जयपुर श्रेयांस बैद
संवत् २०८२ कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी परि अमावस्या 20 अक्टूवर 2025 सोमवार को दीपावली मनाई जाएगी।
(पूजन मुहूर्त,समाग्री एवं विधि)
खबर ही खबर को बता रहे हैं पंडित अनंत पाठक :-
पूजन मुहूर्त:-
प्रदोष काल मे पूजन मुहूर्त :-
सायं 16 :46 से 18 :46 तक प्रदोष काल रहेगा. इसे प्रदोष काल का समय कहा जाता है प्रदोष काल में सबसे उतम रहता है
चोघडिया मे पूजन मूहूर्त :-
लाभ चौघडिया 14 :38 से 16:04 तक उत्तम
अमृत चोघडिया 16:19 से 17:29 तक उत्तम
चर चोघडिया 17: 29 से 19:04 तकउत्तम
लग्न मे पूजन मुहूर्त:-
कुंभ लग्न (स्थिर ) सांय- 14:17 से 15:48 तक उत्तम
मीन लग्न (द्विस्वभाव) सायं 15:48 से 17:16 तक उत्तम
बृष लग्न(स्थिर) शांय- 18:55 से 20:52 तक – अति उत्तम
मिथुन लग्न (द्विस्वभाव) रात्रि- 20:52 से 23:05 तक – उत्तम
सिंह लग्न(स्थिर) रात्रि 01:23 से 03 :37 तक – अति उत्तम
कन्या लग्न(द्विस्वभाव) रात्रि- 03:37 से 05:50 तक – उत्तम
विषेश नोट:- महालक्ष्मी पूजन में अमावस्या तिथि, प्रदोषकाल, शुभ लग्न ( वृष, सिंह) व शुभ,अमृत, चर चौघडिय़ां विशेष महत्व रखते हैं। महालक्ष्मी पूजन सायंकाल प्रदोषकाल में करना चाहिए।
प्रदोष काल समय को दिपावली पूजन के लिये शुभ मुहूर्त के रुप में प्रयोग किया जाता है. प्रदोष काल में भी स्थिर लग्न समय सबसे उतम रहता है।
पूजन सामग्री:-
श्री गणेश लक्ष्मी कुबेर की मूर्ति वस्त्र आसन सहित
बही बसना कुवेर की थैली
कौड़ी, एकाक्षी नारियल, धातु के सिक्के
चौकी,चौकी पर बिछाने का वश्त्र लाल सूती या रेशमी
कलश ढक्कन सहित 1 (ढक्कन चावल से भरा हुआ)
कलश हेतु आम का पल्लव
नारियल कंलश के लिए 1
कलावा, रोली, रक्त चंदन, सिंदूर, पिसी हल्दी,अक्षत,
सुपारी 7 लौंग 7 इलायची 7 कमल गट्टे,11
माजीठ, धनिया, गुड़, हल्दी गांठ 5,
इत्र,अगरबत्ती, कुमकुम,रूई
धान का लावा, शकर की कुल्हिआ
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद,शकर) गंगाजल
घी,फल, बताशे, मिठाईयां,
खुले फूल, फूल माला पान के पत्ते 11
5 या 7 या 11या 21 दीपक
पूजा में बैठने हेतु आसन
थाली लोटा कटोरी चम्मच
आरती की थाली
पुजन विधी:-
साफ चौकी पर वश्त्र बिछाकर जिस स्थान पर गणेश एवं लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करनी हो वहां कुछ चावल रखें। इस स्थान पर क्रमश: गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति को रखें। अगर कुबेर, सरस्वती एवं काली माता की मूर्ति हो तो उसे भी रखें। लक्ष्मी माता की पूर्ण प्रसन्नता हेतु भगवान विष्णु की मूर्ति लक्ष्मी माता के बायीं ओर रखकर पूजा करनी चाहिए।
आसन बिछाकर गणपति एवं लक्ष्मी की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं। इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें- “ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥” इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें – ऊं केशवाय नम: ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें- ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए। अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें चन्दनम् महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।
निम्न मंत्र से अखण्ड दीप प्रज्वलित करें
शुभं करोतु कल्याणम् आयुआरोग्यं धनसंपदः ।
शत्रु बुद्धि विनाशाय दीप ज्योतिर्नमस्तु ते।।
हाथ मे फूल चावल लेकर निम्न मंत्र से स्वस्तिवाचन करें।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः । अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह ॥ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा – सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥ शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम् ।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥ अदितिर्द्यौ रदितिरन्तरिक्ष मदितिर्माता स पिता स पुत्रः । विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ।।
द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ।।
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु । शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः ॥ सुशान्तिर्भवतु ।
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः । उमा महेश्वराभ्यां नमः। वाणीहिरण्य गर्भाभ्यां नमः । शचीपुरन्दराभ्यां नमः । मातृ-पितृ-चरणकमलेभ्यो नमः । इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः । वास्तुदेवताभ्यो नमः । स्थानदेवताभ्यो नमः । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः ।
ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः
दीपावली पूजन हेतु दाहिने हाथ मे फल पुष्प अक्षत जल दक्षिणा लेकर निम्न मंत्र से संकल्प करें।
संकल्प:-ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो ऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैक देशे (बहराइच) नगरे (पुण्य) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : २०८२ तमेऽब्दे कालयुक्त नाम संवत्सरे सूर्य दक्षिणायने हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे चतुर्दश्यां परि अमावास्याम तिथौ चंद्र वासरे हस्त नक्षत्रे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकल पाप क्षय पूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल वाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञात कायिक वाचिक मानसिक सकल पाप निवृत्ति पूर्वकं अस्मिन व्यपारे उत्तम लाभ चिरकाल व्यापार स्थिर लक्ष्मी प्राप्तये श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थं महालक्ष्मी पूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदड्त्वेन गौरी गणपत्यादि पूजनं च करिष्ये।
गौरी गणपति पूजन:-
हाथ में पुष्प लेकर गौरी गणपति का निम्न मंत्र से ध्यान करे।
एह्येहि हेरम्ब महेशपुत्र ! समस्त विघ्नौघ विनाश दक्ष !।
माङ्गल्य पूजा प्रथमं प्रधानं गृहाण पूजां भगवन् ! नमस्ते।।
हेमाद्रि तनयां देवीं वरदां शङ्कर प्रियाम्।
लम्बोदरस्य जननीं गौरीं आवहयामि ।।
आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। इतना कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें।
अर्घा में जल लेकर बोलें- एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:। रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं। गणेश जी को वस्त्र पहनाएं। इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:
इसके बाद हाथ में फूल लेकरप्रार्थना करें
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
शरणागतदीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ।।
इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।
कलश पूजन:-
घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें। कलश के गले में मोली लपेटें। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आह्वान करें। ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)
इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार वरूण देवता की पूजा करें।
इसके बाद हाथ में फूल लेकरप्रार्थना करें
ॐ नमो नमस्ते स्फटिक प्रभाय सुश्वेतहाराय सुमंगलाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ॥
ॐ अपां पतये वरुणाय नमः॥
नवग्रह पूजन:-
इसके बाद हाथ में फूल लेकर नवग्रह का आवाहन ध्यान करें
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ॥
ऊँ भूर्भुवः स्वः सूर्यादिनवग्रहा देवाः इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)
इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार नवग्रह की पूजा करें।
प्रार्थना
इसके बाद हाथ में फूल लेकरप्रार्थना करें
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मङ्गलं मङ्गलः
सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्रः सुखं शं शनिः ।
राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्योन्नतिं
नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहाः
महालक्ष्मी पूजन:-
इसके बाद प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें।
ध्यानम् :
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्म पत्रा यताक्षि गम्भीरावर्तनाभिस्तन भरनमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ।
या लक्ष्मी र्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता ॥
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।
( पुष्प अर्पित करें।)
आह्वान :
ॐ अक्षस्त्रक् परशुं गदेषु कुलिशं पद्मं धनुः कण्डिकां ।
दण्डं शक्तिमसिञ्च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।
शूलं पाशसुदर्शनं च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां ।
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ।।
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम् ।
सर्व देवमयीमीशां लक्ष्मीमावाहयाम्यहम्।।
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ॥
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।
( आह्वान के लिए पुष्प अर्पित करें।)
आसन :
तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम् ।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ अश्र्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आसनं समर्पयामि ।
( पुष्प अर्पित करें।)
पाद्य :
गंगादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम् ।
पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते ॥
ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।
( पाद्य अर्पित करें।)
अर्घ्य :
अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम् ।
अर्घ्यं गृहाणमद्यतं महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्यनीमीं शरणं प्रपद्ये-अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि ।
( चन्दन मिश्रित जल अर्घ्यपात्र से देवी के हाथों में दें।)
आचमन :
सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्मविष्णवादिभिः स्तुता ।
ददाम्याचमनं तस्यै महालक्ष्म्यै मनोहरम् ।।
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु
या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः
ॐ महालक्ष्म्यै नमःआचमनीयं जलं समर्पयामि ।
स्नान :
मन्दाकिन्याः समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः ।
स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, स्नानं समर्पयामि ।
( स्नानीय जल अर्पित करें।)
स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
(‘ ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ बोलकर आचमन हेतु जल दें।)
पयः गोदुग्ध स्नान: –
ॐ पयः पृथ्वियां पय औषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः । पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥
कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परमं ।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः नमः पयः स्नानं समर्पयामि ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः,पयः स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
दधिस्नान:-
ॐदधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः ।
सुरभि नो मुखाकरत्प्राण आयूषि तारिषत् ॥
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः,नमःदधिस्नानं समर्पयामि ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दधिः स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।
घृतस्नान –
ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रियो घृतम्वस्य धाम ।
अनुष्वधमावह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि
हव्यम् ॥
नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् ।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः,घृत स्नानं समर्पयामि ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, घृत स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
मधु स्नान:-
ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः ।
माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥ मधु नक्तमुतोषसो
मधुमत्पार्थिवरजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ।
पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः,मधुस्नानं समर्पयामि ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मधुः स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।
शर्करा स्नान:-
ॐ अपारसमुद्वयससूर्यै सन्तसमाहितम् ।
अपारसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥
इक्षुरससमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम् ।
मलापहारिकां द्विव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् । ॐ महालक्ष्म्यै नमः शर्करास्नानं समर्पयामि ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः,शर्करा स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।
पंचामृत स्नान :
( दूध, दही, घी शकर एवं शहद मिलाकर पंचामृत बनाएँ व निम्न मंत्र से स्नान कराएँ।)
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम् ।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ पंच नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः ।
सरवस्ती तु पंञ्चधा सो देशेऽभवत्-सरित् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
गन्धोदक स्नान्
मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम् ।
चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धोदक स्नानं समर्पयामि ।
शुद्धोदक स्नान :
( गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
आचमन :
ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ से आचमन कराएँ।
वस्त्र :
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम् ।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ॥
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, वस्त्रं समर्पयामि।
( वस्त्र अर्पित करें, आचमनीय जल दें।)
ॐ महालक्ष्म्यै नमः वश्त्रान्ते आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
उप वश्त्रम् :-
कञ्चुकीमुपवश्त्रं च नानारत्नैः समान्वितम् ।
गृहाण त्वं मया दत्तं मङ्गले जगदीश्वरि ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि।
( उपवस्त्र अर्पित करें, आचमनीय जल दें।)
ॐ महालक्ष्म्यै नमः उपवश्त्रान्ते आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
यज्ञोपवीत :
ॐ तस्मादअकूवा अजायंत ये के चोभयादतः ।
गावोह यज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥
ॐ यज्ञोपवितं परमं वस्त्रं प्रजापतयेः त्सहजं पुरस्तात ॥
आयुष्यम अग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तुतेजः ।
ॐ गणेश महालक्ष्म्यै नमः ।
यज्ञोपवितं समर्पयामि ।
मधुपर्कम्:-
ॐ कपिलं दधि कुन्देन्दुधवलं मधुसंयुतम्।
स्वर्णपात्र स्थितं देवि! मधुपर्कं गृहाण भोः।।
कांस्ये कांस्येन पिहितो दधिमध्वाज्य संयुतः ।
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः मधुपर्कं समर्पयामि मधुपर्कान्ते आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
आभूषण:-
ॐ स्वभावसुन्दराङ्गायै नानादेवाश्रये शुभे!।
भूषणानि विचित्राणि कल्पयाम्यमरार्चिते!।।
रत्न कंक्णवैधूर्यमुक्ताहारादिकानि च ।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भो ।।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः नानाविधानि कुण्डल कटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि।
गन्ध :
ॐ श्रीखण्डागरुकर्पूरमृगनाभिसमन्वितम्।
विलेपनं गृहाणाशु नमोऽस्तु भक्तवत्सले!।।
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।
विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्युपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धं समर्पयामि ।
( केसर मिश्रित चन्दन अर्पित करें।)
रक्त चंदन:-
रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम् ।
मया दत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः रक्त चन्दनं समर्पयामि ।
सिंदूर:-
सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूर तिलकप्रिये।
भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातप्रमियः पतयन्ति यह्वाः।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सिन्दूरं समर्पयामि ।
कुमकुम:-
कुम्कुमं कामदं दिव्यं कुम्कुमं कामरूपिणम् ।
अखण्डकाम सोभाग्यं कुम्कुमं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः कुम्कुमं समर्पयामि ।
हरिद्राचूर्ण :-
ॐ हरिद्रा रचिते देवि ! सुख सौभाग्य दायिनी।
तस्मात त्वाम पूज्याम यत्र सुखम शान्तिम प्रयच्छ में ॥
काजल –
ॐ चक्षुर्भ्याम कज्जलम रम्यम सुभगे शान्ति कारकम ।
कर्पूज्योति समुत्पन्नम गृहाण परमेश्वरि॥
पुष्पसार:-(इत्र)
तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।
मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः सुगन्धित तैलं पुषपसारं च समर्पयामि ।
अक्षत :
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः ।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अक्षतान् समर्पयामि ।
( कुंकुमाक्त अक्षत चढ़ाएँ।)
पुष्पमाला :-
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो ।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नास्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि ।
( लाल कमल के पुष्प तथा पुष्पमालाओं से अलंकृत करें।)
दुर्वा :-
विष्ण्वादि सर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनम् ।
क्षीरसागर सम्भूते दुर्वां स्वीकुरु सर्वदा ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमःदुर्वाङ्गकुरन् समर्पयामि ।
अंग पूजा:-
ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि। ऊं चंचलायै नम: जानुनी पूजयामि । ऊं कमलायै नम: कटिं पूजयामि । ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि। ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि । ऊ विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थलं पूजयामि । ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि । ऊँ पद्मननायै नमः मुखं पूजयामि । ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि। ऊँ श्री लक्ष्म्यै नमः सर्वाङ्गं पूजयामि।
अष्ट सिद्धि पूजन:-
पूर्वादिक्रम से आठों दिशाओं में अष्टसिद्धि की पूजा करें
ऊं अणिम्ने नम:(पूर्वे) ओं महिम्ने नम:(अग्नि कोणे) ऊं गरिम्णे नम:(दक्षिणे) ओं लघिम्ने नम:(नैर्ऋत्ये) ऊं प्राप्त्यै नम:(पश्चिमे) ऊं प्राकाम्यै नम:(वायव्यै) ऊं ईशितायै नम:(उत्तरे) ऊँ वशितायै नम:(ऐशान्याम्)।
अष्ट लक्ष्मी पूजन:-
पूर्वादिक्रम से अष्ट लक्ष्मी पूजनकरें
ॐ आद्दलक्ष्मै नमः। ॐ विधालक्ष्मै नमः। ॐ सौभाग्यलक्ष्मै नमः। ॐ अमृतलक्ष्मै नमः। ॐ कामलक्ष्मै नमः। ॐ सत्यलक्ष्मै नमः। ॐ भोगलक्ष्मै नमः। ॐ योगलक्ष्मै नमः
धूप :
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः ।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि ।
( धूप आघ्रापित करें।)
दीप :
कार्पास वर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम् ।
तमो नाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ओ
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दीपं दर्शयामि ।
( दीपक दिखाकर हाथ धो लें।)
नैवेद्य :
( मालपुए सहित पंचमिष्ठान्ना व सूखे मेवे।)
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्य समन्वितम् ।
षड्रसैन्वितं दिव्यं लक्ष्िम देवि नमोऽस्तु ते ॥
ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् ॥
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ।
बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें :-
मध्ये पानीयम्, उत्तरापोशनार्र्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि ।
( नैवेद्य निवेदित कर पुनः हस्तप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें।)
करोद्वर्तन:-
चन्दनं मलयोद्भुतं कस्तूर्यादि समन्वितम्।
करोद्वर्तनकं देवि गृहाण परमेश्वरी।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः करोद्वर्तनकं चन्दनं समर्पयामि।
आचमन :
शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरण सुवासितम् ।
आचम्यतां जलं ह्येतत् प्रसीद परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः,आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
( आचमन के लिए जल दें।)
ऋतुफल:-
फलेन फलितं सर्वं त्रैलोकयं सचराचरम् ।
तसमात् फलप्रदानेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमःअखण्ड ऋतुफलं समर्पयाम ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ऋतुफलान्ते आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
ताम्बूल पूंगीफल:-
पुंगीफल महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम ।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
ऊँ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः,मुखवासार्थे ताम्बूलं ं समर्पयामि ।
दक्षिणा :
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि ।
नीराजन आरती :
चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम् ।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्तया गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि ।
( जल छोड़ें व हाथ धोएँ।)
प्रदक्षिणा:-
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च ।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रक्षिणां समर्पयामि ।
– विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना:-
सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
र्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्।
परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।।
भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।।
ऊं महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।
– प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।
समर्पण :-हाथ में जल लेकर
कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीतताम्, न मम’ ।
( हाथ का जल छोड़ दें।)
देहलीविनायक पूजन:-
दुकान या ऑफिस में दीवारों पर ऊं श्रीगणेशाय नम:, स्वस्तिक चिह्न, शुभ-लाभ सिंदूर से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर ऊं देहलीविनायकाय नम: इस नाम मंत्र द्वारा गंध-पुष्पादि से पूजा करें।
श्रीमहाकाली (दवात) पूजन:-
– स्याहीयुक्त दवात (स्याही की बोतल) को महालक्ष्मी के सामने फूल तथा चावल के ऊपर रखकर उस पर सिंदूर से स्वस्तिक बना दें तथा मौली लपेट दें।
निम्न मंत्र से आवाहन ध्यान करें।
ॐ मसि त्वं लेखनीयुक्ता चित्रगुप्ताशयस्थिता।
सदक्षराणां पत्रे च लेख्यं कुरु सदा मम।।
या मया प्रकृतिः शक्तिर्चण्डमुण्डविमर्दिनी।
सा पूज्या सर्वदेवै ह्यस्माकं वरदा भव।।
ॐ श्री महाकाल्यै नमः। इस नाम मंत्र से गंध-फूल आदि पंचोपचारों से या षोडशोपचारों से दवात तथा भगवती महाकाली की पूजा करें पूजन कर नीचे लिखी प्रार्थना करें।
ॐ या कालिका रोगहरा सुवन्द्या वैश्यैः समस्तैर्व्यवहारदक्षैः।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा देवमाता मयि सौख्यदात्री।।
कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ।।
ऊं श्री महाकाल्यै नम:
लेखनी पूजन:-
– लेखनी (कलम) पर मौली बांधकर सामने रख लें और निम्न मंत्र से ध्यान आवाहन करें
ॐ कृष्णानने! द्विर्जिी! च चित्रगुप्तकरस्थिते!।
सदक्षराणां पत्रे च लेख्यं कुरु सदा मम।।
लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।
लोकानाञ्च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् ।
ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः । इस नाम मंत्र से गंध-फूल आदि पंचोपचारों से या षोडशोपचारों से गन्ध, पुष्प, अक्षत,मङ्गलसूत्र आदि से र्लेखनी का पूजन कर नीचे लिखी प्रार्थना करें।
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्युयाद्यात:।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव।।
ऊं लेखनीस्थायै देव्यै नम:
बहीखाता पूजन:-
– बहीखाता पर रोली या केसर युक्त चंदन से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं एवं थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा,करञ्जा ५, कौड़ी, चावल, दूर्वा और कुछ रुपए रखकर उससे सरस्वती का पूजन करें। सर्वप्रथम सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करें-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा।।
ॐ पञ्जिके सर्वलोकानां निधिरूपेण वर्तसे ।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि व्यवहारस्य सिद्धये ।।
ऊं वीणापुस्तकधारिण्यै नमः
श्री सरस्वत्यै नम: इस नाम मंत्र से गंध-फूल आदि पंचोपचारों से या षोडशोपचारों से गन्ध, पुष्प, अक्षत आदि से सरस्वती जी की पूजन कर नीचे लिखी प्रार्थना करें।
ॐ शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणापुस्तक धारिणीमभयदां जाड्यान्ध कारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
ॐ शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदाऽस्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात्।।
ॐ धनं धान्यं पशून्देहि भाग्यं भगवति देहि मे।
व्यवहारे निधिं देहि गृहे पुत्रांस्तथैव च ।।
इस प्रकार प्रार्थना कर फिर द्रव्य बांधने वाली थैली में स्वस्तिक लिखकर उसमें हल्दी ५ गाँठ, करञ्जा ५, अक्षत, दूब, द्रव्य रखकर उसी में लक्ष्मी को भी रखकर यह मंत्र पढ़कर भण्डार में रख दे
कुवेर पूजन :-
– तिजोरी अथवा रुपए रखे जाने वाले संदूक के ऊपर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और फिर भगवान कुबेर का आह्वान करें-
ॐ कुविदं गवयमन्तो यवचिद्यथा दान्त्यनुपूर्वं वियूथ इह हैषां कृणुहि भोजनानि ये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति ।
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।
– आह्वान के बाद ऊं कुबेराय नम: इस नाम मंत्र से गंध, फूल आदि से पूजन कर अंत में इस प्रकार प्रार्थना करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।
ऊं कुबेराय नम: आवाहयामि ।
इसके पश्चात पूर्व में महालक्ष्मी के साथ पूजित थैली (हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, कौड़ी द्रव्य,दूर्वादि से युक्त) तिजोरी में रखकर कुबेर एवं महालक्ष्मी को प्रणाम करें।
ॐ आहूतासि मया देवि पूजितासि यथाविधि।
अद्य प्रभृति मातस्त्वं तिष्ठात्रैव यथारुचि ।।
ईश्वरि कमले देवि शरणं च भवानघे।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं नित्यं चात्र स्थिरा भव ।।
रूपं देहि यशो देहि भाग्यमायुर्ददस्मपदाम् ।
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।
ॐ महालक्ष्मि नमस्तुभ्यं प्रसन्ना भव मङ्गले
स्वर्णवित्तादि रूपेण मद्गृहे त्वं चिरं वस।
मम व्यापारे वृद्धिपूर्वकं लक्ष्मि सुस्थिरा भव ।
गज पूजन :-
ॐ गजराज नमस्तेस्तु नरकार्णवतारक।
सुखदः पुत्र पौत्रादेः सर्वदा बृद्धि हेतवे ॥
॥ गजपूजन मंत्राः ॥ पान्तु त्वां वसवो रुद्रा, आदित्याश्च मरूद्गणाः । भर्तारं रक्ष नागेन्द्र ! स्वामिनं प्रतिपालय ॥ १ ॥ अवाप्नुहि जयं युद्धे, गमने स्वस्तिमान् भव । वस्त्रैर्नानाविधैश्चैव, पुष्पैर्गन्धैर्मनोहरैः ॥ २ ॥
तुला (तराजू) पूजन:-
– सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बना लें। मौली लपेटकर तुला देवता का इस प्रकार ध्यान करें-
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।।
– ध्यान के बाद- ऊं तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम:
इस नाम मंत्र से गंध, चावल आदि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करें।
प्रार्थना –
ॐ त्वं तले सर्व देवानाम् प्रमाणमिह कीर्तित ।
अत्स्वां पूजयिष्यामि धर्मार्थ सुख हेतवे ॥
विपणि पूजन- ॐ विपण्यधिष्ठातृदेवतायै नमः इस मंत्र से पूजन कर प्रार्थना करे-
ॐ विपणि त्वं महादेवी धनधान्यप्रवर्द्धिनी।।
मद्गृहे सुयशो देहि धनधान्यादिकं तथा।
आयुः पशून्प्रजां देहि सर्वसम्पत्करी भव ।।
भण्डार गृह पूजन:-
ॐ सुवर्णकुष्यं द्रव्याणां स्थानं कोसगृहं हि नः ।
प्रसादाद् धनदस्यैव नित्यं भवतु वृद्धिमत ॥
धान्य पूजन :-
ॐ ब्रीह्यादीनि च धान्यानि प्राणिनां प्रीणनाय वे।
ऋषयः पितरो देवा ऋद्धिं कुर्वन्तु तेषु नः॥
दीपमालिका (दीपक) पूजन:-
– एक थाली में 11, 21 या उससे अधिक दीपक जलाकर महालक्ष्मी के समीप रखकर ध्यान करें
ध्यानम् :-
ॐ भो दीप ब्रह्मरुप त्वं ह्यन्धकार विनाशक ।
इमा मया कृतां पूजा गृहन्तेजः प्रवर्धप॥ ॐ दीपावल्यै नमः ।
उस दीपज्योति का ऊं दीपावल्यै नम:इस नाम मंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
प्रार्थना :-
ॐ त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारका:।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिः दीपावल्यै नमो नम:।।
– दीपकों की पूजा कर संतरा, ईख, धान इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं। धान का लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। इसके बाद आरती करें
(श्री गणेश जी कीआरती)
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अन्धे को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।।
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
(लक्ष्मी जी की आरती)
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
– दोनों हाथों में कमल आदि के फूल लेकर हाथ जोड़ें और यह मंत्र बोलें पुष्पांजलि करें –
ऊं या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां ह्रदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
ऊं श्रीमहालक्ष्म्यै नम:, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयमि।
– ऐसा कहकर हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें। प्रदक्षिणा कर प्रणाम करें, पुन: हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें-
सरजिजनिलये सरोजहस्ते धनलतरांशुकगंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्वभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
– पुन: प्रणाम करके ऊं अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मी: प्रसीदतु।
– यह कहकर जल छोड़ दें। ब्राह्मण एवं गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करें।




















