फारबिसगंज बिहार (श्रेयांस बैद) सूर्य षष्ठी (डाला छठ) पूजा की आगाज
आज से होगा नहाए-खाए के साथ छठ महापर्व का ब्रत पूजन प्रारंभ!
संवत् २०८२ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी शनिवार 25 अक्टूबर 2025
खबर ही खबर के लिए बता रहें हैं पण्डित अनन्त पाठक– – – – –
सूर्य को अर्घ्य देने और आराधना करने का पर्व डाला छठ का आगाज आज नहाए-खाए के साथ चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुआत हो जाएगी।
यह डाला छठ पर्व मुख्यत: भारत के पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड एवं नेपाल देस का लोक पर्व है। लेकिन अब यह पूरे भारत में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह लोक आस्था का महापर्व छठ चार दिनों का त्योहार है। इसमें साफ-सफाई पर खास ध्यान रखा जाता है। कहा जाता है कि इस पर्व में गलती की कोई जगह नहीं होती है। इस व्रत को करने के नियम इतने कठिन है कि इसे महापर्व के नाम से संबोधित किया जाता है।
पहला दिन नहाय-खाय:-
25 अक्टूबर 2025 शनिवार को है. इस दिन सूर्योदय सुबह 06: 28 बजे और सूर्योस्त शाम को 05:40 बजे पर होगा।
छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि से होती है. यह छठ पूजा का पहला दिन होता है, इस दिन नहाय खाय होता है इस दिवस पर पूरे घर की सफाई कर के उसे पवित्र बनाया जाता है। आज से छठ का व्रत रखने वाली महिलाएं नहाने के बाद भात, चने की दाल और लौकी की सब्जी खाएंगी। आज से ही वे बिस्तर पर लेटना बंद कर देंगी और जमीन पर चटाई बिछाकर लेटेंगी।
दूसरा दिन- लोहंडा और खरना:-
26 अक्टूबर 2025 रविवार को है. इस दिन सूर्योदय सुबह 06:28 बजे पर होगा और सूर्योस्त शाम को 05:40 बजे पर होगा
लोहंडा और खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है. यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है.
इस दिवस पर पूरा दिन निर्जल उपवास करना होता है। और शाम को पूजा के बाद भोजन ग्रहण करना होता है। इस अनुष्ठान को खरना भी कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पड़ोस के लोगों को भी बुलाया जाता है। प्रसाद में घी चुपड़ी रोटी, चावल की खीर बना सकते हैं।
तीसरा दिन- छठ पूजा (सन्ध्या अर्घ्य:):-
27 अक्टूबर 2025 सोमवार को है. इस दिन सूर्योदय 06:29 बजे पर होगा और सूर्यास्त 05:39 बजे पर होगा छठ पूजा के लिए षष्ठी तिथि का प्रारम्भ 26/27 अक्टूबर रविवार को रात्रि 02:20 बजे से हो रहा है, जो 27/28 अक्टूबर सोमवार को रात्रि 03:40 बजे तक है
छठ पूजा का मुख्य दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होता है. इस दिन ही छठ की विषेश पूजा होती है.
इस दिवस पर छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद में चावल के लड्डू, फल, और चावल रूपी साँचा प्रसाद में शामिल होता है। शाम के समय एक बाँस की टोकरी या सूप में अर्ध्य सामग्री सजा कर व्रती, सपरिवार अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य अर्पण करने घाट की और प्रयाण करता है, किसी तालाब या नदी किनारे व्रती द्वारा शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है इस दिवस पर रात्रि में नदी किनारे मेले जैसा मनोरम दृश्य सर्जित होता है।
चौथा दिन- सूर्योदय अर्घ्य:-
(पारण का दिन):- 28 अक्टूबर 2025 मंगलवार को होगा. इस दिन सूर्योदय सुबह 06:29 बजे होगा.
छठ पूजा का अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि होती है. इस दिन व्रत के अंतिम दिवस पर उदयमान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। जिस जगह पर पूर्व रात्री पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य दिया था, उसी जगह पर व्रती (व्रतधारी) इकट्ठा होते हैं। वहीं प्रसाद वितरण किया जाता है। और सम्पूर्ण विधि स्वच्छता के साथ पूर्ण की जाती है।
छठ पूजा में अर्घ्य देने का वैज्ञानिक महत्व एवं लाभ :-
सूरज की किरणों से शरीर को विटामिन डी मिलता है। इसीलिए सदियों से सूर्य नमस्कार को बहुत लाभकारी बताया गया है। वहीं, प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक सुबह की सूरज की रोशनी से मिलने वाले विटामिन डी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है और स्किन से जुड़ी सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं।यह शरीर और मन के शुद्धिकरण का तरीका है जो जैव रासायनिक परिवर्तन का नेतृत्व करता है।
शुद्धिकरण के द्वारा प्राणों के प्रभाव को नियंत्रित करने के साथ ही अधिक ऊर्जावान होना संभव है।
यह त्वचा की रुपरेखा में सुधार करता है, बेहतर दृष्टि विकसित करता है और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है।
छठ पूजा के भक्त शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में सुधार कर सकते हैं।
विभिन्न प्रकार के त्वचा सम्बन्धी रोगो को सुरक्षित सूरज की किरणों के माध्यम से ठीक किया जा सकता है।
यह श्वेत रक्त कणिकाओं की कार्यप्रणाली में सुधार करके रक्त की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है।
सौर ऊर्जा हार्मोन के स्राव को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करती है।
रोज सूर्य ध्यान शरीर और मन को आराम देता है। प्राणायाम, योगा और ध्यान क्रिया भी शरीर और मन को नियंत्रित करने के तरीके है।
सुर्य षष्ठी (छठ ) पूजन का पौराणिक मान्यता:-
(१) सूर्योपासना के इस महापर्व से कई पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। ।
मान्यता के अनुसार, षष्ठी देवी सूर्य देवता की बहन हैं। कहा जाता है कि षष्ठी माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने खुद को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ देवी के रूप में माना जाता है। कहा जाता है ये ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।
वहीं कुछ लोग कहते हैं कि पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है। बताया ये भी जाता है कि बच्चे के जन्म के छह दिन बाद भी इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इनकी प्रार्थना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घ आयु का आशीर्वाद मिलता है।
(२) मान्यता है की देव माता अदिति ने की थी छठ पूजा:-
एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
(३) पुराणों के अनुसार:-राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, ‘सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो।’ राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
(४) एक मान्यता के अनुसार, लंका पर विजय पाने के बाद रामचर की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के जब फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह परंपरा अब तक चली आ रही है।
(५) पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान संत बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
(६) महाभारत के अनुसार:-
जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडओं को राजपाट वापस मिल गए। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।
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छठ पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री:-
दौरी या डलिया सूप – पीतल या बांस का,नींबू,नारियल (पानी सहित), पान का पत्ता ,गन्ना पत्तो के साथ , शहद , सुपारी , सिंदूर , कपूर , शुद्ध घी , कुमकुम,शकरकंद ( गंजी) , हल्दी और अदरक का पौधा , नाशपाती व अन्य उपलब्ध फल , अक्षत (चावल के टुकड़े) , खजूर या ठेकुआ ,चन्दन , मिठाई इत्यादि।
क्या है पूजन विधि:-
छठ पूजा के लिए नदी या तालाब किनारे मिट्टी से सुशोभिता बनाई जाती है। फलों को सुपली या डलिया में 6, 12 या 24 की संख्या में रखें। ( छठ पूजा में ये 6 फल महत्वपूर्ण है, इसलिए पसंद है छठ मैय्या को) इसमें आप संतरा, अन्नास, गन्ना, सुथनी, केला, अमरूद, शरीफा, नारियल, साठी के चावल का चिउड़ा, ठेकुआ शामिल कर सकती हैं। मंगलवार को दूध, शहद, तिल और अन्य द्रव्य से डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दें। इसके बाद सुशोभिता की पूजा करें। मिट्टी की बनी कोसी में पूजा सामग्री रखकर उसपर चननी ताने। बुधवार की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन करें और प्रसाद सभी को बांटे।
अर्घ्य देने का तरीका:-
अस्ताचलगामी सूर्य को तीन बार अर्घ्य दिया जाता है। रात्रि जागरण के पश्चात उगते हुए सूर्य को इसी तरह अर्घ्य प्रदान किया जाता है। पति-पुत्र या ब्राह्मण अर्घ्य दिला सकते हैं। इनके न रहने पर व्रती महिलाएं खुद भी यह काम कर सकती हैं। इसके बाद वे गीले आंचल से ही अपने बच्चों के शरीर को पोंछती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उनके बच्चों को चर्म से संबंधित रोग नहीं होता।




















