फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी वार शनिवार जाने आज का पंचाग पँ. श्रवण भारद्वाज के साथ
दिनांक – 27 मार्च 2021
वार – शनिवार
तिथि – चतुर्दशी
पक्ष – शुक्ल पक्ष
माह – फाल्गुन
नक्षत्र – पूर्व फाल्गुनी
योग – गण्ड
करण – गर
चन्द्र राशि – सिंह
सूर्य राशि – मीन
रितु – शिशिर
आयन – उत्तरायण
संवत्सर – शार्वरी
विक्रम संवत – 2077 विक्रम संवत
शाका संवत – 1942 शाका संवत
सूर्योदय – 06:31 बजे
सूर्यास्त – 18:47 बजे
दिन काल – 12 घण्टे 16 मिनट
रात्री काल – 11 घण्टे 42 मिनट
चंद्रोदय – 17: 23 बजे
चंद्रास्त – 30:20 बजे
समय मानक – मोमासर (बीकानेर)
राहू काल – 09:35 – 11:07 अशुभ
यम घंटा – 14:12 – 15:44 अशुभ
गुली काल – 06:31 – 08:03
अभिजित – 12:15 -13:04 शुभ
पंचक – नहीं
दिशाशूल – पूर्व
चोघडिया, दिन
काल – 06:31 – 08:03 अशुभ
शुभ – 08:03 – 09:35 शुभ
रोग – 09:35 – 11:07 अशुभ
उद्वेग – 11:07 – 12:39 अशुभ
चर – 12:39 – 14:12 शुभ
लाभ – 14:12 – 15:44 शुभ
अमृत – 15:44 – 17:16 शुभ
काल – 17:16 – 18:48 अशुभ
चोघडिया, रात
लाभ – 18:48 – 20:16 शुभ
उद्वेग – 20:16 – 21:43 अशुभ
शुभ – 21:43 – 23:11 शुभ
अमृत – 23:11 – 24:39* शुभ
चर – 24:39* – 26:07* शुभ
रोग – 26:07* – 27:34* अशुभ
काल – 27:34* – 29:02* अशुभ
लाभ – 29:02* – 30:30* शुभ
विशेष – चतुर्दशी और पूर्णिमा के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।
शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र – ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
दिन (वार) -शनिवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात शनिवार को पीपल वृक्ष में मिश्री मिश्रित दूध से अर्घ्य देने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। पीपल के नीचे सायंकालीन समय में एक चतुर्मुख दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करने से सभी ग्रह दोषों की निवृति हो जाती है।
पुराणों में वर्णित है कि पिप्पलाद ऋषि ने अपने बचपन में माता पिता के वियोग का कारण शनि देव को जानकर उनपर ब्रह्म दंड से प्रहार कर दिया, जिससे शनि देव घायल हो गए। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ऋषि ने शनि देव को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक एवं उनके भक्तो को किसी को भी कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने से ही शनि देव के प्रकोप से मुक्ति मिल जाती है।
शिवपुराण के अनुसार शनिवार के दिन पिप्पलाद श्लोक का या पिप्पलाद ऋषि जी के केवल इन तीन नामों (पिप्पलाद, गाधि, कौशिक) को जपने से शनि की पीड़ा शान्त हो जाती है ।
तिथि का स्वामी – चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ जी है।
नक्षत्र के स्वामी – पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के देवता भग (धन व ऐश्वर्य के देवता) और स्वामी शुक्र देव जी है ।
दिशाशूल – शनिवार को पूर्व दिशा का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से अदरक खाकर, घी खाकर जाएँ ।
यात्रा शकुन-शर्करा मिश्रित दही खाकर घर से निकलें।
आज का मंत्र-ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनयै नम:।
आज का उपाय-शनि मंदिर में सौंफ चढाएं।
वनस्पति तंत्र उपाय-शमी के वृक्ष में जल चढ़ाएं।
विशेष – चतुर्दशी को शहद और अमावस्या को मैथुन त्याज्य होता है। चतुर्दशी तिथि क्रूरा एवं उग्रा तिथि मानी जाती है, इस तिथि के देवता भगवान शिवजी हैं। इसीलिये चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव का ज्यादा-से-ज्यादा पूजन, अर्चन एवं अभिषेक करना चाहिये। सामर्थ्य हो तो विशेषकर कृष्ण पक्ष कि चतुर्दशी तिथि को विद्वान् वैदिक ब्राह्मणों से विधिवत भगवान शिव का रुद्राभिषेक करवाना चाहिये।
किसी भी पक्ष की चतुर्दशी में शुभ कार्य करना वर्जित हैं क्योंकि इसे क्रूरा कहा जाता है, चतुर्दशी तिथि रिक्ता तिथियों की श्रेणी में आती है।
चतुर्दशी तिथि में जन्मा जातक समान्यता धर्मात्मा, धनवान, यशस्वी, साहसी, परिश्रमी तथा बड़ो का आदर सत्कार करने वाला होता है।
चतुर्दशी तिथि में जन्मे लोगों को क्रोध बहुत आता है। इस तिथि में जन्मे जातक साहसी और परिश्रमी होते हैं। इन लोगों को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है तभी इन्हे सफलता हाथ लगती है।
चतुर्दशी तिथि में जन्मे जातकों को नित्य भगवान शंकर की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
चतुर्दशी तिथि को समस्त संकटो से मुक्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र – ‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्” का जाप करना अत्यंत फलदाई रहता है ।