जयपुर श्रेयांस बैद….युगादि तिथि है अक्षय नवमी, आंवला नवमी ।
अक्षय नवमी आज भक्त नंगे पांव करेंगे श्री अयोध्या मे चौदह कोसी परिक्रमा।
संवत् २०८२ कार्तिक शुक्ल नवमी गुरुवार 30 अक्टूबर 2025 ।।
चौदह कोसी परिक्रमा नवमी तिथि प्रारंभ होने से प्रारंभ होती है नवमी तिथि 30 अक्टूवर गुरुवार को प्रातः 04:54 पर लगेगी इसके बाद परिक्रमा प्रारम्भ हो जाएगी।
अयोध्या मथुरा माया, काशी कांची ह्यवंतिका।
एता: पुण्यतमा: प्रोक्ता: पुरीणामुतामोत्तमा:॥
खबर ही खबर के पाठकों के लिए बता रहें हैं पंडित अनंत पाठक:- शास्त्रों के अनुसार आज के ही दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी। इसीलिए अक्षय नवमी तिथि को युगादि तिथि भी कहा जाता है।
दूसरी कथा मे अक्षय नवमी के विषय में कहा जाता है कि इस दिन ही त्रेता युग का आरम्भ हुआ था।
द्वापर युग का आरंभ अक्षय नवमी से माना गया है.अक्षय नवमी का अक्षय तृतीया के बराबर बताया जाता है
अक्षय नवमी को श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने से पहले मथुरा-वृंदावन मे तीन वनों की परिक्रमा कर कंस के अत्याचारों के विरुद्ध जनता को जगाया था और अगले दिन कंस का वध कर साबित कर दिया कि सत्य अक्षय होता है। इस वजह से अक्षय नवमी पर लाखों भक्त अयोध्या,मथुरा-वृदांवन की परिक्रमा भी करते हैं।
इसे कहीं कहीं कुष्मांडी नवमी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि देवी कुष्माण्डा इसी दिन प्रकट हुई थीं ।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमी के दिन भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक नामक दानव को मारा था।
कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा गया है ।
कहा जाता है कि इसी दिन भगवान सूर्य ने देवी दुर्गा की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और अकूत धन संपत्ति का वरदान प्राप्त किया था जो कभी समाप्त न हो अतः ऐसा माना जाता है कि इस दिन प्राप्त किया कोई भी पुण्य कर्मो का कभी क्षय नहीं होता है और वह निरंतर बढता ही रहता है
भारतवर्ष के पश्चिम बंगाल में देवी जगददात्री की पूजा इस दिन की जाती है।अक्षय नवमी की पूजा संतान प्राप्ति, सुख-समृद्धि के लिए की जाती है।
इस तिथि के विषय में भगवान कहते है अक्षय नवमी मे जो भी पुण्य और उत्तम कर्म किये जाते हैं उससे प्राप्त पुण्य कभी नष्ट नहीं होते, यही कारण है कि इसे नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा गया है।
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एक बार मा लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आई. तो मां लक्ष्मी के मन में एक साथ भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने की इच्छा हुई. मां लक्ष्मी ने मन में सोचा कि तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को तो उन्होंने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर उसकी पूजा की मा लक्ष्मी की पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए तब महालक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और शिव को भोजन कराया और उसके उपरांत स्वयं भोजन करा. जिस दिन मा लक्ष्मी ने भगवान विष्णु और भगवान शिव को भोजन कराया उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी थी इसलिये इस दिन से ही आंवले के वृक्ष की पूजा तथा आंवले के वृक्ष नीचे भोजन का प्रारंभ हुआ।
घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा, दानादि करने की भी परंपरा है अथवा गमले में आंवले का पौधा लगाकर घर में यह पूजा करनी चाहिए।
आज के दिन एक पका हुआ कुम्हड़ा (कद्दू) लेकर उसके अंदर रत्न, सोना, चांदी या रुपए आदि –
रखकर निम्न संकल्प करें-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्यादीनामुक्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये।
-इसके बाद योग्य ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कद्दू दे दें और यह प्रार्थना करें-
कूष्णाण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्णा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।
-पितरों की शांति के लिए कंबल आदि ऊनी कपड़े भी योग्य ब्राह्मण को देना चाहिए।




















