हरि रहती है धर्म को धारण करने की आवश्यकता है धर्म में बहुत शक्ति है धर्म में आत्मस्थत रहना चाहिए ।
अनंत समय से हम हैं निरंतर क्रम चलता आ रहा है धर्म की परिभाषा को समझने की आवश्यकता है त्याग,तपस्या, सामयिक साधु,साध्वी,श्रावक, श्राविकाएं का अनुक्रम है सभी को आत्मा के कल्याण की भावना से अपना दैनिक कार्य करना चाहिए।
जैन धर्म नवनीत है जो जितना पाना चाहे उतना ग्रहण करें क्योंकि समयकत्व का हेतु है।
गंदगी से अटी नहरों में छोड़ा जा रहा पानी, किसानों में रोष, कॉलोनियों में भी पानी घुसने का खतरा
साध्वी ललित कला ने कहा कि आचार्य भिक्षु के संघ की उपासक श्रेणी जैनत्व के प्रचार का सेतु है जैसे समुद्र अपनी मर्यादा नहीं लांघता वैसे ही तेरापंथ धर्म संघ मर्यादा की दृष्टि से सर्वोत्म है संघ में मर्यादा एवं व्यवस्था की मजबूती ही आगे बढ़ने को अग्रसर करती है उन्होंने मर्यादा की मौलिकता को सुदृढ़ रखा । इस दौरान सभा अध्यक्ष माल चंद नवलखा,विनोद दुगड़,प्रेम बैद,विमल दुगड़,सरिता चोपड़ा,पूजा सेठिया इत्यादि उपस्थित थे।




















