जयपुर (श्रेयांस बैद) आज ही यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने गए थे और बरदान दिया था तभी से इसका नाम यम द्वतीया(भातृ द्वतीया) पड़ा।
भैया द्वितीया,यम द्वितिया एवं चित्रगुप्त पूजन विशेष
संवत् २०८१ कार्तिक शुक्ल द्वितीया 23 अक्टूबर 2025 गुरुवार
खबर ही खबर के पाठकों को बता रहे हैं पण्डित अनन्त पाठक :-भाई बहन के प्रेम का प्रतीक यम द्वितीया (भैया दूज) का पावन व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन यमुना स्नान, यम पूजन और बहन के घर भाई का भोजन तिलकादि कृत्य विहित हैं। इस मंगलमय दिवस में व्रती बहनों के लिए प्रातः काल, स्नानादि से निवृत्त हो कर, अक्षत-पुष्पादि से निर्मित अष्ट दल कमल पर गणेशादि की स्थापना कर के, यम, यमुना, चित्रगुप्त तथा यम दूतों का पूजन कर, यमुना स्तवन एवं निम्न मंत्र से यमराज की स्तुति करना श्रेयस्कर है ।
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज। पाहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते।।
निम्न मंत्र से यमुना जी की प्रार्थना करेंः
यमस्वसर्नमस्तेऽस्तु यमुने लोकपूजिते। वरदा भव मे नित्यं सूर्यपुत्री नमोऽस्तुते।।
निम्न मंत्र से चित्रगुप्त की प्रार्थना करेंः मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेन्तं च महाबलम्। लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।
इसके बाद, शंख, ताम्र पात्र, या अंजलि में जल, पुष्प और गंधाक्षत ले कर, यमराज के निमित्त निम्न मंत्र से अघ्र्य दें:
एह्ययेहि मार्तंडज पाशहस्त यमांतकालोकधरामरेश। भ्रातृद्वितीयाकृत देवपूजां गृहाण चाघ्र्यं भगवन्नमस्ते।।
तत्पश्चात् बहन भाई को सुंदर एवं शुभ सुखासन पर बिठा कर उसके हाथ-पैर धुलाए। गंधादि से उसका पूजन कर। मस्तक पर तिलक लगा कर अक्षत लगावे और विभिन्न प्रकार के पेय, लेह्य, चोष्य, षट्रस व्यंजन परोस कर, प्रेम से अभिनंदन करते हुए, सुस्वादु भोजन ग्रहण करने को कहे एवं अपने कर कमलों से भाई को भोजन करावे। भोजनोपरांत, हाथ धो कर, भाई बहन को, यथासामथ्र्य, अन्न-वस्त्र-आभूषण द्रव्यादि दे कर, उसका शुभाशीष प्राप्त करें। इस व्रत से भाई को आयुष्य लाभ होता है एवं बहन को सौभाग्य सुख की प्राप्ति होती है।
भारतीय संस्कृति में पिता ब्रह्मा की, भाई इंद्र की, माता साक्षात् पृथ्वी की, अतिथि धर्म की, अभ्यागत अग्नि की, आचार्य वेद की मूर्ति, सभी प्राणियों को अपनी आत्मा की तथा बहन को दया की मूर्ति माना गया है। अतः शुभाशीर्वादपूर्वक बहन के हाथ से भोजन करना आयुवर्धक तथा आरोग्यकारक है। शुद्ध स्नेह-प्रेम-अनुराग के प्रतीक इस पावन व्रतोत्सव को बड़े उत्साह और उल्लास से मनाना चाहिए।
पुराणों के अनुसार :- मरीचि नंदन ब्रह्मर्षि कश्यप की अदिति नाम वाली पत्नी से, विवस्वान् सहित, 12 पुत्रों का जन्म हुआ। यही बारह आदित्य कहलाये। विवस्वान् (सूर्य) की पत्नी महाभाग्यवती संज्ञा के गर्भ से श्राद्धदेव (वैवस्वत) मनु एवं यम-यमी का जोड़ा पैदा हुआ। यही यमराज एवं यमुना नाम से विख्यात हुए। संज्ञा ने ही, घोड़ी का रूप धारण कर के, भगवान सूर्य के द्वारा, भू लोक में दोनों अश्विनी कुमारों को जन्म दिया। विवस्वान् की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से शनैश्चर और सार्वीण मनु नाम के दो पुत्र तथा तपती नाम की कन्या का जन्म हुआ। इधर छाया का यम तथा यमुना से विमाता सा व्यवहार होने लगा। इससे खिन्न हो कर यम ने एक नयी नगरी यमपुरी बसायी और वहां पापियों को दंड देने का कार्य संपादित करने लगे। तब यमुना भी गोलोक चली आयीं, जो कृष्णावतार में कृष्ण की प्राण प्रिया बनीं। यम-यमी में अतिशय प्रेम था। परंतु यमराज यम लोक की शासन व्यवस्था में इतने व्यस्त रहते कि अपनी बहन यमुना जी के घर ही न जा पाते। एक बार यम यमुना जी से मिलने यमुना के घर गए। बहन यमुना ने अपने भाई यम को आये देख कर स्वागत किया और भोजन कराया यमराज बहुत प्रसन्न हुए और बोले: बहन ! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं । तुम मुझसे जो भी वरदान मांगना चाहो, मांग लो। यमुना ने कहा: भैया ! आज के दिन जो मुझमें स्नान करे, उसे यम लोक न जाना पड़े। यमराज ने कहा: बहन ! ऐसा ही होगा। उस दिन कार्तिक (दामोदर) मास की शुक्ल पक्ष द्वितीया थी। इसी लिए इस तिथि को यमुना स्नान का विशेष महत्व है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमुना ने अपने घर अपने भाई को, स्वागत-सत्कार सहित, भोजन कराया एवं आनंदोत्सव मनाया। यम लोक में भी बहन-भाई के इस मिलनोत्सव का सभी यम लोकवासियों ने हर्षोल्लास मनाया। इसी लिए यह तिथि यम द्वितीया तथा भैया दूज के नाम से विख्यात हुई। अतः इस दिन भाई को, अपने घर भोजन न कर, बहन के घर जा कर, प्रेमपूर्वक, उसके हाथ से बना हुआ सुस्वादु भोजन करना चाहिए। इससे बल, आयुस्य, पुष्टता आदि की वृद्धि होती है। भाई के मस्तक पर तिलक करना चाहिए। इसके बदले भाई बहन को स्वर्णालंकार, वस्त्र, अन्न, द्रव्यादि से संतुष्ट करे। यदि अपनी सगी बहन न हो, तो पिता के भाई की कन्या, मामा की पुत्री, मौसी, अथवा बुआ की बेटियां भी बहन के समान हैं। इनके हाथ का बना भोजन करें। तिलक लगवाएं। जो भाई यम द्वितीया को बहन के हाथ का भोजन करता है, यमुना जी में बहन के साथ स्नान करता है, उसे, धन, यश, आयुष्य एवं अपरिमित सुख के साथ, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष चारों पुरुषार्थों की सिद्धि प्राप्त होती है।
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चित्रगुप्त पूजा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है।
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार चित्रगुप्त महाराज मनुष्य के पापों का लेखा जोखा करते हैं।
इस दिन चित्रगुप्त महाराज की पूजा अर्चना करने से नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है और सभी पापों का नाश होता है।
पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को चित्रगुप्त पूजा की जाती है। इस बार चित्रगुप्त पूजा का पावन पर्व 23 अक्टूबर 2025 गुरुवार को है।
चित्रगुप्त पूजा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं के लेखपाल चित्रगुप्त महाराज मनुष्य के पापों का लेखा जोखा करते हैं। लेखन कार्य से भगवान चित्रगुप्त का जुड़ाव होने के कारण इस दिन कलम, दवात और बहीखातों की भी पूजा की जाती है
कैसे हुई चित्रगुप्त महाराज की उत्पत्ति:-
स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार चित्रगुप्त महाराज को देवलोक में धर्म का अधिकारी भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान चित्रगुप्त जी की उत्पत्ति सृष्टिकर्ता बह्मा जी की काया से हुई। सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये। इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया। इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। यमराज के पास मृत्यु एवं दण्ड देने का कार्य अधिक होने के कारण सही से नही हो पा रहा था। ऐसे में यमदेव ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना कर एक योग्य मंत्री की मांग की, जो उनके लेखे जोखे का काम संभाल सके। तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद बैशाख शुक्ल सप्तमी को (अन्य कथानुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया) एक पुरूष उत्पन्न हुआ। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा।
इनकी दो शादिया हुई, पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा/नंदनी इनसे ४ पुत्र हुए जो भानू, विभानू, विश्वभानू और वीर्यभानू कहलाए। दूसरी पत्नी एरावती/शोभावति ऋषि कन्या थी, इनसे ८ पुत्र हुए जो चारु, चितचारु, मतिभान, सुचारु, चारुण, हिमवान, चित्र और अतिन्द्रिय कहलाए।
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है।
वेदों और पुराणों के अनुसार श्री धर्मराज / यमराज के दरबार में चित्रगुप्त मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले लेखापाल या एकाउंटेंट बताए गये हैं। आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रुप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते हैं अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं एवं इन्हीं के आधार पर जीवों के पारलोक व पुनर्जन्म का निर्णय चित्रगुप्त के बताए आंकड़ों के अनुसार श्री यमराज करते हैं। विज्ञान ने यह भी सिद्ध किया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं । इसे ही हजारों बर्षों पूर्व हमारे वेदों में लिखा गया हैंं। जिस प्रकार शनि देव सृष्टि के प्रथम दण्डाधिकारी हैं चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम लेखापाल हैं। मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक का निर्णय लेने का अधिकार यमराज के पास है। अर्थात किस को स्वर्ग मिलेगा और कौन नर्क मेंं जाएगा? इस बात का निर्धारण भगवान धर्मराज/ यमराज चित्रगुप्त जी के द्वारा दिये गये आंकड़ों के आधार पर ही किया जाता है। चित्रगुप्त जी भारत
[आर्यावर्त] के कायस्थ कुल के इष्ट देवता हैं। मान्यताओं के अनुसार कायस्थों को चित्रगुप्त का इष्टदेव बताया जाता हैंं।
वहीं एक दूसरी कथा के अनुसार चित्रगुप्त महाराज की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार समुद्र मंथन से जिन 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी, उनमें से चित्रगुप्त महाराज की उत्पत्ति हुई।
पूजन वा टीका मुहूर्त:-
इस बार चित्रगुप्त पूजा का पावन पर्व 23 अक्टूबर 2025 गुरुवार को है।
पंचांग के अनुसार 22 अक्टूब 2025 बुधवार को रात्रि मे 06 बजकर 22 मिनट से द्वितीया तिथि प्रारंभ हो जाएगी और 23 अक्टूबर गुरुवार को रात्रि मे 08 बजकर 27 मिनट पर समाप्त होगी।
पूजन वा टीका का शुभ मुहूर्त :-
दिन मे 10:23 से 13:05 ,तक शुभ मुहूर्त है




















