जयपुर. 27 जुलाई को विश्व सिर और गर्दन कैंसर दिवस है. यह दिन सिर और गर्दन के कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने और रोकथाम के उपायों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है. इसे इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ हेड एंड नेक ऑन्कोलॉजी सोसाइटीज (IFHNOS) की ओर से स्थापित किया गया है. इसका मकसद सिर और गर्दन के कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाना और जल्द पहचान और रोकथाम के बारे में लोगों को शिक्षित करना है. इस तरह के कैंसर में सिर और गर्दन के कैंसर में मुंह, नाक, साइनस, गले, स्वरयंत्र, थायरॉयड और लार ग्रंथियों के कैंसर शामिल हैं. हैड एंड नेक कैंसर की रोकथाम और समय पर इलाज के लिए आमजन में जागरूकता, नियमित स्क्रीनिंग, तंबाकू निषेध और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करना जरूरी है. विशेषज्ञों की राय है कि यदि शुरुआती चरण में कैंसर का पता चल जाए, तो कामयाबी से उसका इलाज मुमकिन है.
70 फ़ीसदी को हेड एंड नेक कैंसर एडवांस्ड स्टेज में : हेड एंड नेक कैंसर (मुंह, गले, जीभ, टॉन्सिल का कैंसर) अब देश के सबसे गंभीर कैंसर रोगों में शुमार हो चुका है. नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (NCRP) इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में 70% से अधिक मरीज ऐसे हैं, जो एडवांस स्टेज में अस्पताल पहुंचते हैं, जिससे इलाज में काफी मुश्किलें आती हैं. राजस्थान की स्थिति भी इससे अलग नहीं है. जयपुर के भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल की रिपोर्ट बताती है कि साल 2024 में कुल 10,363 नए कैंसर मरीज पंजीकृत हुए, जिनमें से करीब 40% मरीज हेड एंड नेक कैंसर से ग्रसित थे. यह आंकड़ा जाहिर करता है कि यह कैंसर राज्य के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बन चुका है.
तंबाकू ही नहीं, अन्य कारण भी जिम्मेदार : ऑन्को-सर्जन डॉ. नरेश लेडवानी के अनुसार, अब तक यह माना जाता रहा है कि गुटखा, तंबाकू और सिगरेट जैसे उत्पादों के सेवन से ही हेड एंड नेक कैंसर होता है. लेकिन अब यह स्पष्ट हो चुका है कि वायरस (एचपीवी और ईबीवी), नुकीले दांत, और ओरल हाइजीन की कमी भी इसके अहम कारण हैं. डॉ. लेडवानी बताते हैं कि पहले यह बीमारी 45 साल से अधिक उम्र के लोगों में देखी जाती थी, लेकिन अब 35 वर्ष से कम उम्र के युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं.
समय पर स्क्रीनिंग से बचाई जा सकती है जान : रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. नरेश जाखोटिया ने बताया कि अगर समय रहते इस कैंसर की पहचान हो जाए, तो पहली स्टेज में 85-90% तक रोगी पूरी तरह ठीक हो सकते हैं. इसके लिए स्क्रीनिंग शिविरों में भागीदारी और जागरूकता बेहद जरूरी है.
इलाज के तरीके हुए एडवांस : मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. पवन अग्रवाल के अनुसार, अब हेड एंड नेक कैंसर के इलाज में इम्यूनोथेरेपी के अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं. वहीं, सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. नरेश लेडवानी ने बताया कि अब सर्जरी करते समय ऑर्गन को संरक्षित रखने पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है. मिनिमल इनवेसिव सर्जरी और रिकंस्ट्रक्टिव प्लास्टिक सर्जरी के जरिए गले और चेहरे के प्रभावित हिस्सों का पुनर्निर्माण संभव हो पा रहा है. रेडिएशन तकनीक में भी अब आधुनिक लीनियर एक्सीलेटर मशीन के जरिए कम्प्यूटराइज ट्रीटमेंट किया जा रहा है. इसका लाभ यह है कि रेडिएशन के बाद न तो त्वचा काली पड़ती है, न ही खाना निगलने में परेशानी होती है. लार ग्रंथियां भी सही से काम करती हैं.
नेशनल डेटा से स्थिति गंभीर : NCRP की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 13.92 लाख कैंसर मरीज दर्ज किए गए. इनमें सबसे ज्यादा केस ब्रेस्ट, लंग, मुंह, सर्विक्स और जीभ के कैंसर के थे. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि मुंह और गले के कैंसर के 66.6% मरीज, सर्विक्स कैंसर के 60% मरीज , ब्रेस्ट कैंसर के 57% मरीज, पेट के कैंसर के 50.8% मरीज ऐसे हैं जो बीमारी की एडवांस स्टेज में अस्पताल पहुंचे.
- मुंह और गले के कैंसर के 66.6% मरीज
- सर्विक्स कैंसर के 60% मरीज
- ब्रेस्ट कैंसर के 57% मरीज
- पेट के कैंसर के 50.8% मरीज
राजस्थान में आंकड़े चिंताजनक : भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल, जयपुर में NCRP के तहत साल 2012 से लगातार कैंसर मरीजों का डेटा रिकॉर्ड किया जा रहा है. साल 2024 में 10,363 नए कैंसर मरीज पंजीकृत हुए, जिनमें करीब 40% हेड एंड नेक कैंसर से पीड़ित थे. यह संख्या बताती है कि राजस्थान में ओरल हाइजीन, तंबाकू सेवन और स्क्रीनिंग की कमी अब राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था के सामने बड़ी चुनौती बन चुकी है.



















