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लखनऊ …..आज होगी नवरात्रि की तृतीय शक्ती देवी- मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना

संवत २०८२ आश्विन शुक्ल तृतीया 24 सितंबर 2025 बुधवार।।

पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

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प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।

पं.अनन्त पाठक –

भगवती दुर्गा अपने तीसरे स्वरूप में चन्द्रघण्टा नाम से जानी जाती हैं। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है। इनका रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण से इन्हें चन्द्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग, बाण अस्त्र दृ शस्त्र आदि विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। इस दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में प्रविष्ट होता है। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक को अलौकिक दर्शन होते हैं, दिव्य सुगन्ध और विविध दिव्य ध्वनियाँ सुनायी देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं । इनके घंटे सी भयानक चण्ड ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं। नवरात्रे के दुर्गा-उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्याधिक महत्व है। माता चन्द्रधण्टा की उपासना हमारे इस लोक और परलोक दोनों के लिए परमकल्याणकारी और सद् गति को देने वाली है।

माता चंद्रघंटा की कथा:-

पौराणिक कथा के अनुसार जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा तो मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया. उस समय असुरों का स्वामी महिषासुर था जिसका देवताओं से भंयकर युद्ध चल रहा था. महिषासुर देव राज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था. उसकी प्रबल इच्छा स्वर्गलोक पर राज करने की थी. उसकी इस इच्छा को जानकार सभी देवता परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने उपस्थित हुए. देवताओं की बात को गंभीरता से सुनने के बाद तीनों को ही क्रोध आया.

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क्रोध के कारण तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई. उससे एक देवी अवतरित हुईं. जिन्हें भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया. इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों मेें अपने अस्त्र सौंप दिए. देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया. सूर्य ने अपना तेज और तलवार दी, सवारी के लिए सिंह प्रदान किया.इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर के पास पहुंची. मां का ये रूप देखकर महिषासुर को ये आभास हो गया कि उसका काल आ गया है. महिषासुर ने मां पर हमला बोल दिया. इसके बाद देवताओं और असुरों में भंयकर युद्ध छिड़ गया. मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार किया. इस प्रकार मां ने देवताओं की रक्षा की।।

पूजन विधि:- प्रतिदिन की भाँति आवाहित देवी देवताओं के पूजन के बाद माँता का पूजन करें।

हाथों में फूल लेकर ध्यान करें ।

ध्यान मंत्र: 

              वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।

              सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्।।

              कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम्।

              खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला 

             वराभीतकराम्।।

             पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम्।

             मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्।।

             प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम्।

             कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्।।

पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पंच्चामृत, शुद्ध स्नान, वश्त्र, लाल चंदन, रोली,कुमकुम, अक्षत, पुष्प, सुगन्धित द्रव्य, धूप, दीप, नैवेद्य, फल,ताम्बूल, दक्षिणा से पूजन करके प्रार्थना करें।

कवच मंन्त्र:-

रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।

श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्।।

बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धारं बिना होमं।

स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकम्।।

कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।

न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्।।

स्तोत्र:-

आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्तिरू शुभा पराम्।

अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्।।

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।

धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्।।

नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम्।

सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ।।

उपासना एवं जप मंन्त्र:

पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।

क्षमा प्रार्थना मन्त्र:-

अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया। 

दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌। 

पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। 

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥ 

अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत। 

यां गतिं सम्वाप्नोते न तां बह्मादयः सुराः॥

सापराधो स्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके। 

इदानीमनुकम्प्योहं यथेच्छसि तथा कुरु॥ 

अक्षानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्नयूनमधिकं कृतम्‌ ॥

तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥

कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रेहे। 

गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतमं जपम्‌। 

सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥

🙏 या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

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