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78वां निरंकारी संत समागम सेवाभाव समर्पण और मानवता का दिव्य उत्सव

आत्म मंथन से मन में व्याप्त कुरीतियों को दूर करें: सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज

भीलवाडा। (पंकज पोरवाल) इस विविधताओं से भरे संसार में जहाँ मानवता अनेक रूपों, भाषाओं, संस्कृतियों, जातियों और धर्मों में विभाजित दिखाई देती है, वहीं एक शाश्वत सत्य है जो हम सभी को एक अटूट सूत्र में पिरोता है। हम सभी एक ही परमात्मा की संतान हैं, जो हमें समय-समय पर अनके रूपों में आकर प्रेम, करुणा, समानता और मानवता का दिव्य संदेश देते है। हमारे भिन्न-भिन्न रूप और रहन-सहन होते हुए भी हमारे भीतर वही एक जैसी चेतना, जीवन-शक्ति प्रवाहित होती है, जो हमें एक-दूसरे से जोड़ती है।

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इसी भावना को आत्मसात करते हुए, संत निरंकारी मिशन पिछले 96 वर्षों से ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अर्थात् ‘समस्त संसार एक परिवार’ की दिव्य भावना को जीवन्त कर रहा है। निरंकारी मिशन न केवल प्रेम, शांति और समरसता का पावन संदेश देता है, बल्कि सत्संग, सेवा और विशाल संत समागमों के माध्यम से उसे व्यवहार में उतारता भी है। भीलवाड़ा जोनल इंचार्ज संत ब्रजराज सिंह ने बताया कि हर वर्ष की भांति, इस वर्ष भी वार्षिक निरंकारी संत समागम की सेवाओं की शुरुआत एक अत्यंत भावपूर्ण क्षण के साथ हुई, जब सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित ने अपने पावन कर-कमलों से सेवा स्थल का उद्घाटन किया। यह दृश्य न केवल एक परंपरा का निर्वहन था, बल्कि सेवा, श्रद्धा और मानवता के प्रति गहरी आस्था का जीवंत प्रतिबिंब बना।

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इस शुभ अवसर पर मिशन की कार्यकारिणी समिति, केंद्रीय सेवादल अधिकारीगण तथा हजारों श्रद्धालु, सेवा-भाव से ओतप्रोत होकर उपस्थित रहे। मीडिया सहायक लादूलाल ने बताया कि सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित का हार्दिक अभिन्नदन संत निरंकारी मण्डल की प्रधान राजकुमारी एवं संत निरंकारी मण्डल के सचिव जोगिन्दर सुखीजा ने पुष्प गुच्छ भेंट करते हुए शुभ आशीषों की कामना की। समागम सेवा के शुभारम्भ पर भीलवाड़ा सहित हजारों की संख्यां में उपस्थित दर्शनाभिलाषी श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने फरमाया कि समागम सेवा के पावन अवसर पर आकर अत्यंत खुशी हो रही है।

लगभग 600 एकड़ में फैला यह समागम स्थल सेवा, श्रद्धा और मानवता का प्रतीक है। यहाँ लाखों भक्तों के निवास, भोजन, स्वास्थ्य, आवागमन और सुरक्षा जैसी सभी व्यवस्थाएँ पूर्ण श्रद्धा और निःस्वार्थ भाव से सम्पन्न की जाती है। देश-विदेश से आए संतजन, सेवा में रत महात्मा और हर वर्ग के श्रद्धालु इस महा उत्सव में सम्मिलित होकर एकत्व, समर्पण और आत्मिक आनंद का अनुभव करते हैं। इस वर्ष समागम का शीर्षक ‘आत्म मंथन’ है जो हमें अपने भीतर झाँकने, विचारों और कर्मों को आत्मज्ञान से शुद्ध करने की प्रेरणा देता है। यह यात्रा सतगुरु द्वारा प्रदत्त ब्रह्मज्ञान से आरंभ होती है, जो आत्मिक शांति, आनंद और मोक्ष का द्वार खोलती है।

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