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संडे स्पेशल : कुछ बनते ही उसके घर पर खूब आने लगे लोग – ड़ॉ नारायण प्रसाद मारु

कुछ बनते ही उसके घर पर खूब आने लगे लोग

फल के लगते ही पेड़ पर खूब मंडराने लगे लोग

छोड़ दिया था जिन राहों पर अकेला उसे कभी
मंज़िल के मिलते ही रस्तों को भुलाने लगे लोग

पराग को लाते हुए किसी ने नहीं देखा उसे
छत्ते के शहद से भरते ही खूब ललचाने लगे लोग

गुमनाम ही गुजरता रहा हरदम वो इन गोलियों से
बुलंदी पर पहुंचते ही फ़ूलों को बरसाने लगे लोग

पत्थर जो हमेशा ठोकरों पर ही रहा जमाने के
बनते ही उसके मूर्त सिर पर उठाने लगे लोग

जब तक था कोयला कोई उसे हाथो मे भी नहीं लेता
आते ही उसके अंदर चमक ताज में लगाने लगे लोग

बिखरे अल्फाज़ जो अब तक किसी काम के नहीं थे
पिरोया एक माला मे तो अब उसे गुनगुनाने लगे लोग

डॉ मारू ‘मस्ताना’


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