मीन सक्रांति शुरू, जाने आज का पंचाग पँ. श्रवण भारद्वाज के साथ –
दिनांक – 14 मार्च 2021
वार – रविवार
तिथि – प्रथम 17:05 बजे तक
पक्ष – शुक्ल पक्ष
माह – फाल्गुन
नक्षत्र – उत्तरभाद्रपदा
योग – शुभ
करण – बव 17:05 बजे तक तत्पश्चात बालव
चन्द्र राशि – मीन
सूर्य राशि – कुम्भ 18:02 बजे तक तत्पश्चात मीन
रितु – शिशिर
आयन – उत्तरायण
संवत्सर – शार्वरी
विक्रम संवत – 2077 विक्रम संवत
शाका संवत – 1942 शाका संवत
सूर्योदय – 06:45:55
सूर्यास्त – 18:40:37
दिन काल – 11 घण्टे 54 मिनट
रात्री काल – 12 घण्टे 04 मिनट
चंद्रोदय – 07:26 बजे
चंद्रास्त – 19:35 बजे
राहू काल – 17:11 – 18:41 अशुभ
अभिजित – 12:19 -13:07 शुभ
पंचक – लागू
दिशाशूल – पश्चिम
समय मानक – मोमासर (बीकानेर)
चोघडिया, दिन
उद्वेग – 06:46 – 08:15 अशुभ
चर – 08:15 – 09:45 शुभ
लाभ – 09:45 – 11:14 शुभ
अमृत – 11:14 – 12:43 शुभ
काल – 12:43 – 14:13 अशुभ
शुभ – 14:13 – 15:42 शुभ
रोग – 15:42 – 17:11 अशुभ
उद्वेग – 17:11 – 18:41 अशुभ
चोघडिया, रात
शुभ – 18:41 – 20:11 शुभ
अमृत – 20:11 – 21:42 शुभ
चर – 21:42 – 23:12 शुभ
रोग – 23:12 – 24:43* अशुभ
काल – 24:43* – 26:13* अशुभ
लाभ – 26:13* – 27:44* शुभ
उद्वेग – 27:44* – 29:14* अशुभ
शुभ – 29:14* – 30:45* शुभ
स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
भगवान सूर्य जी का मंत्र : ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।।
🌠 रविवार को की गई सूर्य पूजा से व्यक्ति को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन उगते हुए सूर्य को देव को एक ताबें के लोटे में जल, चावल, लाल फूल और रोली डालकर अर्ध्य करें।
इस दिन आदित्य ह्रदय स्रोत्र का पाठ करें एवं यथा संभव मीठा भोजन करें। सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है, सूर्य देव को जल देने से पितृ कृपा भी मिलती है।
रविवार के दिन भैरव जी के दर्शन, आराधना से समस्त भय और संकट दूर होते है, साहस एवं बल की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन जी के दर्शन अवश्य करें ।
रविवार के दिन भैरव जी के मन्त्र ” ॐ काल भैरवाय नमः “ या ” ॐ श्री भैरवाय नमः “ की एक माला जाप करने से समस्त संकट, भय दूर होते है, रोगो, अकाल मृत्यु से बचाव होता है, मनवांछित लाभ मिलता है।
तिथि का स्वामी – प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्नि देव और द्वितीया तिथि के स्वामी भगवान ब्रह्मा जी है।
नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी- उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के देवता अहिर्बुंधन्य देव, स्वामी शनि देव जी एवं वहीं राशि स्वामी गुरु है।
दिशाशूल – रविवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से पान या घी खाकर जाएँ ।
यात्रा शकुन- इलायची खाकर यात्रा प्रारंभ करें।
आज का मंत्र-ॐ घृणि: सूर्याय नम:।
आज का उपाय-किसी मंदिर में गुड़ दान दें।
वनस्पति तंत्र उपाय-बेल के वृक्ष में जल चढ़ाएं।
विशेष – प्रतिपदा को कद्दू एवं कूष्माण्ड तथा द्वितीया तिथि को कटेरी के फल का दान एवं भक्षण दोनों ही त्याज्य बताया गया है। प्रतिपदा तिथि वृद्धि और सिद्धिप्रद तिथि मानी जाती है। इसके स्वामी अग्नि देवता हैं और यह तिथि नन्दा नाम से विख्यात है।
विशेष जानकारी – मित्रों, रविवार के दिन, चतुर्दशी एवं अमावस्या तिथियों में तथा श्राद्ध एवं व्रत के दिन स्त्री सहवास नहीं करना चाहिये। साथ ही तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना भी शास्त्रानुसार मना है अर्थात ये सब नहीं करना चाहिये।
पितृदोष से मुक्ति
पितृदोष से मुक्ति के शर्त यह है कि आप अपने कुल के धर्म परंपरा को निभाएं, घर की महिलाओं का सम्मान करें और कर्म को शुद्ध रखेंगे तो यह उपाय कारगर सिद्ध होंगे, अन्यथा नहीं।
1. परिवार के सभी सदस्यों से बराबर मात्रा में सिक्के इकट्ठे करके उन्हें मंदिर में दान करें। ऐसा आप 5 गुरुवार को करें। मतलब यह कि यदि आप अपनी जेब से 10 का सिक्का ले रहे हैं तो घर के अन्य सभी सदस्यों से भी 10-10 के सिक्के एकत्रित करने उसे मंदिर में दान कर दें। यदि आपके दादाजी हैं तो उनके साथ जाकर दान करें।
2. कर्पूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। प्रतिदिन सुबह और शाम घर में संध्यावंदन के समय कर्पूर जरूर जलाएं। कर्पूर को घी में डूबोकर फिर जलाएं और कभी कभी गुढ़ के साथ मिलाकर भी जलाएं।
3. कौए, चिढ़िया, कुत्ते और गाय को रोटी खिलाते रहना चाहिए। उक्त चारों में से जो भी समय पर मिल जाए उसे रोटी खिलाते रहें।
4. पीपल या बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाते रहना चाहिए। केसर का तिलक लगाते रहना चाहिए। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करने से पितृदोष चला जाता है। एकादशी के व्रत रखना चाहिए कठोरता के साथ।
5. दक्षिणमुखी मकान में कदापी नहीं रहना चाहिए। यदि दक्षिणमुखी, नैऋत्य कोण या आग्नेय कोण में मकान है तो मकान के सामन दरवाजे से दोगुनी दूरी पर नीम का पेड़ लगाकर उसकी सेवा करें।
रविवार एवं मंगलवार के दिन प्रतिपदा होने पर मृत्युदा होती है, लेकिन शुक्रवार को प्रतिपदा सिद्धिदा हो जाती है।
अग्नि देव इस पृथ्वी पर साक्षात् देवता हैं, देवताओं में सर्वप्रथम अग्निदेव की उत्पत्ति हुई थी । ऋग्वेद का प्रथम मंत्र एवं प्रथम शब्द अग्निदेव की आराधना से ही प्रारम्भ होता है।
हिन्दू धर्म ग्रंथो में देवताओं में प्रथम स्थान अग्नि देव का ही दिया गया है। अग्नि देव सोने के भगवान के रूप में वर्णित है।
पुराणों में आठ दिशाओं के आठ रक्षक देवता हैं जिन्हें अष्ट-दिक्पाल कहते हैं। इनमें दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा के रक्षक अग्निदेव हैं। इसीलिए अग्निदेव की प्रतिमा मंदिर के दक्षिण-पूर्वी कोण में स्थापित होती है।
पौराणिक युग में अग्नि देव के ऊपर अग्नि पुराण नामक एक ग्रन्थ भी रचित हुआ। अग्निदेव सब देवताओं के मुख हैं और यज्ञ में इन्हीं के द्वारा देवताओं को समस्त यज्ञ-वस्तु प्राप्त होती है। अग्निदेव में प्रेम पूर्वक ‘‘स्वाहा‘‘ कहकर दी हुई आहुतियों को अग्नि देव अपनी सातो जिह्वाओं से ग्रहण करते है, इससे तीनो देव ब्रह्मा – विष्णु – महेश तथा समस्त देव स्वत: ही तृप्त हो जाते है ।
अग्नि देव की पत्नी का नाम स्वाहा हैं जो कि दक्ष प्रजापति तथा आकूति की पुत्री थीं। अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र और पुत्र-पौत्रों की संख्या उनंचास है।
प्रतिपदा तिथि के दिन अग्नि देव के मन्त्र “ॐ अग्नये स्वाहा” का जाप अवश्य ही करें । शास्त्रों में अग्निदेव का बीजमन्त्र “रं” तथा मुख्य मन्त्र “रं वह्निचैतन्याय नम:” है।