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मालाबार नीम व घामरा को रास आई थार की जलवायु, 4 साल के ट्रायल में मिले सुखद परिणाम

जोधपुर : नीम-पीपल जैसे पौधे हमारे जीवन के लिए काफी उपयोगी हैं, लेकिन नीम और पीपल जैसे हुबहू पौधे किसानों के लिए उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में भी कारगर हो सकते हैं, जो देखने में पीपल नीम की तरह नजर आते हैं, लेकिन इनका उपयोग औद्योगिक रूप से होता है. देश के कई राज्यों में मालाबार नीम और हवन जिसे घामार कहते हैं दोनों ऐसे पौधे हैं, जिनका उपयोग पेपर इंडस्ट्रीज और प्लाईवुड इंडस्ट्रीज में बहुतायत होता है. राजस्थान में इन पेड़ों की खेती न के बराबर होती है, लेकिन अब जोधपुर काजरी ने इस दोनों पेड़ों को काजरी परिसर में लगाने में सफलता प्राप्त कर किसानों को इसकी खेती करने की सलाह दी है. काजरी के वैज्ञानिकों ने करीब चार साल तक इस पर ट्रायल किया. इसके बाद यह पूरी तरह से तैयार है. यह किसानों के लिए नकदी फसल बन सकती है.

वर्तमान में मालाबार नीम की खेती कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल सहित अन्य राज्यों में होती है. इमारती लकड़ी के स्रोत के रूप में लोकप्रिय मालाबार नीम का केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) ने जोधपुर की जलवायु में भी बेहतर उत्पादन लिया है. यहां पर इसी तरह से हवन का पेड़ पर ट्रायल किया गया. इसके परिणाम भी उत्साहजनक रूप से सामने आए हैं. इसमें पाया गया कि यह पौधे यहां की जलवायु में भी अनुकूल हैं.

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एक मीटर के पौधे बने बीस फीट के : इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही वैज्ञानिक डॉ. अर्चना वर्मा ने बताया कि हमने चार साल पहले छोटे पौधे लगाए थे. अब 20 फीट तक के हो गए हैं. राजस्थान में मालाबार नीम नहीं होता है. काजरी ने देहरादून और कोयम्बटूर से करीब 500 मालाबार नीम के पौधे मंगाए. ये आधा फीट लम्बे और इनका तना पांच मिलीमीटर का था. अब यह 20 फीट लम्बा और तना 15 सेंटीमीटर का हो चुका है. कमोबेश ऐसे ही पौधे घामरा यानी हवन के थे, जिन्हें यहां पनपाया गया है. किसान इन्हें खेत की मेड़ या बीच में भी लगा सकते हैं. मालाबार के नीचे दूसरी खेती भी हो सकती है, जबकि घामरा घना होने से यह संभव नहीं है. हवन की जड़ का उपयोग आयुर्वेद औषधि निर्माण में होता है.

तने की मोटाई प्लाई, पेपर मे उपयोगी : इन पेड़ों के तने पांच सेंटीमीटर के होने पर इसका उपयोग पेपर इंडस्ट्रीज में किया जा सकता है. किसान पेड़ का कुछ हिस्सा काटकर दे सकते हैं. बाकी को आगे पनपने पर प्लाईवुड इंडस्ट्रीज को बेचा जा सकता है. देश की सभी बड़ी प्लाईवुड कंपनियां इनका ही उपयोग कर रही हैं. एक पौधे की लागत लगभग 10 रुपए है. यह छह से आठ साल में एक पेड़ चार-पांच क्विटल लकड़ी दे सकता है, जिसकी कीमत 800-900 रुपए प्रति क्विटल हो सकती है. वैज्ञानिकों ने बताया कि चार एकड़ में 5,000 पौधे लगाकर आठ वर्षों में 50 लाख रुपए तक कमाया जा सकता हैं.

थार की जलवायु में कारगर : डॉ. वर्मा ने बताया कि मालाबार नीम को घामरा की अपेक्षा कम पानी की आवश्यकता हेाती है. मालबार को प्रतिदिन 10 से 15 लीटर पानी चाहिए, जबकि घामरा को 25 लीटर तक पानी की आवश्यकता होती है. शुरुआत में दोनों को ही तीन चार लीटर पानी की जरूरत होती है. इन्हें खेत की मेड़ पर छह मीटर या इससे कम दूरी पर लगाया जा सकता है. मालाबार नीम के नीचे दूसरी फसल भी लगाई जा सकती है, क्योंकि इसकी लंबाई ज्यादा होती है और छाया कम होती है. यह पौधे थार की जलवायु में कारगर हैं.
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