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कलचुरी राजाओं ने 13 वीं सदी में बनवाया था शिव मंदिर…इसकी खजुराओ से की जाती है तुलना

छत्तीसगढ़ को प्राचीनकाल में दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था. वक्त के साथ सभ्यता बदली, लेकिन जो नहीं बदला वो है इस मंदिर पर लोगों की आस्था. उन सभ्यताओं के चिन्ह आज भी छत्तीसगढ़ में मौजूद हैं. यहां कई प्राचीन स्थल आज भी हैं. देवबलौदा का महादेव मंदिर आस्था और इतिहास का ऐसा ही एक स्थल है. जो कला, इतिहास और आस्था की त्रिवेणी है.

दुर्ग जिले के देवबलोदा का ये प्राचीन महादेव का स्वंयभू शिव मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र है. सालों से यहां भक्तों की कतारें कम नहीं हुईं. हर साल यहां महाशिवरात्रि में भक्तों का मेला लगता है. कहा जाता है कि यहां महादेव की रक्षा नाग करते हैं. माना जाता है कि इस मंदिर में शिवलिंग भूगर्भ से स्वयं उत्पन्न हुआ है.

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खजुराहो से की जाती है तुलना

ये धार्मिक स्थल दुर्ग जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूरी पर है. इस मंदिर को कलचुरी राजाओं ने तेंरहवी सदी में बनवाया था. इस मंदिर को प्राचीन संस्मारक एवं पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है. इस मंदिर की तुलना भोरमदेव, खजुराहो की गुफाओं से की जाती है.

मंदिर का कारीगर ने कुंड में कूदकर की थी आत्महत्या

यहां महाशिवरात्रि में प्रतिवर्ष एक बड़ा मेला लगता है. दूर-दराज से भक्त अपने भोले से मिलने यहां आते हैं. इस मंदिर को लेकर कई किन्वंतियां प्रचलित हैं. पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर बनाने वाला कारीगर निर्वस्त्र होकर मंदिर का निर्माण करता था. उसकी पत्नी हमेशा खाना लाया करती थी, लेकिन छहमासी की एक रात पत्नी की जगह अचानक उसकी बहन ने भोजन ले आई, जिसके बाद शर्मसार होकर शिल्पी ने कुंड में छलांग लगा दी. बहन ने देखा कि भाई कुंड में कूद गया तो बहन ने भी मंदिर के बगल के तालाब में छलांग लगा दी. उस तालाब को करसा तालाब के नाम से जाना जाता है क्योकि जब वह अपने भाई के लिए भोजन लेकर आई थी तो भोजन के साथ सिर पर पानी का कलश भी था.

ये मंदिर आज भी अधूरा है

इस मंदिर में ये तालाब आज भी मौजूद है जो लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र है. कहा जाता है कि शिल्पी के कूद जाने से मंदिर का काम पूरा नहीं हो पाया जिसके साक्ष्य भी मिलते हैं क्योंकि ऊपरी हिस्सा आज तक अधूरा पड़ा है.

मंदिर के कुंड में 12 माह रहता है जल

जानकारों की मानें तो मंदिर परिसर में बने कुंड के अंदर एक गुप्त सुरंग भी है, जो सीधे आरंग के मंदिर के पास निकलती है. मंदिर के कुंड में 12 माह पानी भरा रहता है. भक्तों का मानना है कि यहां मन मांगी मुराद पूरी होती है. देवबलौदा का ये महादेव मंदिर कला और आस्था की स्थली माना जाता है.

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