जानिए योग एक्सपर्ट ओम कालवा के साथ योग साहित्य से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां
श्री डूंगरगढ़। प्रदेश के लोकप्रिय योग एक्सपर्ट ओम कालवा ने जानकारी देते हुए बताया। वर्तमान समय में बहुत ही जरूरी है योग शिक्षकों के लिए कि योग विषय में व्यवहारिक ज्ञान होना और उनके साथ ग्रंथों की जानकारी। इसी कड़ी में कालवा कहते हैं कि योग ही स्वास्थ्य है स्वास्थ्य ही धन है।
क्या आप चाहते है कि आप हमेशा स्वस्थ, सुन्दर और शक्तिशाली बने रहे ?
आइये ! स्वस्थ एवं सुखी जीवन के लिए चले योग साधना की ओर….
जीवन परमात्मा की सबसे बड़ी सौगात है, जीवन बेशकीमती है, जीवन को छोटे उदेश्यों के लिए जीना जीवन का अपमान है। अपनी शक्तियों को तुच्छ कामों में व्यर्थ खर्च करना, व्यसनों एवं वासनाओं में जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद करना, जीवन का तिरस्कार है। जीवन अनन्त है, हमारी शक्तियाँ भी अनन्त है, हमारी प्रतिभाएँ भी अनन्त है। हम अपनी शरीरिक, मानसिक, सामाजिक व अध्यात्मिक शक्तियों का पूरा उपयोग करें तो हम पुरूष से महापुरूष व युगपुरूष मानव से महा मानव बन जाते है और योग साधना हमारे जीवन के सभी अवरूद्ध मार्गों को खोलने का काम करती है।
प्रमुख उदेश्य
(1) भारतीय योग परम्परा को बढ़ावा देना।
(2) विद्यार्थी जीवन से ही योग को अपने जीवन मे अपनाने के लिए प्रेरित करना।
(3) “स्वस्थ भारत” तथा “रोग मुक्त भारत” का निर्माण करना।
(4) योग को विश्व में लागू कर दिया गया है और 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है।
(5) योग शिक्षण व प्रशिक्षण तथा योग के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने के लिए प्रेरित करना।
योग उत्पति
योग आज कोई नई बात नहीं है, योग का उल्लेख तो सभी धर्म-ग्रथों में मिलता है। विश्व के सभी चिकित्सकों ने योग की महत्ता को जाना और माना है। योग के द्वारा असाध्य से असाध्य रोगों पर काबू पाया जा सकता है। आज से हजारों वर्ष पूर्व ‘महर्षि पतंजलि’ ने माना कि हमारी सभी समस्याओं की जड़ ‘सम्यक ज्ञान का न होना है’ जब हमें किसी जटिल वस्तु का ज्ञान नहीं होगा तो समस्या अवश्य आएगी तथा मानव शरीर की रचना जीतनी जटिल है, उससे अधिक मानव के मन की है। इसकी व्यवहारिक प्रक्रिया को समझाने के लिए योग सूत्र की रचना की।
योग का अर्थ जोड़ (जोड़ना), संयोजन, मिलन, संयमन, कार्य प्रवणता, संयोग तथा समाधि।
महर्षि पतंजलि के अनुसार “योगश्चित् वृत्ति निरोधः ” यानि चित की वृत्तियों को रोकना ही योग है।
योग का शाब्दिक अर्थ “शुद्ध सात्विक तनाव रहित जीवन जीने की कला है”
हमारे शरीर में तीन प्रकार की शक्तियाँ संचालित होती है :-
(1) शारीरिक (2) मानसिक (3) अध्यात्मिक
योग दर्शन के अनुसार योग के आठ अंश है।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि ।
महर्षि पतंजलि के अनुसार आसन की परिभाषा
“स्थिर सुखमासनम”
(सुख पूर्वक स्थिर होकर बैठने की स्थिति को आसन कहते है।) प्राणायाम की परिभाषा श्वास प्रकिया की गति में भेद करना या अंतर को बढ़ाना प्राणायाम कहलाता है।
योग की भाषा में संस्कृत के कुछ शब्द
पूरक श्वास को भरना।
रेचक श्वास को खाली करना।
कुम्भक श्वास को रोकना।
आंतरिक कुम्भक श्वास को अन्दर रोकना।
बाह्य कुम्भक श्वास को बाहर रोकना।
बन्ध ( बांधना या संकुचित करना )
जालन्धर बन्ध ( ठुडी को कण्ठ कूप में लगाना )
उड़ीयान बन्ध ( पेट को सिकुड़ना )
मूल बंध ( गुदे भाग को संकुचित करना )
स्वर के तीन भेद माने जाते है :-
(1) श्वास लेना (2) श्वास छोड़ना (3) श्वास रोकना
इड़ा स्वर – बांया नाक (शीतल)
पिंगला स्वर – दायां नाक (गर्म)
मानव शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है :-
( वो पंचतत्व हाथ की अंगुलियो में विधमान है )
प्रतीक
(1) अंगुष्ठ ( अग्नि )
(2) तर्जनी (वायु )
(3) मध्यमा ( आकाश )
(4) अनामिका ( पृथ्वी )
(5) कनिष्ठा ( जल )
नोट : हमारे चैनल के साथ जुड़े रहे और आपको मिलती है जीवनोपयोगी ज्ञान और वो भी योग एक्सपर्ट ओम कालवा के द्वारा।