जयपुर: प्रकृति में ऐसे अनेक पौधे पाए जाते हैं, जो आयुर्वेद और धार्मिक दृष्टि से काफी अधिक महत्वपूर्ण होते हैं. ऐसा ही एक पौधा है चिरमी, यह पौधा दिखने में बहुत सुंदर होता है. चिरमी को गूंजा भी कहा जाता है. इसका उपयोग तांत्रिक विद्या में भी किया जाता है. आयुर्वेद में चिरमी का उपयोग कई दवाइयां बनाने में भी किया जाता है.
आयुर्वेदिक डॉक्टर नरेंद्र कुमार ने बताया कि चिरमी के बीज लाला, सफेद और काले रंग के होते हैं. इसमें लाल रंग का बीज देखने में बहुत अच्छा लगता है. यह एक लाल मोती की तरह होता है. धर्म विशेषज्ञ चंद्रप्रकाश ढांढण ने बताया कि चिरमी को धन, समृद्धि और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है. तंत्र मंत्र में इसका उपयोग किया जाता है.
सभी बीजों का वजन रहता है एक समान
ज्वेलर्स पूरणमल सोनी ने बताया कि चिरमी का उपयोग प्राचीन समय से होता आ रहा है. जब पुराने समय में सोना चांदी जैसी कीमती चीजों को तोलने के लिए निश्चित पैमाना नहीं होता था तब, चिरमी के बीजों का उपयोग किया जाता था. सुनार द्वारा उस समय लाल रंग के चिरमी के बीजों का उपयोग किया जाता था. आज भी बहुत सारी सुनार की दुकानों पर यह बीज आसानी से मिल जाते हैं. इसका कारण ये है कि सभी चिरमी बीज का वजन एक सम्मान होता है. इसलिए सोना और चांदी के सटीक नापतोल के लिए इन बीजों का उपयोग किया जाता था.
उन्होंने बताया लाल रंग चिरमी के बीजों को सोने की अंगूठी में मोती की तरह जड़ा जाता है. सोने की अंगूठी में चिरमी के बीजों को अंगूठी पहनने से व्यक्ति आर्थिक रूप से संपन्न बनता है. इसके अलावा बुरी नजर से बचाने के लिए भी किया जाता है.
इन बीमारियों में रामबाण है चिरमी
आयुर्वेदिक डॉक्टर नरेंद्र कुमार ने बताया कि इस लाल चिरमी में भरपूर मात्रा में औषधि गुण मौजूद होते हैं. यह औषधीय गुण डायबिटीज को नियंत्रित करता है. वहीं लाल चिरमी पेशाब की समस्या में भी बहुत फ़ायदेमंद होते हैं. इसके अलावा यह कुष्ठ रोगों इलाज के लिए काम में लिए जाते हैं. इसके पेड़ की जड़ को जल में घीसकर आंखों में डालने से आंखों के सामने अंधेरा आना और रतौंधी जैसी समस्याएं तुरंत दूर होती हैं. वात पित दोष में चिरमी का प्रयोग खास फायेदमंद माना जाता है. बुखार के ईलाज में चिरमी उपयोगी फल होते हैं.




















