स्कूलों के पास अत्यधिक रूप से प्रदेश में बिकने वाले कुरकुरे की शुद्धता पर सवालिया निशान
“फंसती है नन्ही जान”
कुरकुरे शब्द अटपटा लग सकता है पर बालकों के स्वास्थ्य पर चोट करता एक ऐसा सवालिया निशान है जो शुद्धता मानकों पर कितना खरा है उसका जवाब किसी के पास नहीं है ।
महानगर जयपुर सहित अनेक ऐसी फैक्ट्रियां है जिनके ब्रांड सेव समोसा से लेकर भूतिया तक हो सकते हैं जो अन्य राज्यों से भी प्रदेश के बिकने के लिए जगह तलाशते हैं ।
जितने ब्रांड उतने नाम “जितने केमिकल युक्त मसाले उतना ज्यादा बिकने वाला माल”। क्योंकि सब जीभ के चटखारे का खेल है जिसमें सबसे पहले फंसती है नन्ही जान ।
एक सर्वे के अनुसार इनमें बेहद उत्तेजक मसालों का इस्तेमाल होता है इतना ही नहीं खाते ही मुंह के अंदर का भाग फटना,पेट में अल्सर,पाचन तंत्र की खराबी, खाने के बाद आंतों पर चिपकना जिससे बचपन से आगे तक का हाजमा खराब होना ये सभी ऐसे सवाल है कि हम अभी से बच्चों का क्या परोस रहे हैं ।
कोई नहीं देख रहा ₹ 5 /- का “मायाजाल नाम में भी कोई अतिश्योक्ति नहीं क्योंकि है ही मायाजाल” ।
अनेक भ्रमित करने वाले नामों में जितनी पैकेट में सामग्री है उससे अधिक गैस भरी हुई है जो मानकों पे कितनी खरी उतरती है या बच्चों के खाने के पदार्थों में काली कमाई का सच साबित होती है।
कांग्रेस संगठन सृजन अभियान के प्रवेक्षक लिलोठिया श्री डूंगरगढ़ में
ये समय रहते नहीं देख पाए तो हो सकता है कि एक हादसा इस प्रकार का भी हो की अमुक बच्चों की कुरकुरे खाने से मृत्यु सुनिश्चित हो गई ।
राज्य में इस प्रकार के बिकने वाले पाउच जांच का विषय है कंज्यूमर कन्फेडरेशन ऑफ इंडिया सीसीआई के प्रदेश सचिव श्रेयांस बैद ने आवश्यक कार्यवाही हेतु खाद्य आयुक्त डॉ टी शुभमंगला से आग्रह किया है।




















