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कुपोषण से मुक्ति की ओर डूंगरपुर, पिछले कुछ सालों में कुपोषण के प्रतिशत में आई कमी

डूंगरपुर : लंबे समय से कुपोषण का दंश झेल रहा आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिला अब कुपोषण से मुक्ति की ओर बढ़ रहा है. डूंगरपुर जिले में वर्ष 2019 से वर्ष 2021 तक 7.6 फीसदी बच्चे कुपोषित की श्रेणी में थे. वहीं, जुलाई 2025 तक ये घटकर अब 1.04 फीसदी रह गया है, जिन्हें विशेष पोषण आहार और इलाज के जरिए कुपोषण से बाहर निकालने के प्रयास किया जा रहा है.

महिला एवं बाल विकास विभाग के उपनिदेशक पंकज द्विवेदी ने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण एनएफएचएस-5 के अनुसार 2019 से 2021 के बीच डूंगरपुर जिले में 5 साल से कम उम्र के अति कुपोषित बच्चों की संख्या 7 हजार 600 यानि 7.6 प्रतिशत थी. इन बच्चों में 8 पर्सेंट से कम हीमोग्लोबिन था, जिससे बच्चों का विकास रुक गया था. मार्च 2024 में यह आंकड़ा घटकर 2.22 प्रतिशत यानी 2 हजार 86 बच्चे रह गए. महिला एवं बाल विकास विभाग, स्वास्थ विभाग ने पोषण आहार और इलाज से कई बच्चे कुपोषण से बाहर हो गए.

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मार्च 2025 में यह आंकड़ा 1.09 प्रतिशत 1 हजार 80 बच्चे रह गया. 4 महीने बाद अगस्त 2025 में 1.04 प्रतिशत 956 बच्चे कुपोषण की श्रेणी में रह गए. ये आंकड़े पोषण ट्रैकर ऐप से सामने आए हैं. महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने बताया कि जिले में 98 हजार बच्चों का वजन पोषण ट्रैकर ऐप में लिया गया है. इसमें 956 बच्चे जुलाई माह में कुपोषित पाए गए. इससे साफ है कि जिले में कुपोषण का आंकड़ा कम हो रहा है.

8 ग्राम से कम हीमोग्लोबिन : आदिवासी इलाकों में अधिकतर बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. कई बच्चों में हीमोग्लोबिन की मात्रा 8 ग्राम से भी कम है. कुछ में यह 3 से 4 ग्राम तक है. ऐसे बच्चे अतिकुपोषित की श्रेणी में आते हैं. इन बच्चों को पोषाहार और दूध दिया जा रहा है. कई बच्चों का इलाज अस्पताल में भी किया जा रहा है. कुपोषण से बच्चों में कई बीमारियां हो जाती है. उनका शारीरिक और मानसिक विकास रुक जाता है.

शिशु रोग विशेषज्ञों के अनुसार वर्ष 2008 से लेकर 2024 तक 5 हजार 863 कुपोषित बच्चों का लोग इलाज कराने आए. वहीं, जुलाई 2025 तक 312 कुपोषित बच्चों का इलाज किया. महिला एवं बाल विकास विभाग से वर्ष 2018 से पोषण अभियान की शुरुआत की गई. इसके तहत आंगनवाड़ी केंद्रों और पोषण ट्रैकर ऐप से निगरानी की जा रही है. जिले के सभी 2 हजार 117 आंगनवाड़ी केंद्रों पर मातृ और शिशु स्वास्थ्य की निगरानी के लिए उपकरण लगाए गए हैं. गर्भवती महिलाओं को समय समय पर परामर्श और जानकारी दी जा रही है. इससे बच्चों में कुपोषण को समय पर पहचान हो रही है.

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