बीकानेर/ पूनरासर (श्रेयांस बैद)
संवत् २०८२ आश्विन शुक्ल व्रत पूर्णिमा सोमवार 06 अक्टूबर 2025
स्नान दान पूर्णिमा मंगलवार 0 7 अक्टूबर 2025
( व्रत पूर्णिमा तथा खीर के लिए 06 अक्टूवर सोमवार को है। )
शारदीय नवरात्र के बाद आने वाले शरद पूर्णिमा के धार्मिक महत्व से तो हम सभी परिचित ही होंगे, इसी को जागृति पूर्णिमा या कुमार पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है I कुछ रात्रिओं का बहुत महत्व होता है जैसे नवरात्री ,शिवरात्रि ,पूनम की रात्रि आदि इनमे चंद्रमा के नीचे बैठ कर जप व् त्राटक करने को महत्व दिया गया है। ये जो हम हिन्दुओं के शरद पूर्णिमा,जन्माष्टमी राधाष्टमी आदि पर्व हैं इन दिनों मे ज्यादा लोगों से मेल मिलाप की बजाये सिर्फ अपनी ध्यान व् जप साधना पर जोर दिया जाना चाहिए।
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार धवल चांदनी में मां लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण के लिए आती हैं। शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि के बाद मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर धरती के मनोहर दृश्य का आनंद लेती हैं।साथ ही माता यह भी देखती हैं कि कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को कोजागरा भी कहा जाता है। कोजागराका शाब्दिक अर्थ है कौन जाग रहा है। मान्यता है कि जो इस रात में जगकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर कृपा होती है। शरद पूर्णिमा के विषय में ज्योतिषीय मत है कि जो इस रात जगकर लक्ष्मी की उपासना करता है उनकी कुण्डली में धन योग नहीं भी होने पर माता उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं।— कार्तिक मास का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। पूरे माह पूजा-पाठ और स्नान-परिक्रमा का दौर चलता है।— पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों संग महारास रचाया था। इसलिए इसे ‘रास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।— शरद पूर्णिमा को दिन में 10 बजे पीपल के सात परिक्रमा करनी चाहिए इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है।— शरद पूर्णिमा को ध्वल चांदनी में जप-तप करने से कई रोगों से छुटकारा मिलता है।
इन दिनों में ग्रह नक्षत्र के हिसाब से वातावरण में एक अध्यात्मिक तरंगे मौजूद होती हैं। जिस से सात्विक व सकारात्मक विचार व मस्तिष्क प्रफुलित होता है इसलिए इसका फायदा उठाना चाहिए। शरद पूर्णिमा की रात्रि चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होती है और उसकी उज्जवल किरणें पेय एवं खाद्य पदार्थों में पड़ती हैं तो उसे खाने वाला व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। उसका शरीर पुष्ट होता है। चंद्रमा ही सब वनस्पतों को रस देकर पुष्ट करता है।
भगवान ने भी कहा है,’पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।’
‘रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं।’ (गीताः15.13)
धर्मशास्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार देवी-देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल भी इसी दिन खिलता है।कृष्ण भगवान ने की थी महारास लीलाशरद पूर्णिमा को चंद्रमा पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता है, इसीलिए श्रीकृष्ण ने महारास लीला के लिए इस रात्रि को चुना था। इस रात चंद्रमाकी किरणों से अमृत बरसता है और मां लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह रात्रि स्वास्थ्य व सकारात्मकता प्रदान करनेवाली मानी जाती है। मन इन्द्रियों का निग्रह कर अपनी शुद्ध अवस्था में आ जाता है। मन निर्मल एवं शांत हो जाता है, तब आत्मसूर्य का प्रकाश मनरूपी चन्द्रमा पर प्रकाशित होने लगता है
रामायण मंडल सांगानेर के दस दिवसीय अखण्ड रामायण पाठ सम्पन्न
आज हम आपको इस रात के सेहत से जुड़े महत्व को स्पष्ट करने जा रहे हैं,आप जानते होंगे की शरद ऋतु के प्रारम्भ में दिन थोड़े गर्म और रातें शीतल हो जाया करती हैं I आयुर्वेद अनुसार यह पित्त दोष के प्रकोप का काल माना जाता है और मधुर तिक्त कषाय रस पित्त दोष का शमन करते हैं।
आपने शरद पूर्णिमा की रात अक्सर खीर बनाने के महत्व को सुना होगा।
*शरद पूर्णिमा की रात को क्यों करते हैं खीर का सेवन, ये है इसका रहस्यशरद पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता है, इसीलिए श्रीकृष्ण ने महारास लीला के लिए इस रात्रि को चुना था। इस रात चंद्रमाकी किरणों से अमृत बरसता है और मां लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं।वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह रात्रि स्वास्थ्य व सकारात्मकता प्रदान करनेवाली मानी जाती है।
आयुर्वेद में शरद पूर्णिमा इस पूर्णिमा पर दूध और चावल मिश्रित खीर पर चन्द्रमा की किरणों को गिरने के लिए रख देते हैं। चन्द्रमा तत्व एवं दूध पदार्थ समान ऊर्जा धर्म होने के कारण दूध अपने में चन्द्रमा की किरणों को अवशोषित कर लेता है।मान्यता के अनुसार उसमें अमृत वर्षा हो जाती है और खीर को खाकर अमृतपानका संस्कार पूर्ण करते हैं।
शरद पूर्णिमा के अवशर निरोगी खीर बनाने की विधि:-
शरद पूर्णिमा को देसी गाय के दूध में दशमूल क्वाथ,सौंठ,काली मिर्च,वासा,अर्जुन की छाल चूर्ण,तालिश पत्र चूर्ण,वंशलोचन,बड़ी इलायची,पिप्पली इन सबको आवश्यक मात्रा में मिश्री मिलाकर पकायें और खीर बना लें I खीर में ऊपर से शहद और तुलसी पत्र मिला दें ,अब इस खीर को ताम्बे के साफ़ बर्तन में रातभर पूर्णिमा की चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे ऊपर से जालीनुमा ढक्कन से ढक कर छोड़ दें और अपने घर की छत पर बैठ कर चंद्रमा को अर्घ देकर,अब इस खीर को रात्रि जागरण कर रहे दमे के रोगी को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त (4-6 बजे प्रातः) सेवन कराएं I
इससे रोगी को सांस और कफ दोष के कारण होने वाली तकलीफों में काफी लाभ मिलता है I रात्रि जागरण के महत्व के कारण ही इसे जागृति पूर्णिमा भी कहा जाता है ,इसका एक कारण रात्रि में स्वाभाविक कफ के प्रकोप को जागरण से कम करना हैI इस खीर को मधुमेह से पीड़ित रोगी भी ले सकते हैं, बस इसमें मिश्री की जगह प्राकृतिक स्वीटनर स्टीविया की पत्तियों को मिला दें I
उक्त खीर को स्वस्थ व्यक्ति भी सेवन कर सकते हैं ,बल्कि इस पूरे महीने मात्रा अनुसार सेवन करने साइनो साईटीस जैसे उर्ध्वजत्रुगत (ई.एन.टी.) से सम्बंधित समस्याओं में भी लाभ मिलता है Iकई आयुर्वेदिक चिकित्सक शरद पूर्णिमा की रात दमे के रोगियों को रात्रि जागरण के साथ कर्णवेधन भी करते हैं ,जो वैज्ञानिक रूप सांस के अवरोध को दूर करता है I तो बस शरद पूर्णिमा को पूनम की चांदनी का सेहत के परिप्रेक्ष्य में पूरा लाभ उठाएं बस ध्यान रहे दिन में सोने को अपथ्य माना गया है।
विषेश नोट:- इस बार व्रत पूर्णिमा तथा खीर के लिए 06 अक्टूवर सोमवार को को ही है।




















