अहमदाबाद प्लेन क्रैश में 242 पैसेंजर्स की पहचान डीएनए टेस्ट से होगी, क्योंकि शव बुरी तरह झुलस गए हैं. माता-पिता, भाई-बहन या अन्य रिश्तेदारों के डीएनए से मिलान कर पहचान की जाएगी.
अहमदाबाद प्लेन क्रैश में सभी 242 पैसेंजर्स मारे गए हैं, लेकिन इन लोगों के शवों की पहचान मुश्किल है. क्योंकि ज्यादातर लोग बुरी तरह झुलस गए हैं, उनकी पहचान नहीं हो पा रही है. ऐसे में प्रशासन अब उनकी पहचान के लिए डीएनए टेस्ट करने जा रहा है. आखिर DNA से कैसे होती है शवों की शिनाख्त? सिर्फ माता-पिता का ही डीएनए मिलाया जाता है या फिर भाई-बहन, चाचा, ताऊ या किसी और का भी डीएनए मैच कराया जा सकता है? माता-पिता न हों तो सैंपल कौन देगा?
अहमदाबाद प्लेन क्रैश की जांच में शवों की पहचान सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि ज्यादातर लोग भयंकर रूप से झुलस चुके हैं. ऐसे में पारंपरिक तरीके काम नहीं आते. इसलिए प्रशासन ने डीएनए टेस्ट का रास्ता अपनाया है. लेकिन ये डीएनए टेस्ट असल में कैसे काम करता है? दरअसल, हर इंसान के शरीर की कोशिकाओं में DNA नाम की एक जीनोम लाइब्रेरी होती है, जो उसे दुनिया का सबसे अनोखी आइडेंटिटी देती है. PCR तकनीक के जरिये, बेहद कम मात्रा में भी डीएनए लेकर विश्लेषण किया जा सकता है.
इसका मतलब ये हुआ कि भले ही पूरी कोशिका यानी सेल नष्ट हो गई हो, कुछ हड्डी या धुआं भी बचा हो तो भी DNA की छोटी-छोटी स्ट्रिंग्स से पहचान संभव हो जाती है.
माता-पिता का DNA मिलाना
अगर किसी के माता-पिता हों तो उनका डीएनए लेकर शवों की पहचान करना सबसे आसान और सटीक तरीका है. जांच के दौरान शव से DNA निकालकर माता-पिता के DNA से सीधे मिलाया जाता है. आप जानकर हैरान होंगे कि 99.99% तक इससे सही रिजल्ट आता है.
अगर मां-बाप न हों तो कौन देगा सैंपल?
डीएनए टेस्ट के लिए यह जरूरी नहीं कि सिर्फ माता-पिता का सैंपल लिए जाएं. उस शख्स के भाई-बहन का भी सैंपल लिया जा सकता है. उनके DNA से भी 50% तक मैच हो सकता है. इसे सिब्लिंग टेस्ट कहा जाता है. उसके साथ चाचा–ताऊ, मामाजी या अन्य खून के रिश्तेदार से भी डीएनए का मिलान कराया जा सकता है. अगर ये भी मौजूद न हों फिर दादा-दादी DNA, पुरुषों के लिए पिता से बेटे तक, या माइटोकॉन्ड्रियल DNA यानी मां से बच्चे को को जो मिला है, टेस्ट भी हो सकता है. चचेरे भाई–बहन का डीएनए सैंपल लें तो सही नतीजा निकलना मुश्किल होता
सैंपल में क्या लेते हैं?
डीएन सैंपल के लिए मृतक के शरीर की कोई भी कोशिका लेते हैं. जैसे खून, हड्डी, बाल से डीएनए ले सकते हैं. साथ में रिश्तेदार के डीएनए का सैंपल लेते हैं. लैब में PCR कर विशिष्ट मार्कर चुने जाते हैं. कंप्यूटर तय करता है कि रिलेशनशिप का कितना प्रतिशत मिलान हो रहा है. यही बताता है कि कितनी दूर का नाता है या कितने करीब का. लेकिन अगर रिश्तेदार डेटाबेस में ना हों, तो यह तरीका फेल हो सकता है.




















