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जयपुर आज होगी नवरात्रि की चतुर्थ शक्ती देवी- माँ कुष्मांडा की पूजा अर्चना ।।

संवत २०८२ आश्विन शुक्ल चतुर्थी गुरुवार 26 सितंबर 2025

सुरा संपूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।

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दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥

पं अनन्त पाठक:- माँ कूष्माण्डा नवरात्रि के चतुर्थ दिवस की अधिष्ठात्री शक्ति हैंमाँ कुष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही है दैदीप्य मान हैं।इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्ट भुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

उपासना :- माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अतः अपनी लौकिक, पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

विधि-विधान से माँ के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दुःख स्वरूप संसार उसके लिए अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है। माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है।

इस दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।

पूजन विधि:- प्रतिदिन की भाँति आवाहित देवी देवताओं के पूजन के बाद माँता का पूजन करें।

हाथों में फूल लेकर ध्यान करें ।

 मां कूष्‍मांडा ध्यान मंत्र:-

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्‍मांडा यशस्वनीम्॥

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।

कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्।।

पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पंच्चामृत, शुद्ध स्नान, वश्त्र, लाल चंदन, रोली,कुमकुम, अक्षत, पुष्प, सुगन्धित द्रव्य, धूप, दीप, नैवेद्य, फल,ताम्बूल, दक्षिणा से पूजन करके प्रार्थना करें।

विषेष पूजन:-संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं। मालपुए या फिर कुम्हरे (कद्दू) से बने पेठे का भोग लगाएं।

इस दिन जहाँ तक संभव हो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन करना चाहिए। उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए। जिससे माताजी प्रसन्न होती हैं। और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

मां कूष्‍मांडा कवच:-

 हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।

हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥

कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,

पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।

दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेवकूं बीजं सर्वदावतु॥

मां कूष्‍मांडा स्तोत्र पाठ:-

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।

जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।

चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।

परमानन्दमयी,कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥

क्षमा प्रार्थना मन्त्र:-

अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया। 

दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌। 

पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। 

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥ 

अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत। 

यां गतिं सम्वाप्नोते न तां बह्मादयः सुराः॥

सापराधो स्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके। 

इदानीमनुकम्प्योहं यथेच्छसि तथा कुरु॥ 

अक्षानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्नयूनमधिकं कृतम्‌ ॥

तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥

कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रेहे। 

गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतमं जपम्‌। 

सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥

🙏या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

          नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

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