भरतपुर : विश्वप्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में फिर से जीवन का संचार होने लगा है. करौली के पांचना बांध से लगातार दूसरे साल पानी छोड़ा जा रहा है और महज दस दिनों में ही 160 एमसीएफटी पानी उद्यान तक पहुंच चुका है. जल के साथ आईं विभिन्न प्रजातियों की मछलियां और जलीय वनस्पतियां पक्षियों के लिए भरपूर भोजन लेकर आई हैं, जिससे बर्ड सैंक्चुअरी में फिर से रौनक लौट आई है.
जल के साथ आया भोजन : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि पांचना बांध से आ रहे पानी की फिश सैंपलिंग की गई, जिसमें पाया गया कि प्रति 30 सेकंड में 11 प्रजातियों की लगभग 250 मछलियां उद्यान में प्रवेश कर रही हैं. ये मछलियां और जलीय वनस्पतियां प्रवासी व स्थानीय पक्षियों के लिए पौष्टिक भोजन का बड़ा स्रोत बन रही हैं. पानी के साथ आई प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला से पक्षियों का ठहराव और प्रजनन भी बढ़ेगा. पेंटेड स्टॉर्क, स्पूनबिल, हेरॉन, डक, स्टॉर्क और अन्य जल पक्षियों के लिए यह मौसम बेहद अनुकूल साबित होगा.
जैव विविधता में नया जीवन : पिछले कई वर्षों तक जल संकट झेलने वाले केवलादेव उद्यान में यह दूसरा साल है जब पांचना बांध से पर्याप्त पानी मिल रहा है. लगातार दूसरे साल हुई आपूर्ति से उद्यान की आर्द्रभूमि प्रणाली स्थायी रूप से मजबूत होगी और यहां की पारिस्थितिक श्रृंखला पुनर्जीवित होगी. इस उद्यान के संरक्षण के लिए 550 एमसीएफटी पानी वार्षिक जरूरत है. संभावना है कि अच्छी बरसात के चलते उद्यान को इस बार भी पूरा पानी मिल सकेगा.
पर्यटन और अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर : होटल व्यवसाई लक्ष्मण सिंह व देवेंद्र सिंह ने बताया कि पांचना बांध का पानी मिलने से इस बार पक्षियों की संख्या अच्छी रहने की संभावना है. ऐसे में इस बार सर्दियों में पर्यटकों की आवक में उल्लेखनीय वृद्धि की उम्मीद है. स्थानीय होटल व्यवसायी, गाइड और रिक्शा चालकों के लिए इस बार एक नई उम्मीद जागी है. बांध से लगातार दूसरे वर्ष मिले पानी से न केवल केवलादेव उद्यान की सूखी धरती को हरियाली से ढंक दिया है, बल्कि मछलियों, जलीय वनस्पतियों और पक्षियों के लिए यह एक नई जीवनरेखा बनी है. जल, जीव और वनस्पति का यह संतुलन इस बात का प्रमाण है कि सही प्रबंधन और सामूहिक प्रयासों से वन्यजीव संरक्षण और स्थानीय विकास को साथ‑साथ आगे बढ़ाया जा सकता है.




















