21 जून यानी साल का वो दिन जब धरती का उत्तरी गोलार्ध सूरज की ओर सबसे ज्यादा झुका होता है. इस दिन को ‘समर सोलस्टिस’ यानी ग्रीष्म संक्रांति कहा जाता है. 2025 में ये खगोलीय घटना 21 जून को सुबह 8:12 बजे (भारतीय समयानुसार) घटेगी. इस दिन सूर्य अपने उच्चतम बिंदु पर पहुंचता है, खासकर कर्क रेखा के ऊपर, और इस वजह से दिन सबसे लंबा होता है. भारत, अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में इस दिन सूरज सबसे देर तक आकाश में रहता है. वहीं उत्तरी ध्रुव पर तो पूरा दिन सूरज अस्त ही नहीं होता. वैज्ञानिक रूप से देखा जाए, तो यह घटना धरती के 23.5 डिग्री झुकाव की वजह से होती है.यही झुकाव धरती पर मौसमों का निर्माण करता है और सोलस्टिस तथा इक्विनॉक्स जैसी घटनाएं संभव बनती हैं
क्यों होता है 21 जून को सबसे लंबा दिन?
धरती की कक्षा गोल नहीं बल्कि अंडाकार होती है. एक साल में धरती सूरज का एक चक्कर लगभग 365.25 दिनों में पूरा करती है. इसी कारण से हर चार साल में एक लीप ईयर आता है, जिससे कैलेंडर धरती की गति के साथ संतुलित बना रहे.
जब उत्तरी गोलार्ध सूरज की ओर झुकता है, तब उसकी किरणें ज्यादा सीधे और लंबे समय तक धरती के उस हिस्से पर पड़ती हैं. इसी कारण दिन लंबा और रात छोटी होती है. यह झुकाव जैसे-जैसे बढ़ता है, ध्रुवीय क्षेत्रों में इसका असर भी उतना ही ज्यादा दिखता है.
उदाहरण के लिए, आर्कटिक सर्कल में इस दिन सूरज 24 घंटे तक चमकता है. इसे ‘मिडनाइट सन’ कहते हैं. लेकिन ठीक इसके विपरीत, अंटार्कटिक सर्कल यानी दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में 21 जून को सूरज पूरी तरह छिपा रहता है. वहां ‘पोलर नाइट’ होती है, यानी एक ऐसी रात जो कई दिनों या हफ्तों तक चल सकती है.
अंटार्कटिका में क्यों छाई रहती है रात?
जब उत्तरी गोलार्ध सूरज की तरफ झुका होता है, तब दक्षिणी गोलार्ध उससे दूर होता है. ऐसे में अंटार्कटिका को सूरज की रोशनी बिल्कुल नहीं मिलती. वहां सूरज क्षितिज के नीचे होता है और पूरे दिन उजाला नहीं होता. यह अंधेरा वहां की जीवनशैली और वातावरण दोनों को प्रभावित करता है.
इसका असर वहां के जानवरों जैसे पेंगुइन और सील्स पर भी पड़ता है. उनके शरीर की घड़ी सूरज की रोशनी से तालमेल बिठाती है, और जब सूरज न हो, तो उनका व्यवहार भी बदल जाता है.




















