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कुसुम योजना से सौर ऊर्जा में राजस्थान की छलांग, एक साल में 1190 मेगावाट क्षमता के 592 प्लांट लगे

जयपुर. राजस्थान ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में निरंतर अग्रसर है. सौर ऊर्जा के साथ-साथ विकेंद्रित सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी प्रदेश देश का प्रमुख हब बनकर उभर रहा है. बीते करीब एक साल के भीतर इस क्षेत्र में प्रदेश ने उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है. मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (कुसुम योजना) के जमीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन से यह संभव हुआ है.

इसकी बदौलत राज्य में कुल 1305 मेगावाट क्षमता के 684 विकेंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित हो चुके हैं. इनमें से 1190 मेगावाट क्षमता के 592 प्लांट मात्र एक साल के भीतर विकसित किए जा चुके हैं. योजना के कंपोनेंट-ए में अधिकतम 2 मेगावाट तथा कंपोनेंट-सी में अधिकतम 5 मेगावाट क्षमता तक के ग्रिड कनेक्टेड प्लांट लगाए जाने का प्रावधान है. कंपोनेंट-सी में संयंत्र स्थापित करने पर केंद्र सरकार की ओर से प्रति मेगावाट अधिकतम 1 करोड़ 5 लाख रुपए (लागत का 30 प्रतिशत) की सहायता देय है.

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किसान खुद या डवलपर के साथ लगा रहे प्लांट : खास बात यह है कि यह प्लांट उद्योगपतियों अथवा बड़े वाणिज्यिक समूहों द्वारा नहीं लगाए जा रहे हैं. कई जगहों पर किसानों द्वारा खुद या किसी डवलपर के साथ मिलकर खेत के समीप अपनी अनुपजाऊ भूमि पर यह संयंत्र लगाए जा रहे हैं. इन सौर संयंत्रों के माध्यम से अन्नदाता किसान अब ऊर्जादाता भी बन रहे हैं और प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता के नए युग की शुरूआत हुई है.

अब तक की उपलब्धियां :-

  • 684 विकेंद्रित सौर संयंत्र स्थापित
  • 1305 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता विकसित
  • 1 लाख किसानों को दिन में बिजली
  • ₹2.09 से ₹3 प्रति यूनिट सस्ती बिजली

डिस्कॉम्स को मिल रही सस्ती बिजली : इसके अंतर्गत बड़े-बड़े सोलर प्लांटों की बजाय ग्रिड कनेक्टेड लघु क्षमता के सौर संयंत्र लगाए जाते हैं. कुसुम योजना में ग्रिड सब स्टेशन से अधिकतम 5 किलोमीटर के दायरे में प्लांट स्थापित किए जाने का प्रावधान है. इनसे पैदा होने वाली बिजली का उपयोग उसी ग्रिड सब स्टेशन पर होने से विद्युत निगमों को अलग से वितरण अथवा प्रसारण तंत्र विकसित करने की आवश्यकता नहीं होती. डिस्ट्रिब्यूशन लॉसेज भी न्यूनतम होते हैं. जिसका लाभ वितरण कंपनियों को सस्ती एवं प्रदूषण रहित बिजली की उपलब्धता के रूप में होता है.

राज्य में कुसुम कंपोनेंट-ए के अन्तर्गत 457 मेगावाट क्षमता के 354 सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए जा चुके हैं. वहीं, कम्पोनेंट-सी में 848 मेगावाट क्षमता के 330 सौर संयंत्र लग चुके हैं. यह प्रगति इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि दिसंबर 2023 में वर्तमान सरकार के गठन से पूर्व प्रदेश में कुसुम योजना के दोनों घटकों को मिलाकर 123 मेगावाट क्षमता ही सृजित हो पाई थी. गत सरकार के समय कम्पोनेंट-ए में 119 मेगावाट के 91 प्लांट लगे थे. वहीं, कुसुम कम्पोनेंट-सी में तो 4 मेगावाट क्षमता का मात्र एक प्लांट ही स्थापित किया जा सका था.

ऊर्जा मंत्रालय ने बढ़ाया आवंटन : राज्य में योजना के सफल क्रियान्वयन को देखते हुए भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने कुसम कम्पोनेंट-ए में वित्त वर्ष 2024-25 में 397 मेगावाट तथा वर्ष 2025-26 में 5 हजार मेगावाट क्षमता का आवंटन बढ़ाया है. वहीं, कम्पोनेंट-सी में दोनों वर्षों में कुल 2 लाख सोलर पंप क्षमता का अतिरिक्त आवंटन किया है. केंद्र सरकार ने इस योजना के तहत अब तक राजस्थान को कम्पोनेंट-ए में कुल 5,500 मेगावाट तथा कम्पोनेंट-सी में 4 लाख सोलर पंप के लक्ष्य आवंटित किए हैं.

योजनागत प्रगति :-

  • कंपोनेंट-ए में अब तक 457 मेगावाट क्षमता के 354 संयंत्र लगाए जा चुके हैं।
  • कंपोनेंट-सी में 848 मेगावाट क्षमता के 330 संयंत्र स्थापित हुए हैं।
  • दिसंबर 2023 से पहले कुल क्षमता सिर्फ 123 मेगावाट थी।
  • राजस्थान अब देश में कंपोनेंट-ए में अग्रणी राज्य बन चुका है।

किसानों को 2027 तक दिन में बिजली देने का लक्ष्य : पूर्व में प्रदेश में घटक-ए का क्रियान्वयन राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम के माध्यम से किया जाता था. लेकिन बाद में भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के क्रम में 23 जुलाई 2024 से कंपोनेंट-सी के साथ-साथ कंपोनेंट-ए का भी क्रियान्वयन वितरण कंपनियों को सुपुर्द कर दिया गया.

राजस्थान के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह योजना: मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने प्रदेश के किसानों को वर्ष 2027 तक कृषि कार्य के लिए दिन में बिजली उपलब्ध कराने का संकल्प लिया है. इस संकल्प की क्रियान्विति में यह योजना अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हो रही है.

एक लाख किसानों को मिल रही दिन में बिजली : अब तक स्थापित संयंत्रों से करीब 1 लाख किसानों को दिन में बिजली सुलभ होने लगी है. करीब 90 हजार करोड़ के घाटे से त्रस्त राजस्थान डिस्कॉम्स के बढ़ते ऋणभार का मूल कारण महंगी बिजली खरीद तथा थर्मल प्लांटों से पैदा हो रही महंगी बिजली है. ऐसे में इन संयंत्रों से मात्र ढाई से 3 रुपए प्रति यूनिट की दर से सस्ती बिजली मिलना डिस्कॉम्स के लिए बड़ी राहत की बात है. मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य सरकार ने इस योजना के महत्व को ध्यान में रखा और इसे फ्लैगशिप योजना के रूप में सम्मिलित किया. राजस्थान में इन प्लांटों के माध्यम से जयपुर, जोधपुर एवं अजमेर वितरण कंपनियों को 2 रुपए 9 पैसे से लेकर 3 रुपए प्रति यूनिट की दर से सस्ती, सुलभ एवं शून्य कार्बन उत्सर्जन आधारित बिजली मिल रही है.

जोधपुर विद्युत वितरण निगम है अव्वल : कुसुम योजना में प्रदेश में जयपुर डिस्कॉम में 169.22 मेगावाट, जोधपुर डिस्कॉम में 997.50 मेगावाट तथा अजमेर डिस्कॉम में 137.33 मेगावाट की परियोजनाएं स्थापित की जा चुकी हैं. राजस्थान प्रदेश कम्पोनेंट-ए में देश में अग्रणी राज्य है. घटक-ए में 457 मेगावाट के प्लांट अकेले राजस्थान में हैं. वहीं, कम्पोनेंट-सी में गुजरात और महाराष्ट्र के बाद राजस्थान तीसरे स्थान पर है. विगत एक साल में जिस गति से प्रदेश आगे बढ़ा है उसे देखते हुए और बेहतर स्थान पर आने की उम्मीद है.

कौन डिस्कॉम सबसे आगे?

  • जोधपुर: 997.50 मेगावाट
  • जयपुर: 169.22 मेगावाट
  • अजमेर: 137.33 मेगावाट

इन प्रयासों से आया फर्क : इस योजना में डिस्कॉम्स के स्तर पर प्लांट स्थापित करने की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए लगातार प्रयास किए गए. लेटर ऑफ अवॉर्ड जारी करने के बाद सोलर प्लांट स्थापित करने तथा पावर परचेज एग्रीमेंट करने से संबंधित प्रक्रियाओं का त्वरित निस्तारण सुनिश्चित किया गया. कुसुम से संबंधित फाइलें जल्द निस्तरित करने के लिए मुख्यालय स्तर पर अधीक्षण अभियंता (कुसुम) का पद सृजित किया गया. मीटर टेस्टिंग, ट्रांसमिशन लाइन डालने तथा ट्रांसफार्मर से संबंधित तकनीकी प्रक्रियाओं को शीघ्रता से पूरा करने के लिए एसओपी जारी की गई. रास्ते तथा लीज भूमि के विवादों को दूर करने तथा वित्तीय संस्थाओं से ऋण उपलब्ध कराने में सहयोग किया गया. जिससे कि सोलर पावर जनरेटर्स अपने प्रोजेक्ट्स को शीघ्रता से पूर्ण कर पा रहे हैं. सर्किलों में कुसुम के प्लांटों के काम को गति देने के लिए नोडल अधिकारियों द्वारा नियमित मॉनीटरिंग की जा रही है.

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