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आज से होलाष्टक प्रारम्भ, जाने आज का पंचाग व उपयोगी जानकारी –

आज से होलाष्टक प्रारम्भ, जाने आज का पंचाग व उपयोगी जानकारी –
दिनांक – 21 मार्च 2021
वार – रविवार
तिथि – सप्तमी 07:09 बजे तक तत्पश्चात अष्टमी शुरू
पक्ष – शुक्ल
माह – फाल्गुन
नक्षत्र – मृगशीर्षा
योग – आयुष्मान 12:37:34
करण – वणिज 07:09 बजे तक तत्पश्चात विष्टि भद्र
चन्द्र राशि – मिथुन
सूर्य राशि – मीन
रितु – शिशिर
आयन – उत्तरायण
संवत्सर – शार्वरी
विक्रम संवत – 2077 विक्रम संवत
शाका संवत – 1942 शाका संवत
सूर्योदय – 06:38 बजे
सूर्यास्त – 18:44 बजे
दिन काल – 12 घण्टे 06 मिनट
रात्री काल – 11 घण्टे 52 मिनट
चंद्रोदय – 11:27 बजे
चंद्रास्त – 25:51 बजे
राहू काल – 17:14 – 18:44 अशुभ
अभिजित – 12:17 -13:05 शुभ
पंचक – नहीं
दिशाशूल – पश्चिम
समय मानक – मोमासर (बीकानेर)
चोघडिया, दिन
उद्वेग – 06:38 – 08:09 अशुभ
चर – 08:09 – 09:40 शुभ
लाभ – 09:40 – 11:10 शुभ
अमृत – 11:10 – 12:41 शुभ
काल – 12:41 – 14:12 अशुभ
शुभ – 14:12 – 15:43 शुभ
रोग – 15:43 – 17:14 अशुभ
उद्वेग – 17:14 – 18:44 अशुभ
चोघडिया, रात
शुभ – 18:44 – 20:14 शुभ
अमृत – 20:14 – 21:43 शुभ
चर – 21:43 – 23:12 शुभ
रोग – 23:12 – 24:41* अशुभ
काल – 24:41* – 26:10* अशुभ
लाभ – 26:10* – 27:39* शुभ
उद्वेग – 27:39* – 29:08* अशुभ
शुभ – 29:08* – 30:37* शुभ
होलाष्टक कथा –
होलाष्टक को भक्त प्रहलाद पर यातना के तौर पर मनाया जाता है. राक्षसराज हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रहलाद जन्म से ही हरिभक्त था. हिरण्यकश्यपु विष्णु से ईष्या करता था और उन्हें भगवान नहीं मानता था. यहां तक कि उसने अपने राज्य में यह मुनादी तक करवा दी थी कि उसके राज्य में जो भी विष्णु की पूजा करते हुए देखा जाएगा उसे जेल में डाल दिया जाएगा या प्राण दंड दिया जाएगा. जब भक्त प्रहलाद बहुत छोटा था तो हिरण्यकश्यपु उससे बहुत प्रेम करता था. लेकिन जब भक्त प्रहलाद बड़ा हुआ तो हिरण्यकश्यपु के सामने यह बात सामने आई कि प्रहलाद तो विष्णु का भक्त है.
इसपर पहले तो हिरण्यकश्यपु ने उसे सब तरह से समझाया कि विष्णु की भक्ति न करे. इसके बाद भी जब भक्त प्रहलाद पर उसकी समझाइश का असर नहीं हुआ तो उसने प्रहलाद को कई तरह से डराया और कई यातनाएं दीं. इसपर भी भक्त प्रहलाद ने विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी. जिससे गुस्से में आकर हिरण्यकश्यपु ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि- जाओ प्रहलाद को पहाड़ी से नीचे फेंक आओ. इसपर हिरण्यकश्यपु के सेवकों ने अपने स्वामी का आदेश मानते हुए ऐसा ही किया. लेकिन जब सेवकों ने प्रह्लाद को पहाड़ी से नीचे फेंका तो भगवान विष्णु ने स्वयं प्रकट होकर भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में ले लिया.
इसके बाद जब हिरण्यकश्यपु को पता चला कि प्रहलाद की जान बच गई है तो उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वो प्रह्लाद को लेकर जलती चिता में बैठ जाए. दरअसल, होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि आग कभी भी उसे जला नहीं सकती है. होलिका भाई की बात मानकर चिता में बैठ गयी लेकिन आग की लपटें भी भक्त प्रह्लाद का कुछ भी बिगाड़ नहीं पाईं. जबकि होलिका वरदान के बावजूद आग से जलने लगी. माना जाता है कि उस दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी थी. तभी से उस दिन होलाष्टक मनाया जाने लगा


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