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सनातन संस्कृति में कुंभ पर्व का विशेष महत्व – संत रामबालकदास जी

नेम सिंह सेन, छत्तीसगढ़ से

समुद्रमंथन में निकले अमृत कलश को लेकर जब धन्वंतरि प्रकट हुये तो इसे पाने की लालसा में देवताओं और दानवों के बीच छीना – झपटी होने लगी इससे कलश से अमृत की कुछ बूंदें छलककर नीचे गिर पड़ी। जिन – जिन स्थानों पर अमृत की ये बूंदें गिरीं वे चार स्थान हैं प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन।
पाटेश्वरधाम के आनलाईन सतसंग में पुरूषोत्तम अग्रवाल की कुंभ पर्व के बारे में जिज्ञासा पर बोलते हुये संत रामबालकदासजी ने कहा कि दूसरी मान्यता के अनुसार अमृत के घड़े को लेकर गरूढ़ आकाश मार्ग से उड़ चले दानवों ने उनका पीछा किया जिससे छीना – झपटी में घड़े से अमृत की चार बूंदे टपक गयी। जिन स्थानों पर बूंदे गिरीं वे हैं प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। हमारे संतों, ऋषियों ने निर्णय लिया कि क्यों न सामाजिक समरसता, सहकार, सात्विकता, संस्कृति के विस्तार, सनातन की रक्षा, सर्वधर्म समभाव की भावना, जगत्कल्याण के लिये ऐसे मेले का आयोजन किया जाये जिसमें पूरे विश्व के लोग आकर भारत की संस्कृति का दर्शन करें। तब से ही इन चार स्थानों पर बारह – बारह वर्षों के अंतराल में कुंभ पर्व का आयोजन होने लगा। छ: वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का मेला लगता है। इस पर्व में श्रद्धालु स्नान, दान, साधु संतों के दर्शन, सतसंग, यज्ञ, हवन के माध्यम से पुण्य प्राप्त करते हैं। सनातन संस्कृति में कुंभ पर्व का विशेष महत्व है। महाराज जी ने कहा कि ऐसा माना जाता है कि जब गुरू वृषभ राशि पर हो, सूर्य तथा चंद्र मकर राशि पर हों, अमावस्या हो यह सब संयोग इकट्ठा होने पर प्रयाग में कुंभ पर्व मनाया जाता है। इस समय त्रिवेणी में स्नान करने वालों को एक लाख पृथ्वी की परिक्रमा करने से भी अधिक तथा सैकड़ों वाजपेय यज्ञों और सहस्त्रों अश्वमेध यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है। सूर्य मेष राशि पर और गुरू कुंभ राशि पर होता है उस समय हरिद्वार में कुंभ का योग बनता है। जब सूर्य और चंद्र कर्क राशि पर हों और गुरू सिंह राशि पर स्थित हो उस समय नासिक में कुंभ पर्व का योग बनता है। इसी प्रकार जिस समय गुरू वृश्चिक राशि पर और सूर्य तुला राशि पर स्थित हो तो उस समय उज्जैन में कुंभ का योग बनता है।
इस वर्ष मार्च अप्रैल में हरिद्वार में लगने वाले महाकुम्भ में पाटेश्वर धाम द्वारा छत्तीसगढ़ मंडप 1 महीने के लिए लगाया जाएगा


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