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क्या बाथरूम कैंपिंग सच में मेंटल हेल्थ का इलाज है या बस एक नया ट्रेंड?

आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में, जहां वर्कप्लेस की डेडलाइन हो या कॉलेज की असाइनमेंट, हर तरफ़ प्रेशर ही प्रेशर है. ऐसे माहौल में Gen Z यानी आज की युवा पीढ़ी ने एक ऐसा अनोखा तरीका खोज निकाला है जिससे वो थोड़ी देर खुद को शांत कर सके और वो है बाथरूम में जाकर अकेले बैठना. इसे सोशल मीडिया पर लोग बाथरूम कैंपिंग कहने लगे हैं. जब काम या भीड़ बहुत ज़्यादा लगने लगे, तो ये युवा बाथरूम में जाकर मोबाइल पर म्यूज़िक सुनते हैं.

जब ऑफिस, कॉलेज या सोशल माहौल बहुत ज़्यादा भारी लगने लगता है, तो ये युवा थोड़ी देर के लिए बाथरूम में चले जाते हैं—वहां बैठकर म्यूज़िक सुनते हैं, रील्स स्क्रॉल करते हैं या बस कुछ मिनट शांति में रहते हैं. बाथरूम उनके लिए एक तरह का मिनी ‘सेफ स्पेस’ बन गया है, जहां वो बिना किसी रुकावट या जजमेंट के, खुद को रीसेट कर पाते हैं. ये ट्रेंड मज़ाक नहीं, बल्कि इस बात का संकेत है कि आज की पीढ़ी अपनी मेंटल हेल्थ को गंभीरता से ले रही है.

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मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ देर रील्स देखते हैं या बस आंखें बंद करके सांसों को महसूस करते हैं. यह उनका एक छोटा सा ‘सेफ स्पेस’ बन गया है, जहां कोई दखल नहीं देता और दिमाग को थोड़ी राहत मिल जाती है. आजकल Gen Z यानी आज की नई पीढ़ी, जो 1997 से 2012 के बीच पैदा हुई है. अपनी मानसिक सेहत को लेकर काफी सजग हो गई है. वो अब मानसिक थकावट, तनाव और ओवरथिंकिंग को हल्के में नहीं लेती.

क्या है बाथरूम कैंपिंग

बाथरूम कैंपिंग. ये शब्द सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन इसका मतलब बड़ा सीधा है जब भी ऑफिस, कॉलेज या भीड़-भाड़ वाली जगह पर थकावट महसूस होती है तो Gen Z कुछ देर के लिए बाथरूम में जाकर खुद को अकेला समय देती है. इस ट्रेंड में युवा लोग काम के बीच या सोशल इंटरैक्शन से ब्रेक लेने के लिए वॉशरूम में कुछ मिनट बिताते हैं. वहां वो मोबाइल पर म्यूज़िक सुनते हैं, Tik-Tok या Instagram Reels स्क्रॉल करते हैं या कभी-कभी बस आंखें बंद करके गहरी सांस लेते हैं.

क्या बाथरूम कैंपिंग एक सेफ स्पेस है?

गाजियाबाद के जिला अस्पताल में मानसिक रोग विभाग में डॉ. एके कुमार कहते हैं कि बाथरूम कैंपिंग एक नया चलन है. जो कुछ शहरी इलाकों में शुरू हुआ है. बाथरूम कैंपिंग का ये कुछ मिनट का ब्रेक उन्हें अंदर से शांत करता है उन्हें थोड़ा रीसेट करता है, ताकि वे फिर से अपनी जिम्मेदारियों में फोकस कर सकें. बाथरूम को ये पीढ़ी एक सेफ स्पेस की तरह देखती है एक ऐसी जगह जहां कोई उन्हें जज नहीं करता, कोई अचानक सवाल नहीं करता और कोई उनके स्पेस में दखल नहीं देता. यह ट्रेंड हमें बताता है कि आज की युवा पीढ़ी अपने भावनात्मक स्वास्थ्य को कितना महत्व दे रही है, और कैसे वो अपने लिए छोटी-छोटी राहत की जगहें ढूंढ़ रही है. हालांकि ये तरीका थोड़ी राहत दे सकता है, लेकिन अगर खराब मेंटल हेल्थ का कुछ भी लक्षण है तो डॉक्टर से ही सलाह लेना बेहतर है.

बाथरूम कैंपिंग में दिक्क्त कहां है

इसका दूसरा पहलू भी है. डॉ कुमार का कहना है कि अगर किसी को बार-बार बाहरी दुनिया से कटने की जरूरत महसूस हो रही है या वो अक्सर सामाजिक स्थिति से बचने के लिए खुद को अलग कर रहा है तो ये केवल एक ब्रेक नहीं बल्कि चिंता, ओवरस्टिम्युलेशन, सोशल एंग्जायटी या बर्नआउट का लक्षण हो सकता है. यानी बाथरूम कैंपिंग सिर्फ एक ट्रेंड नहीं, एक संकेत भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति भीतर से जूझ रहा है.

इस ट्रेंड को सोशल मीडिया पर भी खूब शेयर किया जा रहा है. कुछ लोग इसे modern mindfulness कह रहे हैं, जबकि कुछ इसे avoidance behavior मानते हैं. पर इसमें कोई शक नहीं कि Gen Z में आत्म-जागरूकता बहुत अधिक है. वो जानती है कि उसे कब रुकना है, कब सांस लेनी है और कब अपने लिए दो पल चुराने हैं चाहे वो जगह बाथरूम ही क्यों न हो.

यही है कि Gen Z के इस ट्रेंड को नजरअंदाज करने की बजाय समझने की जरूरत है. क्योंकि ये सिर्फ एक मज़ाकिया चलन नहीं, बल्कि मेंटल हेल्थ के प्रति उनकी संवेदनशीलता और समझ का प्रतीक है.

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