आज का पंचाग, शनिवार दिनांक :- 13 फरवरी 2021
🌞आज का पंचाग🌞
दिनांक :- 13 फरवरी 2021
वार :- शनिवार
तिथि :- द्वितीया
पक्ष :- शुक्ल
नक्षत्र :- शतभिष 15:10 बजे तक तत्पश्चात पूर्वाभाद्रपद शुरू
चन्द्र राशि :- कुम्भ
सूर्य राशि :- कुम्भ
रितु :- शिशिर
आयन :- उत्तरायण
संवत्सर :- शार्वरी
विक्रम संवत :- 2077 विक्रम संवत
शाका संवत :- 1942 शाका संवत
सूर्योदय :- 07:14
सूर्यास्त :- 18:22
दिन काल :- 11 घण्टे 07 मिनट
रात्री काल :- 12 घण्टे 51 मिनट
चंद्रोदय :- 08:23 बजे
चंद्रास्त :- 19:56 बजे
राहू काल 10:01 – 11:25 अशुभ
अभिजित 12:26 -13:11 शुभ
पंचक :- लागू
दिशाशूल :- पश्चिम दिशा में
समय मानक :- मोमासर बीकानेर राज.
चोघडिया, दिन
काल :- 07:15 – 08:38 अशुभ
शुभ :- 08:38 – 10:01 शुभ
रोग :- 10:01 – 11:25 अशुभ
उद्वेग :- 11:25 – 12:48 अशुभ
चर :- 12:48 – 14:12 शुभ
लाभ :- 14:12 – 15:35 शुभ
अमृत :- 15:35 – 16:59 शुभ
काल :- 16:59 – 18:22 अशुभ
चोघडिया, रात
लाभ :- 18:22 – 19:59 शुभ
उद्वेग :- 19:59 – 21:35 अशुभ
शुभ :- 21:35 – 23:11 शुभ
अमृत :- 23:11 – 24:48* शुभ
चर :- 24:48* – 26:24* शुभ
रोग :- 26:24* – 28:01* अशुभ
काल :- 28:01* – 29:37* अशुभ
लाभ :- 29:37* – 31:14* शुभ
💥 विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है।
शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र – ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
☄️ दिन (वार) -शनिवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात शनिवार को पीपल वृक्ष में मिश्री मिश्रित दूध से अर्घ्य देने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। पीपल के नीचे सायंकालीन समय में एक चतुर्मुख दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करने से सभी ग्रह दोषों की निवृति हो जाती है।
पुराणों में वर्णित है कि पिप्पलाद ऋषि ने अपने बचपन में माता पिता के वियोग का कारण शनि देव को जानकर उनपर ब्रह्म दंड से प्रहार कर दिया, जिससे शनि देव घायल हो गए। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ऋषि ने शनि देव को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक एवं उनके भक्तो को किसी को भी कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने से ही शनि देव के प्रकोप से मुक्ति मिल जाती है।
शिवपुराण के अनुसार शनिवार के दिन पिप्पलाद श्लोक का या पिप्पलाद ऋषि जी के केवल इन तीन नामों (पिप्पलाद, गाधि, कौशिक) को जपने से शनि की पीड़ा शान्त हो जाती है ।
✏️ तिथि का स्वामी – द्वितीया तिथि के स्वामी चारो वेदो के रचियता भगवान ब्रह्मा जी है।
🪙 नक्षत्र के स्वामी –शतभिषा नक्षत्र के देवता वरुण देव जी और शतभिषा के स्वामी राहु जी है।
⚜️ दिशाशूल – शनिवार को पूर्व दिशा का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से अदरक खाकर, घी खाकर जाएँ ।
🚕 यात्रा शकुन- इलायची खाकर यात्रा प्रारंभ करें।
🌴 वनस्पति तंत्र उपाय-बेल के वृक्ष में जल चढ़ाएं।
✍🏼 विशेष – द्वितीया तिथि को कटेरी फल का तथा तृतीया तिथि को नमक का दान और भक्षण दोनों त्याज्य बताया गया है। द्वितीया तिथि सुमंगला और कार्य सिद्धिकारी तिथि मानी जाती है। इस द्वितीया तिथि के स्वामी भगवान ब्रह्माजी हैं। यह द्वितीया तिथि भद्रा नाम से विख्यात मानी जाती है। यह द्वितीया तिथि शुक्ल पक्ष में अशुभ तथा कृष्ण पक्ष में शुभ फलदायिनी होती है।
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्र का विधान है। हालांकि, अधिकांश लोगों में मात्र दो नवरात्र चैत्र और शारदेय ही प्रचलन में हैं और इन्ही दोनों के पूजा उत्सव हुआ करते हैं। आपको बता दें कि वर्ष में दो अन्य नवरात्र भी आती हैं, जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा गया है और यह माघ और आषाढ़ के माह में हुआ करती हैं। हिंदू पंचांग अनुसार इस बार माघ महीने की नवरात्र आज 12 फरवरी दिन शुक्रवार से आरंभ हो रही है और समापन 21 फरवरी दिन रविवार को होगा। इस वर्ष यह नवरात्र 9 दिन न होकर 10 दिन तक रहेगी। आपको बताते चलें कि इस बार षष्ठी (छठवीं) तिथि 2 दिन चलेगी।
ऐसी मान्यताएं हैं कि गुप्त नवरात्र में माँ दुर्गास्वरूप जगत जननी अम्बे की पूजा जितनी गुप्त तरीके से की जाए, पूजा का फल उतना अधिक मिलता है। गुप्त नवरात्र में माँ के नौ स्वरूपों के साथ-साथ उनकी 10 महाविधाओं का भी पूजन होता है।
इस नवरात्र में कई शुभ संयोग भी बन रहें हैं, जैसे- सर्वार्थसिद्धि योग, त्रिपुष्कर अमृतसिद्धि योग और राज योग। इस प्रकार इन योगों के चलते गुप्त नवरात्र में कोई भी शुभ और मंगल कार्य किए जा सकते हैं। आज ही गुरु,शुक्र, शनि, सूर्य और बुध का पंचग्रही योग भी बन रहा है, यह संयोग आज के दिन को और भी पावन बना रहा है।
गुप्त नवरात्र के दौरान शुद्धता का ध्यान रखें, जितना संभव हो उतना सरल और सादगी से रहें। काले कपड़े और चमड़े से बनी चीजों का उपयोग न करें। संभव हो तो नाखून व बाल न कटवायें। तामसिक भोजन व व्यसन से बचने का प्रयास करें। घर-परिवार में शांति और प्रेम का वातावरण रखें। अपने क्रोध और वाणी पर संयम रखें। किसी भी जीव हत्या में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संलग्न न रहें। नवरात्र में कन्या की पूजा का बड़ा महत्व है इसलिए किसी भी कन्या को अप्रसन्न न करें, उन्हें प्रसन्न रखें व सम्मान दें।
⚜️ द्वितीया तिथि के स्वामी सृष्टि के रचियता भगवान ‘ब्रह्मा’ जी हैं। इसका विशेष नाम ‘सुमंगला’ है। यह भद्रा संज्ञक तिथि है।
सोमवार और शुक्रवार को द्वितीया तिथि मृत्युदा होती है।
लेकिन बुधवार के दिन दोनों पक्षों की द्वितीया में विशेष सामर्थ होता है और यह सिद्धिदा हो जाती है, अर्थात इसमें किये गये सभी कार्य शुभ और सफल होते हैं।
💫 द्वितीया तिथि को चारो वेदो के रचियता ब्रह्मा जी का स्मरण करने से कार्य सिद्ध होते है।
व्यासलिखित पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के चार मुख हैं, जो चार दिशाओं में देखते हैं। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा को स्वयंभू (स्वयं जन्म लेने वाला) और चार वेदों का निर्माता माना गया है। ब्रह्मा की उत्पत्ति विष्णु की नाभि से निकले कमल से मानी गयी है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी के एक मुँह से हर वेद निकला था।
देवी सावित्री ब्रह्मा जी की पत्नी, माँ सरस्वती ब्रह्मा जी की पुत्री, सनकादि ऋषि,नारद मुनि और दक्ष प्रजापति इनके पुत्र और इनका वाहन हंस है।
ब्रह्मा जी ने अपने चारो हाथों में क्रमश: वरमुद्रा, अक्षरसूत्र, वेद तथा कमण्डलु धारण किया है।
द्वितीया तिथि को ब्रह्मचारी ब्राह्मण की पूजा करना एवं उन्हें भोजन, अन्न, वस्त्र आदि का दान देना बहुत शुभ माना गया है।
शुक्ल पक्ष की द्वितीया में भगवान शंकर जी माँ पार्वती के संग होते हैं इसलिए भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि में भगवान शंकर की पूजा करना उत्तम नहीं माना जाता है।