बात साल 1954 का है जब आसमान से एक ऐसा कहर टूटा जिसने ना सिर्फ जापान के हिरोशिमा और नागासाकी को खाक कर दिया, बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों को दर्द और बीमारी भी दे दी. अमेरिका द्वारा गिराया गया “लिटिल बॉय” नाम का परमाणु बम सिर्फ कुछ सेकंड में सबकुछ बदल चुका था. परमाणु बम का धमाका किसी आम विस्फोट जैसा नहीं होता. इसके साथ निकलने वाली रेडिएशन यानी कि विकिरण इंसानी शरीर पर ऐसा असर डालती है, जो बरसों तक पीछा नहीं छोड़ता. इसीलिए हिरोशिमा पर हुआ हमला सिर्फ एक दिन का हादसा नहीं था, ये एक धीमी मौत की शुरुआत थी.
परमाणु हमले के बाद बीमारी
आरएमएल अस्पताल में मेडिसिन विभाग में डॉ सुभाष गिरि बताते हैं किपरमाणु हमले के बाद शरीर पर सबसे पहला असर होता है रेडिएशन का. ये विकिरण डीएनए को नुकसान पहुंचाती है. यानी हमारी कोशिकाएं टूटने लगती हैं. नतीजा? ल्यूकेमिया जैसी खून की बीमारियां, कैंसर और इम्यून सिस्टम का फेल होना.
- बम गिरने के कुछ ही महीनों के अंदर हजारों लोगों की मौत का कारण यही रेडिएशन बना. परमाणु हमले के पांच से छह साल बाद, लोगों में ल्यूकेमिया की वृद्धि हुई. लगभग एक दशक के बाद, लोग थायराइड, स्तन, फेफड़े और अन्य कैंसर से पीड़ित होने लगे, जो सामान्य दर से काफी अधिक था.
- परमाणु हमले के से प्रभावित लोग सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी बीमार होने लगे. इन लोगों में रेडिएशन से होने वाली बीमारियों का डर बढ़ने लगा. मनोचिकित्सकों ने लोगों में न्यूरोटिक लक्षणों, सामान्य थकान, भूलने की बीमारी और एकाग्रता की कमी के साथ ऑटोनोमिक नर्व इम्बेलेंस जैसी बीमारियों का पता लगाया.
पीढ़ी दर पीढ़ी लोग हो रहे बीमार
- रेडिएशन की वजह से प्रेग्नेंट महिलाओं के बच्चों में जन्म से जुड़ी गंभीर बीमारियां देखने को मिली. छोटे-छोटे बच्चे ब्रेन डैमेज, दिल की खराबी और मांसपेशियों की कमजोरी जैसी दिक्कतों के साथ जन्म लेने लगे. कई मामलों में तो बच्चे विकलांग पैदा हुए.
- इतना सब सुनकर लगता है कि शायद कुछ सालों में हालात सुधर गए होंगे. लेकिन नहीं. हिरोशिमा हमले के 10 से 15 साल बाद भी कैंसर के मामले लगातार बढ़ते रहे. लोग जो उस समय रेडिएशन के संपर्क में आए थे, उनकी आने वाली पीढ़ियां भी बीमार होती रहीं. यानी असर सिर्फ उसी पीढ़ी तक सीमित नहीं रहा.
रेडिएशन के कारण खाली पड़ें हैं गांव
एक और हैरान करने वाली बात ये है कि परमाणु हमला होने के सालों बाद तक मिट्टी, पानी और हवा में रेडिएशन की मौजूदगी बनी रही. यानी अगर कोई उस शहर में रहने भी लग जाए तो भी बीमार होने का खतरा बना रहता है. आज भी जापान में ऐसे सर्वाइवर मौजूद हैं जो इस हमले के दर्द को अपने शरीर और दिमाग में ढो रहे हैं.
क्या इससे बचाव मुमकिन है?
रेडिएशन के असर से बचने के लिए तुरंत मेडिकल जांच और इलाज सबसे जरूरी कदम होता है. शरीर में रेडिएशन का स्तर मापने के लिए खास तरह की टेस्टिंग होती है. इसके अलावा Iodine tablets और कुछ खास दवाएं दी जाती हैं जो रेडियोएक्टिव तत्वों को शरीर से बाहर निकालने में मदद करती हैं.
रेडिएशन के संपर्क में आने पर लक्षण
लगातार थकान, त्वचा पर जलन या छाले, उल्टी, बाल झड़ना, या बार-बार बुखार आना जैसे संकेत हो सकते हैं रेडिएशन एक्सपोजर के. इसके अलावा लक्षण दिखते ही इलाज कराना जरूरी है.
6 अगस्त को हिरोशिमा डे मनाकर हम सिर्फ उन लोगों को याद नहीं करते जो उस हमले में मारे गए, बल्कि ये भी याद दिलाते हैं कि इंसानी लालच और युद्ध की कीमत आम लोगों ने कैसे चुकाई. विज्ञान के इस खतरनाक चेहरे से सबक लेने की ज़रूरत है. ताकि कभी फिर कोई शहर हिरोशिमा ना बने.



















