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सावन के दूसरे सोमवार पर शिव मंदिरों में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, आज कामिका एकादशी भी

जयपुर/बीकानेर: सावन महीने का दूसरा सोमवार आज पूरे प्रदेश में भक्ति और श्रद्धा की भावनाओं से सराबोर रहा. जयपुर में तड़के सुबह से ही श्रद्धालु भोलेनाथ के मंदिरों की ओर उमड़ पड़े और हर-हर महादेव के जयकारों से वातावरण गूंज उठा. शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों तक के शिवालयों में विशेष पूजा-अर्चना, रुद्राभिषेक और रुद्री पाठ का आयोजन किया गया. जयपुर शहर के प्रमुख ताड़केश्वर महादेव, झाड़खंड महादेव, सदाशिव ज्योर्तिलिंगेश्वर महादेव, जंगलेश्वर, चमत्कारेश्वर, धूलेश्वर मंदिरों में विशेष आयोजन किए गए. इन मंदिरों में रुद्राभिषेक और रुद्री पाठ के साथ-साथ श्रृंगार और भस्म आरती भी की गई. हर शिवालय में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी, जिससे मंदिर परिसर में सुबह से ही चहल-पहल बनी रही.

भोर होते ही शुरू हुआ शिवभक्तों का तांता: सुबह होते ही श्रद्धालु परिवार सहित शिव मंदिरों में पहुंचने लगे. कई मंदिरों के बाहर भक्तों की लंबी-लंबी कतारें नजर आईं. पुरुष, महिलाएं और बच्चे बेलपत्र, दूध, गंगाजल, शहद और जल से भगवान शिव का अभिषेक करने पहुंचे. खासकर युवाओं और महिला श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखने को मंदिर प्रशासन और स्वयंसेवकों ने व्यवस्था संभाली हुई थी. कतारबद्ध दर्शन की व्यवस्था की गई थी, ताकि हर श्रद्धालु को शांतिपूर्वक शिवलिंग पर जल अर्पण करने का अवसर मिल सके. सुरक्षा, पानी और चिकित्सा की भी समुचित व्यवस्था की गई.

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आस्था और अध्यात्म का मेल: सावन के इस पावन सोमवार को भक्तों ने व्रत रखकर शिव की उपासना की. पंडितों और पुरोहितों के निर्देशन में श्रद्धालुओं ने विशेष पूजन कराया. कुछ शिवालयों में दिनभर भजन-कीर्तन और शाम को आरती का आयोजन भी किया गया. सावन में हर सोमवार को भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन शिव जी का अभिषेक करने से जीवन के सारे कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

वहीं, धौलपुर के सभी प्रमुख शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली. सुबह 4 बजे मंगला आरती के साथ ही मंदिरों के पट खुले और इसके बाद श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा. जगह-जगह भगवान शिव की पूजा-अर्चना के जयघोष से शिवालय गूंजते रहे. इस मौके पर सबसे अधिक भीड़ धौलपुर के सैपऊ स्थित ऐतिहासिक महादेव मंदिर में उमड़ी. मंगला आरती के तुरंत बाद मंदिर परिसर भक्तों से भर गया. हरिद्वार, कर्णवास और सोरों से आए कांवड़िये भगवान शिव का दुग्ध, शर्करा, पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक करते नजर आए. बेलपत्र और धतूरा अर्पित कर भोलेनाथ की पूजा विधिवत संपन्न की गई.

धौलपुर शहर के चोपड़ा मंदिर, अचलेश्वर महादेव मंदिर और बसेड़ी स्थित भूतेश्वर महादेव मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. महिला, पुरुष, बच्चे और युवा सभी शिव भक्ति में डूबे नजर आए। भक्तों द्वारा मंदिर परिसरों के बाहर जगह-जगह लंगर की व्यवस्था भी की गई थी, जिसमें सुबह से ही प्रसादी वितरित की जा रही थी. महंत लोकेश शास्त्री ने बताया कि इस बार सावन मास विशेष संयोग लेकर आया है. उन्होंने कहा कि भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

आज कामिका एकादशी: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है. वर्षभर में कुल 24 एकादशी आती हैं, जो हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में पड़ती हैं. इन सभी एकादशी पर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है, लेकिन श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विशेष माना गया है. इस एकादशी को कामिका एकादशी और पवित्रा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के उपेन्द्र स्वरूप की पूजा का विधान है.

व्रत-पूजन से पूरी होती हैं मनोकामनाएं: ज्योतिषाचार्य पंडित विष्णु व्यास ने बताया कि धार्मिक मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त सच्चे मन से व्रत करता है और श्रद्धा से भगवान विष्णु का पूजन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. एकादशी व्रत रखने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. उन्होंने कहा कि इस दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें. श्रीविष्णुसहस्रनाम और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें, जिनके पास अधिक समय नहीं है, वे केवल एक माला मंत्र जाप करके भी पुण्य प्राप्त कर सकते हैं. श्रीमद्भागवत गीता का पाठ भी अत्यंत शुभ माना गया है.

जागरण का विशेष महत्व: पंडित विष्णु व्यास का कहना है कि एकादशी की रात को जागरण करने का विशेष महत्व है. शास्त्रों में वर्णन है कि जो भक्त श्रीहरि के नाम का जागरण करता है और रातभर दीपक जलाए रखता है, उसे ऐसा पुण्य मिलता है जो सौ कल्पों तक भी नष्ट नहीं होता.

क्या न करें एकादशी पर:

  • इस दिन घर में झाडू लगाना वर्जित है क्योंकि इससे सूक्ष्म जीवों की मृत्यु हो सकती है.
  • बाल कटवाना और किसी का दिया अन्न ग्रहण करना वर्जित है.
  • चावल न तो स्वयं खाएं, न किसी को खिलाएं.
  • सात्विक जीवनशैली अपनाएं और यथाशक्ति अन्नदान करें.

तुलसी पूजन का महत्व: कामिका एकादशी पर तुलसी पूजन विशेष रूप से फलदायी होता है. भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का उपयोग अनिवार्य माना गया है, लेकिन विशेष ध्यान रहे कि इस दिन तुलसी को जल अर्पित नहीं किया जाता है. केवल पुष्प अर्पण व पूजा करें.

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