चीन ब्रह्मपुत्र पर सबसे बड़ी यारलुंग जांग्बो जल विद्युत परियोजना बना रहा है, इसकी लागत तकरीबन 170 बिलियन डॉलर आएगी. चीन का ऐसा दावा है कि इससे प्रतिवर्ष इतनी बिजली पैदा की जा सकेगी, जितनी ब्रिटेन की जरूरत है. बेशक चीन इस बांध को अपने लिए वरदान मान रहा हो, मगर विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का ये दांव उल्टा भी पड़ सकता है, ऐसे एक दो नहीं बल्कि चार कारण जिससे बांध चीन की ओर ही बैकफायर कर सकता है.
चीन के प्रधानमंत्री ने पिछले सप्ताह इस जल विद्युत परियोजना का शिलान्यास किया था. द डेली स्टार की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान बीजिंग की ओर से इस बांध को अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने वाला बताया गया. इस योजना के तहत चीन 50 किलोमीटर लंबे उस हिस्से में पांच बांध बनाने जा रहा है, जहां नदी तिब्बती पठार 2000 मीटर नीचे गिरती है. इस योजना के 2030 तक पूरा होने की उम्मीद है. हालांकि इस योजना को चीन के लिए फायदे का ज्यादा उसके लिए नुकसान का सौदा माना जा रहा है. एक्सपर्ट ये मानते हैं कि ये परियोजना चीन के लिए पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसी भी हो सकती है. आइए समझते हैं कैसे?
भारत बना लेगा दो बांध
बांध की वजह से भारत पर निश्चित ही प्रभाव पड़ेगा, मगर उतना नहीं जितना बताया गया है. दरअसल चीन की योजना रन ऑफ द रिवर जल विद्युत परियोजना की है, इसका अर्थ कि पानी ब्रह्मपुत्र के सामान्य मार्ग के साथ सामान्य रूप से बहेगा. हालांकि भारत ने खुद को पहले ही इसके लिए तैयार कर लिया है. भारत ने सियांग नदी पर दो बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया है, इसमें अरुणाचल प्रदेश में 11.5 गीगावाट की एक परियोजना शामिल है जो भारत की सबसे बड़ी परियोजना होगी. एरिजोना विश्वविद्यालय में भारत-चीन जल संबंधों के विशेषज्ञ सायनांग्शु मोडक के मुताबिक ये बांध नदी पर भारत के दावे को पुष्ट करने के लिए है, अगर चीन कभी पानी को मोड़ने की कोशिश करता है तो भारत इस बांध के जरिए ही अपनी बात मजबूती से रख सकता है. यानी अगर भारत यह दिखा सके वह इस पानी का उपयोग कर रहा है तो चीन इसे मोड़ नहीं पाएगा.
बांग्लादेश होगा नाराज
ब्रह्मपुत्र नदी भारत होते हुए बांग्लादेश ही जाती है, ऐसे में वहां जल सुरक्षा को लेकर आशंकाएं बढ़ गई हैं. यह देश सिंचाई, जल विद्युत और पेयजल के लिए इसी नदी पर निर्भर है. कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर माइकल स्टेकलर के अनुसार, पानी के अलावा, इस बांध से नीचे की ओर बहने वाली तलछट कम होगी, जो मैदानों में कृषि के लिए आवश्यक पोषक तत्व ले जाती है. हालांकि बीजिंग के विदेश मंत्रालय ने ये कहा है कि “यारलुंग जांग्बो जलविद्युत परियोजना का निर्माण चीन के संप्रभु मामलों के दायरे में है. मगर माना जा रहा है कि बांध बनने से बांग्लादेश पर विपरीत असर पड़ेगा जिससे यह देश चीन से नाराज हो सकता है.
भूकंप क्षेत्र में निर्माण
चीन की सबसे पहली चुनौती को बांध को बरकरार रखने की होगी. दरअसल जहां पर बांध का निर्माण कराया जा रहा है यह क्षेत्र भूकंप क्षेत्र कहा जाता है, ऐसे में यह क्षेत्र भूस्खलन, हिमनद, झीलों में बाढ़ और तूफान के प्रति संवेदनशील है. अगर हाल ही की बात करें तो इस साल की शुरुआत में तिब्बत में विनाशकारी भूकंप आया था, जिसके बाद इस क्षेत्र में बांध निर्माण की होड़ ने सुरक्षा एक्सपर्ट की चिंता बढ़ा दी थी.
चार माह तक निगरानी नहीं
बांध भूकंप वाले क्षेत्र में तो बन ही रहा है, यह इलाका ऐसा है जहां भीषण सर्दी होती है, इसीलिए इसके निर्माण समय को फिलहाल चार माह तक सीमित किया गया है. बांध बन जाने के बाद भी यहां यही हाल होगा, भीषण सर्दी के मौसम में बांध की निगरानी मुश्किल हो जाएगी.




















