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बिहार की वह मस्जिद, जहां हिंदू देते हैं अजान, गांव में नहीं है कोई मुसलमान… फिर भी 100 सालों से हो रही 5 वक्त की नमाज

मैं मुस्लिम हूं, तू हिन्दू है… हैं दोनों इंसान, ला मैं तेरी गीता पढ़ लूं…तू पढ़ ले कुरान… ये लिखी लाइनें बताती हैं कि चाहे आप किसी भी धर्म से ताल्लुक रखते हों. आप चाहे मुस्लिम हैं या हिंदू, हैं इंसान ही और इंसानियत सबसे बड़ा धर्म होती है. लेकिन आज जहां एक तरफ धर्म के नाम पर लोगों के दिलों में नफरत पैदा हो गई है. धर्म के नाम पर लोग एक-दूसरे की जान के दुश्मन बने हुए हैं. वहीं बिहार में एक ऐसा गांव हैं, जहां एक भी मुसलमान नहीं है. लेकिन इस गांव में एक 100 साल पुरानी मस्जिद है. ये एक ऐसी मस्जिद है, जिसकी देखरेख सालों से गांव के हिंदू समुदाय के लोग करते आ रहे हैं.

इस मस्जिद में पांचों वक्त की अजान और नमाज होती है. ये मस्जिद बिहार के नालंदा जिले के माड़ी गांव में है. इस गांव में एक भी मुसलमान नहीं है. माड़ी गांव से मुस्लिम कई साल पहले पलायन कर चुके हैं. अब इस गांव में सिर्फ हिंदू ही रहते हैं. इस गांव में हिंदुओं की 100 प्रतिशत आबादी है और वही इस मस्जिद की साफ-सफाई से लेकर हर तरह की देखरेख करते हैं.

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हिंदू करते हैं मस्जिद की देखरेख

माड़ी गांव के हिंदू इस मस्जिद की देखरेख इस तरह से करते हैं, जैसे एक मंदिर की करते हैं. वह मस्जिद की साफ-सफाई करते हैं. इस मस्जिद के लिए माड़ी गांव के लोगों के मन में बहुत आस्था है. इस मस्जिद में पाबंदी से पांचों वक्त की अजान होती. हैरानी की बात तो ये है कि गांव में एक भी मुस्लिम न होने के बावजूद इस मस्जिद में नमाज भी होती है.

ऐसे होती है अजान और नमाज

गांव के लोगों ने बताया कि इस मस्जिद में पेन ड्राइव और माइक के जरिए अजान और नमाज होती है. यहां अजान और नमाज को रिकॉर्ड किया हुआ है, जिसे हिंदू समाज के लोग ही पांचों वक्त पाबंदी के साथ चलाते हैं. जब-जब अजान और नमाज का वक्त होता है. रिकॉर्ड की हुई अजान और नमाज को गांव के लोग स्पीकर पर चला देते हैं. इस तरह गांव में मुसलमान न होने के बावजूद मस्जिद में अजान और नमाज हो रही है.

शादी से पहले मस्जिद जाते हैं

गांव के हिंदू लोग इस मस्जिद को सालों से सहेजे हुए हैं. ये मस्जिद गांव के लोगों के लिए आस्था का केंद्र हैं. इस गांव में जब भी किसी की शादी होती है तो बारात भी यहीं से निकलती है और फिर नया जोड़ा सबसे पहले इस मस्जिद में आता है. दूल्हा-दुल्हन दोनों सबसे पहले शादी के बाद मस्जिद में आकर माथा टेकते हैं और अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं. मस्जिद के पास में ही एक मजार भी है, जिस पर नया जोड़ा चादर चढ़ाता है.

मस्जिद में रखा सफेद रंग का पत्थर

मस्जिद के पास बनी मजार की भी हिंदू ही देखरेख करते हैं. मस्जिद को लेकर लोगों की एक और आस्था है. माना जाता है कि मस्जिद में एक सफेद रंग का पत्थर रखा हुआ है. पत्थर की खासियत है कि जब भी किसी को किसी तरह की परेशानी होती है. जैसे किसी के गाल या चेहरे पर सूजन हो जाती है तो इस पत्थर को घिसने से सूजन खत्म हो जाती है.

मुसलमान कर चुके हैं पलायन

नालंदा के इस गांव से मुसलमान सालों पहले पलायन कर चुके हैं. ग्रामीणों ने बताया कि यहां रहने वाले मुसलमान बिहार और दूसरे जिलों में जाकर रहने लगे हैं. गांव में अब एक भी मुसलमान परिवार या शख्स नहीं है. लेकिन सालों से इस गांव में हिंदुओं ने इस गांव की मस्जिद को संभाला हुआ है. मस्जिद के फर्श और दीवारों को चमकाएं रखने के लिए गांव के लोग रोज मस्जिद की सफाई करते हैं.

हमेशा बनी रहे मस्जिद की रौनक

मस्जिद में अजान की परंपरा को बनाए रखने के लिए यहां के हिंदू भाई रिकॉर्डिंग का सहारा लेकर पांचों वक्त की अजान चला रहे हैं. ताकि मस्जिद की रौनक भी हमेशा बरकरार रहे. लोग इस मस्जिद को अपना हिस्सा मानते हैं. गांव वालों का मानना है कि मस्जिद की देखरेख करना. उनकी ही जिम्मेदारी है और अपनी इस जिम्मेदारी को वह बखूबी निभा रहे हैं.

गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल

माड़ी गांव के लोग गंगा जमुनी तहजीब की एक खूबसूरत मिसाल पेश कर रहे हैं. भारत में हर धर्म के लोग रहते हैं. लेकिन आज के दौर में जहां हर जगह मंदिर और मस्जिद की लड़ाई लड़ी जा रही है. वहां माड़ी गांव के लोगों ने एकता को बढ़ावा दिया है. गांव के बुजुर्गों ने बताया कि ये मस्जिद उनके पूर्वजों के समय स्थापित की गई थी. ऐसे में गांव के लोग इसे गांव की धरोहर के रूप में संजोकर रख रहे हैं.

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम, हिंदुसितां हमारा… अल्लामा इकबाल की इन पंक्तियों को माड़ी गांव के लोगों ने जी कर दिखाया है.

ज्ञान की भूमि नालंदा का इतिहास

बिहार के नालंदा जिले का इतिहास भारत के प्राचीन गौरव का प्रतीक है. यह क्षेत्र शिक्षा, धर्म और संस्कृति का केंद्र रहा है. नालंदा को ज्ञान की भूमि कहा जाता है.नालंदा न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे विश्व के बौद्धिक इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ता है. दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय यहीं बना था, जिसमें लगभग 10 हजार विद्यार्थी और 2,000 शिक्षक हुआ करते थे. इस विश्वविद्यालय में चीन, जापान, तिब्बत, इंडोनेशिया दुनियाभर से छात्र पढ़ने आते थे.

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