राजस्थान की सियासत में उस वक्त जबरदस्त उबाल आ गया जब भारतीय आदिवासी पार्टी (बीटीपी) के डूंगरपुर-बांसवाड़ा से सांसद राजकुमार रोत ने सोशल मीडिया पर अलग भील प्रदेश का नक्शा पोस्ट कर दिया। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर अपलोड किए गए इस नक्शे में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों को मिलाकर नए राज्य “भील प्रदेश” का स्वरूप दिखाया गया है। इस कदम ने न सिर्फ राजनीतिक भूचाल खड़ा किया, बल्कि आदिवासी राजनीति को लेकर भी बहस तेज कर दी।
भाजपा ने सांसद रोत की इस हरकत को सीधे तौर पर “राजस्थान की एकता पर चोट” बताया है। पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे “शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण राजनीतिक स्टंट” करार दिया। उन्होंने कहा,
राजस्थान की आन, बान और शान को तोड़ने की साजिश कभी सफल नहीं होगी। यह नक्शा सिर्फ भ्रम फैलाने और आदिवासी समाज के नाम पर सस्ती लोकप्रियता पाने की चाल है। आज कोई भील प्रदेश की बात करेगा, कल कोई मरूप्रदेश की मांग करेगा – क्या हम अपने इतिहास और गौरव को टुकड़ों में बांट देंगे?”
राठौड़ ने रोत के नक्शे को “जहर घोलने वाला कृत्य” बताते हुए इसे “जनमानस और संविधान के खिलाफ” बताया।
सांसद रोत का पलटवार: “यह ऐतिहासिक मांग है, ना कि साजिश”
वहीं सांसद राजकुमार रोत ने पलटवार करते हुए कहा कि यह मांग कोई नई नहीं है।
“भील प्रदेश की मांग आजादी से भी पहले की है। 1913 में गोविंद गुरु के नेतृत्व में मानगढ़ धाम पर 1500 से ज्यादा आदिवासी शहीद हुए थे। आजादी के बाद इस पूरे क्षेत्र को चार राज्यों में बांटकर आदिवासियों के साथ अन्याय किया गया। यह मांग आदिवासी संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिए है, न कि राजनीति चमकाने के लिए।”
रोत का कहना है कि अलग राज्य की मांग संवैधानिक दायरे में है और इसका मकसद आदिवासियों के अधिकार और सम्मान को सुरक्षित रखना है।
आदिवासी चेहरा बोले- “मांग बेकार है, योजनाओं से मिल रहा हक”
भाजपा के ही आदिवासी चेहरे और राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने इस पूरे मामले को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा भील प्रदेश की मांग पूरी तरह बेबुनियाद और बेकार है। केंद्र और राज्य की योजनाएं आदिवासी समुदाय तक पहुंच रही हैं। अब अलग राज्य की कोई जरूरत नहीं है।”
उन्होंने जोर दिया कि सरकार का फोकस अंतिम पंक्ति तक योजनाएं पहुंचाने पर है और ऐसे में कोई नया राज्य बनाने का तर्क नहीं बनता।
सियासी मकसद या संस्कृति की पुकार?
सवाल उठ रहा है कि क्या भील प्रदेश की मांग फिर से उठाकर बीटीपी और राजकुमार रोत अपने राजनीतिक वजूद को मजबूत करना चाहते हैं या वाकई यह आदिवासी समाज की सांस्कृतिक अस्मिता की लड़ाई है?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस नक्शे को पोस्ट करना एक सोशल मीडिया स्टंट हो सकता है, लेकिन इससे राजस्थान की एकता और क्षेत्रीय भावनाएं जरूर आहत हुई हैं।
नक्शा पोस्ट कर बढ़ा तनाव
भील प्रदेश की मांग नई नहीं है, लेकिन सांसद के नक्शा पोस्ट करने से यह मुद्दा फिर से सुर्खियों में आ गया है। जहां एक ओर इस पर सियासी बयानबाजी चरम पर है, वहीं दूसरी ओर यह भी स्पष्ट है कि इस मांग को लेकर आदिवासी समाज के भीतर भी एकराय नहीं है।




















