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पारंपरिक श्राद्ध में तकनीक की एंट्री: पुष्कर में वीडियो कॉलिंग से कर्मकांड, ऑनलाइन हुई दान-दक्षिणा

अजमेर : पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा भाव रखने का पर्व श्राद्ध पक्ष है. श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म और दान पुण्य किए जाते हैं. तीर्थराज गुरु पुष्कर में 12 माह ही पितरों की शांति और गति के लिए बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री आते रहते हैं, लेकिन श्राद्ध पक्ष में पुष्कर राज का महत्व और भी बढ़ जाता है. श्राद्ध पक्ष में राजस्थान से ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्राद्ध कर्म के लिए पुष्कर आ रहे हैं. खास बात यह है कि देश और विदेश में मौजूद हिन्दू जो पितृपक्ष को मानते हैं और श्राद्ध कर्म के लिए नहीं आ पा रहे हैं, वह भी घर से ही पुष्कर में अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म कर रहे हैं. श्राद्ध को श्रद्धा से किया जाता है. यही वजह है कि तकनीक का फायदा उठाते हुए पुष्कर में तीर्थ पुरोहितों से लोग श्राद्ध कर्म के लिए संपर्क कर रहे हैं. तीर्थ पुरोहित भी अपने जजमान को संकल्प दिलाकर श्राद्ध कर्म उनके नियमित कर रहे हैं. इस प्रक्रिया में दूर बैठे जजमान वीडियो कॉलिंग के माध्यम से अपनी मौजूदगी दे रहे हैं.

पुष्कर को सभी तीर्थ का गुरु माना गया है. पुष्कर में मौजूद ब्रह्म सरोवर का जल जगत पिता ब्रह्मा के कमंडल के जल के समान माना जाता है. यहां सरोवर के जल को नारायण रूप में पूजा जाता है. तीर्थराज गुरु में श्राद्ध कर्म करने से पितरों को शांति मिलती है. यही वजह है कि सदियों से तीर्थ यात्री पुष्कर में जगत पिता ब्रह्मा के दर्शन के साथ-साथ यहां अपने पितरों को सद्गति मिलने की कामना लेकर श्राद्ध कर्म करते हैं, ताकि पितृ उनसे खुश रहे और परिवार में सुख शांति बनी रहे. श्राद्ध पक्ष में पुष्कर के पवित्र सरोवर के 52 घाटों पर यजमान की श्रद्धा के अनुसार पिंडदान, नारायण बलि, श्रद्धा और दान पुण्य हो रहे हैं. हालांकि, इस बार सरोवर के घाट डूबे हुए हैं, ऐसे में घाटों के ऊपर तबरियों में श्राद्ध कर्म करवाए जा रहे हैं.

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घर बैठे भी जजमान करवा रहे हैं श्राद्ध कर्म : तीर्थराज गुरु पुष्कर में श्राद्ध कर्म के लिए तीर्थ यात्री काफी संख्या में आ रहे हैं, लेकिन जो लोग अपने पितरों के श्राद्ध कर्म के लिए यहां नहीं आ पा रहे हैं, वह अपने घर में रहकर ही पुष्कर के पवित्र सरोवर में अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म कर रहे हैं. इस तकनीकी युग में यह भी सम्भव हो गया है. हिन्दू सनातन धर्म के लोग देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी रहते हैं. वह वहां रहते हुए भी वह अपनी धर्म और संस्कृति से जुड़े हुए हैं. यही वजह है कि पुष्कर के महत्व को जानते हुए वह तीर्थ पुरोहितों से संपर्क कर अपने पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान, नारायण बलि के अलावा दान पुण्य भी कर रहे हैं.

वीडियो कॉलिंग से जजमान को दिलाते हैं संकल्प : गणगौर घाट पर तीर्थ पुरोहित पंडित राहुल पाराशर बताते हैं कि बीती पूर्णिमा से लेकर आगामी अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष है. श्राद्ध पक्ष पितरों के लिए है. इसमें पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म करवाए जाते हैं. पुष्कर में तीर्थ पुरोहित देश विदेश में बैठे हिंदू सनातनी धर्म को मानने वाले जजमानों के कहने पर उनके पितरों के लिए श्राद्ध कर्म कर रहे हैं. यदि जजमान नहीं आ पाते हैं तो उन्हें वीडियो कॉलिंग के माध्यम से श्राद्ध कर्म में शामिल करवाया जाता है. कई जजमान अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं, इसलिए वीडियो कॉलिंग से संकल्प लेते हैं और अपने काम में जुट जाते हैं. वहीं, कई जजमान श्राद्ध कर्म के दौरान पूरे समय वीडियो कॉलिंग के जरिए जुड़े रहते हैं. कई जजमान अपने परिवार के साथ वीडियो कॉलिंग से जुड़ते हैं.

दान और दक्षिणा भी ऑनलाइन : पंडित पाराशर ने बताया कि जुड़ने वाले श्रद्धालु दान और दक्षिणा भी ऑनलाइन ही करते हैं. ब्राह्मणों को भोजन करवाने के लिए फूड पैकेट का खर्च भी ऑनलाइन ही जजमान वहन करते हैं. पुष्कर आने वाले श्रद्धालु जब प्रथम बार सरोवर के किनारे आते हैं तब तीर्थ पुरोहितों से उनका संपर्क होता है. तीर्थ पुरोहित उन्हें पुष्कर के महत्व और इतिहास के बारे में जानकारी देते हैं. साथ ही यहां श्राद्ध कर्म के महत्व को भी उन्हें बताया जाता है. इसके बाद वह तीर्थ पुरोहितों से जुड़ जाते हैं और श्राद्ध कर्म के लिए पुष्कर आते रहते हैं. यदि नहीं आ पाते हैं तो वीडियो कॉलिंग के माध्यम से जुड़कर अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करते हैं.

सोशल मीडिया पेज से श्राद्ध कर्म के लिए संपर्क : गौ घाट पर तीर्थ पुरोहित पंडित रोशन पाराशर बताते हैं कि तीर्थ पुरोहितों के सोशल मीडिया पर अपने पेज होते हैं, जिन्हें देखकर देश-विदेश से श्रद्धालु उनसे संपर्क करते हैं. कई श्रद्धालु नियमित रूप से श्राद्ध पक्ष में आते हैं, लेकिन काम की व्यस्तता से यदि वह नहीं आ पाते हैं तो वीडियो कॉलिंग के माध्यम से वह श्राद्ध क्रम में जुड़ते हैं. उन्हें सबसे पहले संकल्प कराया जाता है. जजमान के कहे अनुसार ही संकल्प होता है. इसके बाद जजमान की इच्छा अनुसार पिंडदान, तर्पण, नारायण बलि, पितृ शांति के लिए पूजा की जाती है. इसके अलावा ब्राह्मणों के लिए भोजन, दान, दक्षिणा आदि का खर्च भी जजमान ऑनलाइन ही देते हैं.

श्रद्धा होना जरूरी : वराह घाट में प्रधान पंडित रविकांत शर्मा बताते हैं कि कार्य की व्यस्तता के कारण श्राद्ध कर्म के लिए भी कई बार समय नहीं मिल पाता है. यदि जजमान सही गोत्र बताते हैं तो गोत्र के साथ श्राद्ध कर्म किया जाता है तो वह निश्चित रूप से फलीभूत होता है. केवल ब्राह्मण को श्राद्ध कर्म के लिए पैसा दे दिया, लेकिन श्राद्ध कर्म करवाने वाले व्यक्ति के मन में श्रद्धा नहीं है तो श्राद्ध कर्म फलीभूत नहीं होता है. जीते जी यदि अपने जेयष्ठ का मान सम्मान नहीं करते हैं तो उनके जाने के बाद उनके निमित्त श्राद्ध कर्म करवाने का कोई फायदा नहीं है. इंसान के लिए सबसे पहले देवी देवता उसके माता-पिता ही होते हैं, इसलिए जीते जी उनकी खूब सेवा करें, तभी यह कार्य फलीभूत होते हैं. जो लोग अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म नहीं करते हैं उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ना झोलनी होती है. उनके कार्य में अड़चन आती है. घर गृहस्थी में तनाव रहता है. रोजगार नहीं चलता. मन बेचैन रहता है. यह पितरों के कोप के कारण होता है.

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