राजस्थान में मंगलवार से नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया, लेकिन प्रदेश के महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है। सरकार ने बीते सोमवार को प्रदेशभर में 11 हजार 576 शिक्षकों की पोस्टिंग तो कर दी, लेकिन इतने ही पद अब भी खाली पड़े हैं। शिक्षा विभाग के इन अधूरे प्रयासों के चलते सत्र की शुरुआत भी अधूरी तैयारियों के साथ हो रही है।
माध्यमिक शिक्षा निदेशालय के आंकड़ों के मुताबिक, महात्मा गांधी स्कूलों में कुल 23 हजार शिक्षक पद रिक्त थे। सोमवार को राज्य के 3737 स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति की गई, लेकिन अभी भी 11 हजार 424 पद खाली हैं। खास बात यह है कि अधिकांश स्कूलों में तो प्रिंसिपल तक तैनात नहीं हैं। सरकार के आदेशानुसार केवल 380 स्कूलों को ही नए प्रिंसिपल मिल पाए हैं।
घटती लोकप्रियता, घटते आवेदन
कभी अभिभावकों की पहली पसंद रहे महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का आकर्षण अब फीका पड़ता जा रहा है। कांग्रेस शासनकाल में शुरू हुए इन स्कूलों को लेकर पहले जो क्रेज था, वह अब कम होता दिख रहा है। निजी स्कूलों की महंगी फीस से निजात पाने के लिए जब इन स्कूलों की शुरुआत हुई थी, तब लॉटरी सिस्टम के जरिए दाखिले होते थे। मगर अब स्थिति उलट गई है।
इस बार अधिकांश स्कूलों में उपलब्ध सीटों से भी कम आवेदन आए हैं। ऐसे में सभी को एडमिशन मिल रहा है और खाली बची सीटों पर ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर प्रवेश दिया जाएगा। यह गिरती लोकप्रियता कहीं न कहीं स्कूलों की गिरती शैक्षणिक गुणवत्ता और अधूरी व्यवस्थाओं की ओर संकेत करती है।
ग्रामीण स्कूलों की बदहाल स्थिति
सरकार की ओर से की गई शिक्षकों की नियुक्तियों का असर शहरी क्षेत्रों में कुछ हद तक नजर आया है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्थिति गंभीर बनी हुई है। इन स्कूलों में न सिर्फ शिक्षकों की भारी कमी है, बल्कि कई जगहों पर जरूरी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं।
पिछले साल आयोजित हुई शिक्षक पात्रता परीक्षा में सफल हुए अधिकतर अभ्यर्थियों की पोस्टिंग अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में कर दी गई, जो पहले हिन्दी माध्यम स्कूलों में कार्यरत थे। इससे हिन्दी माध्यम स्कूलों में भी शिक्षक संकट खड़ा हो गया है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्कूल इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
ट्रांसफर-पोस्टिंग ने बिगाड़ा संतुलन
तीस जून को हुए आदेश में कई शिक्षकों को उनके गृह जिले में पोस्टिंग दी गई है। इससे जिन स्कूलों में वे पहले कार्यरत थे, वहां शिक्षक खाली हो गए हैं। इसके अलावा पहले से अंग्रेजी माध्यम में कार्यरत कई शिक्षकों का चयन भी हुआ है, जिनका अब स्कूल बदल गया है। इससे न सिर्फ महात्मा गांधी स्कूलों में शिक्षकों की व्यवस्था गड़बड़ा गई है, बल्कि हिन्दी माध्यम स्कूलों पर भी इसका सीधा असर पड़ा है।
आधे-अधूरे प्रयासों से नहीं सुधरेगी तस्वीर
शिक्षा विभाग की यह कवायद फिलहाल आधी सफलता तक ही सीमित नजर आ रही है। राज्य सरकार ने जरूर एक साथ 11 हजार से ज्यादा शिक्षकों की नियुक्ति कर व्यवस्था सुधारने का प्रयास किया है, लेकिन खाली पड़े पद और घटती छात्र संख्या यह दर्शाती है कि अभी लंबा सफर तय करना बाकी है।
यदि जल्द ही खाली पदों को नहीं भरा गया और ग्रामीण स्कूलों की स्थिति नहीं सुधारी गई तो महात्मा गांधी स्कूलों की पहचान व उद्देश्य दोनों ही कमजोर पड़ सकते हैं।




















