पाप आचरण से आत्मा की रक्षा करना धर्म है- मुनि श्री कमल कुमार
गंगाशहर (श्रेयांस बैद )। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा गंगाशहर द्वारा आचार्य श्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्द्धी समारोह के तहत आयोजित “दया : एक विश्लेषण ” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनि श्री कमल कुमार जी स्वामी ने कहा कि आचार्य श्री भिक्षु के पहले दया का मतलब केवल जीवों को बचाना था।
आचार्य श्री भिक्षु ने कहा कि पाप आचरण से आत्मा की रक्षा करना दया है। मुनि श्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु ने बताया कि जीव जीवे तो दया नही , मरे तो हिंसा मत जाण। मारण वाला ने हिंसा कहीं, ते नही मारण दया ते गुणखान।।
मुनि श्री ने कहा कि जीव जीता है वह अहिंसा या दया नही है। कोई मरता है वह हिंसा नहीं है। मारने की प्रवृत्ति हिंसा है और मारने की प्रवृत्ति का संयम करना अहिंसा है। कुछ लोग कहते हैं मरते जीव को बचाना धर्म है आचार्य भिक्षु ने कहा धर्म का संबंध जीवन या मृत्यु से नहीं है उसका संबंध संयम से है । धर्म त्याग में है, भोग में नहीं है। धर्म दया में है , हिंसा में नहीं है। जीव अपने आयुष्य के बल पर जीता है वह दया नहीं है। जीव अपने आयुष्य के बल पर मरता है वह हिंसा नहीं है। मारना हिंसा है। नहीं मारना दया है ।
लौकिक और आध्यात्मिक धर्म एक नहीं है। मुनि श्री कमल कुमार जी ने कहा कि पाप आचरण से आत्मा की रक्षा करना ही दया है। आचार्य भिक्षु के दया के सिद्धांत का बहुत विरोध हुआ लेकिन आचार्य भिक्षु सत्य पर अटल रहे भगवान महावीर की वाणी के द्वारा लोगों को प्रतिबोध देते रहे जिससे आज लोगआचार्य भिक्षु के सिद्धांतों को अपने जीवन और व्यवहार में उतार रहे हैं । आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों को सब लोग मान्य कर रहे हैं। मुनिश्री ने कहा कि सामायिक करना सबसे बड़ी दया है । सामायिक करने से छ:काय के जीवों की हिंसा रुक जाती है । इसलिए मनुष्य मात्र को सामायिक अवश्य करनी चाहिए । समायिक करने से आत्मा के प्रति दया होगी।
धन से धर्म नहीं होता है, पैसों से कभी दया नहीं होने वाली है। असंयमी को संयमी बनाओ , अज्ञानी को ज्ञानी बनाओं, यही सबसे बड़ी दया है। अच्छा वातावरण बनाना हमारे हाथ में है।
जिण मारग री नींव दया पर, खोजी हुवें ते पावें।
जो हिंसा मांहें धर्म हुवें तो,
जल मथीयां घी आवें।।
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जिन शासन की नींव दया पर टिकी हुई है। उसे गवेषक आदमी ही पा सकता है। यदि हिंसा में धर्म हो तो जल मथने पर घी निकल आए।
मुनि श्री ने कहा कि हम अपनी विवेक चेतना को जगाये। एवं समझे कि हिंसा से कभी हिंसा समाप्त नही होने वाली है। जहाँ दया है वहाँ अहिंसा है।




















