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न सरकारी नौकरी मिली और न गुनहगारों का सजा, ट्रेन ब्लास्ट में जान गंवाने वाले 24 वर्षीय अमरेश सावंत के परिवार का दर्द

मुंबई हाई कोर्ट ने सोमवार को 2006 में हुए मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट मामले को लेकर फैसला सुनाया. कोर्ट ने सभी 12 दोषियों को निर्दोष करार दे दिया. 19 साल बाद आए इस फैसले से जहां इन लोगों ने राहत की सांस ली. तो वहीं इस इंसाफ का इंतजार कर रहे लोगों में उदासी छा गई. इस घटना में 180 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. जिनमें एक अमरेश सावंत भी था. वही अमरेश जिसके परिवार के लोग इंसाफ का इंतजार कर रहे थे. इस हादसे ने परिवार को ऐसा जख्म दिया कि जो कभी भुलाया नहीं जा सकता. आईये जानते हैं अमरेश सावंत की पूरी कहानी…

बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के बाद टीवी 9 की टीम ने 7/11 मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट के पीड़ित सावंत परिवार से बात की. सावंत परिवार ने इस सीरियल बम धमाके में अपना 24 साल का बेटा अमरेश सावंत खो दिया. अमरेश जो एक कंपनी में नौकरी करता था. लोवर परेल से आकर वो हर रोज शाम 5 बजकर 55 मिनट की लोकल ट्रेन पकड़कर अंधेरी आता था.

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अमरेश की जिंगदी का आखिरी सफर

हादसे वाले दिन यानी 11 जुलाई 2006 की शाम को अमरेश सावंत ने 5 मिनट पहले की लोकल ट्रेन पकड़ी थी. उसे क्या पता था कि ये सफर उसकी जिंदगी का आखिरी सफर बन जाएगा. ये ट्रेन न सिर्फ उसके लिए बल्कि दूसरे मुसाफिरों के लिए भी काल बन जाएगी. इसी लोकल ट्रेन में आतंकियों ने बम रखा था उसी फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में जिसमें अमरेश बैठा था. ये बम दादर से 10 मिनट की दूरी पर खार रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूर पटरी पर जब तरीन चल रही थी तब ब्लास्ट हुआ था. इस धमाके से एक पल में न जाने कितनी जिंदगी मौत के मुंह में समा गईं. ये ब्लास्ट न जाने कितने परिवारों को जिंदगी भर का दर्द दे गया.

कंपनी में नौकरी करता था अमरेश

परिवार के मुताबिक अमरेश ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी और एक कंपनी में नौकरी शुरू की थी. घटना वाले दिन वह लोअर परेल से ट्रेन पकड़कर अंधेरी में अपनी बहन के पास जा रहा था, ताकि दोनों साथ में घर लौट सकें. लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था. परिवार उसका इंतजार कर रहा था लेकिन ये उन्हें क्या पता था कि अमरेश अब कभी वापस नहीं आएगा.

सिर्फ 5 मिनट जल्द घर पहुंचने का चाहत बनी मौत का सबब

अमरेश की बहन कहती है कि ‘काश उस दिन अमरेश ने वो ट्रेन न पकड़ी होती और एक ट्रेन बाद में गया होता, तो आज वह हमारे साथ होता. सिर्फ 5 मिनट जल्द आने से अमरेश की जान चली गई और फिर वो कभी वापस नहीं आया. परिवार ने बताया कि उन्हें पहले बताया गया था कि अमरेश अस्पताल में भर्ती है, लेकिन पुलिस पहले से जानती थी कि वह अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन परिवार को इस बारे में नहीं बताया गया.

अस्पताल में बेटे को तलाशता परिवार

जब परिवार अमरेश को देखने अस्पताल पहुंचा तो पुलिस ने उन्हें खुद जाकर अस्पताल में अमरेश को ढूंढने को कहा. बेटे की तलाश में परिवार ने अस्पताल का कोना-कोना छान मारा, हर मंजिल में उसकी तलाश की. हर वार्ड में उसे ढूंढा लेकिन अमरेश का कुछ पता नहीं चला. मिलता भी कैसे अमरेश तो उन्हें छोड़कर बहुत दूर जा चुका था.

शवों के बीच की अमरेश की पहचान

थक हारकर परिवार उम्मीद की एक किरण लिए दोबारा पुलिस के पास पहुंचा. यहां जो पुलिस ने उनसे कहा उसे सुनकर किसी के भी होश उड़ जाएंगे. पुलिस ने परिवार से कहा कि अब शवों के बीच जाकर अमरेश को पहचानिए. भीगी आंखों के साथ परिवार ने शवों के बीच अमरेश की तलाश शुरू की जहां उन्हें अपने बेटे का शव मिला. बेटे के शव को सामने देखकर परिवार टूट गया. उस समय जिस दर्द और तकलीफ से परिवार गुजरा होगा उसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते.

‘काश अमरेश जिंदा होता तो…’

परिवार का कहना है कि उस दिन के बाद से उनकी जिंदगी बदल गई है. एक पल में परिवार की खुशिया तबाह हो गईं. परिवार ने कहा कि उन्हें अब भी लगता है कि अगर अमरेश ज़िंदा होता, तो ज़िंदगी कुछ और ही होती, शायद बेहतर और खुशहाल होती .

पीड़ित परिवार की मांग

परिवार की मांग है कि इस मामले में सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. वो कहते हैं कि दोषियों को सजा मिलनी चाहिए, उन्हें ऐसे ही आजाद नहीं छोड़ा जा सकता. परिवार का ये भी कहना है कि पिछले 19 साल से वो आरोपियों को सजा मिलने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन आज भी सभी आरोपी सजा से दूर हैं.

नहीं मिली सरकारी नौकरी

सावंत परिवार का दुख ये भी है कि उन्हें सरकार की तरफ से अब तक किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली. उनके परिवार को सरकारी नौकरी भी नहीं मिली. परिवार ने बताया कि जॉब ऑफर जो दिया गया वो फोर्थ ग्रेड का था जबकि अमरेश की दोनों बहनें डबल ग्रेजुएट थीं तो उन्होंने फोर्थ ग्रेड का जॉब नहीं स्वीकार किया और अब तक इंतजार ही कर रहे हैं रेलवे की एक अदद नौकरी का. उन्होंने कहा कि घर में कमाने वाला युवा लड़का बम धमाके में मारा गया और आज परिवार बेबस लाचार और बेहद दुखी है.

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