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अनुराग के बगैर रघुनाथ का प्राप्त नही किया जा सकता – स्वामी रामफल

श्री पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा सभी भक्तों के उद्धार हेतु एवं उनके कल्याण के लिए उन्हें भगवान की दिव्य स्वरूप का दर्शन कराने हेतु प्रतिदिन ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया जा रहा है जिसमें सभी भक्तगण तन मन से जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का भी समाधान बाबाजी के अलौकिक ज्ञान से ओतप्रोत होकर प्राप्त करते हैं
सत्संग परिचर्चा में, प्रतिदिन की भांति ऋचा बहन के द्वारा मीठा मोती प्रेषित किया गया,जिसमे जनकल्याण की भावनाओं का संदेश निहित रहता है “दुसरो को खुश करने के लिए झूठी विशेषताओं का पर्दा अपनी वास्तविकता के ऊपर डालना,स्वयं को हानि पहुँचना है।” जिस का भाव विस्तार करते हुए बाबा जी ने बताया कि दूसरों को प्रसन्न करने के लिए दिखावटी आवरण को ग्रहण कर लेना यह केवल व केवल चाटुकारिता है जो दूसरों को प्रसन्न करने के लिए उनकी वहा वही के लिए प्रसन्न रहना सीख लेता है तो वह अपने आप को ही हानि पहुंचाता है क्योंकि आपके भीतर स्वाभाविक प्रसन्नता छिपी है ईश्वर प्रदत्त खुशी छिपी हुई है आपके पास भगवान ने ऐसा प्रसन्नता का खजाना दिया है जिसे आप जितना लुटाएंगे वह उतना ही अधिक बढ़ता जाता है आप उसे छिपाकर ना रखें उसे खर्च करें, झूठी प्रसन्नता प्रशंसा चाटुकारिता आपके स्वाभिक स्वरूप को क्षति पहुंचाता है
सतसंग परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए रामफल जी ने रामचरितमानस की चौपाई है “मिलीही न रघुपति बिनु अनुरागा……..” के भाव विस्तार करने की विनती बाबा जी से कि, इनके भाव विस्तार करते हुए बाबा जी ने बताया है कि चाहे आप जितना भी जप तप बैराग कर ले, परंतु अनुराग नहीं है तो रघुनाथ जी को प्राप्त नहीं किया जा सकता रघुनाथ जी को प्राप्त करने के लिए अनुराग आवश्यक है यहां अनुराग और राग को हम समझने का प्रयत्न करते हैं संसार में राग है तो भगवान में भी राग होता है उसी प्रकार अनुराग भी संसार में व्याप्त है तो परमात्मा में भी अनुराग व्याप्त है लेकिन इसे समझना आवश्यक है नहीं तो आप मोह और भक्ति का मतलब नहीं समझ पाएंगे बंधन व मुक्ति को नहीं समझ पाएंगे
स्वार्थ में लिप्त यदि किसी से प्रेम किया जाए तो उसे राग कहते हैं लेकिन निस्वार्थ रूप से आप अपने कर्तव्य का पालन करते हैं परिवार का पालन रिश्तेदार बाल बच्चों एवं अन्य सांसारिक व्यक्तियों से प्रेम रखें तो जहां अनुराग की संज्ञा में आता है उसी प्रकार जो लोग परमात्मा में भी कुछ स्वार्थ भाव से प्रीति कर रहे हैं वे लोग रागी है परंतु जो निस्वार्थ भाव से यह सोचते हैं कि वह हमारे पिता है हमारे स्वामी हैं वे हमारे अहित कर ही नहीं सकते अपने को उन्हें सौंप कर उनमें शरणागति प्राप्त कर लेते हैं वह अनुराग प्रीति को प्राप्त करते हैं हम बहुत से लोग जप तप साधन करते हैं परंतु वह सकाम भक्ति में दबकर रह जाता है निश्चित ही आप उन्हें माता पिता की भांति पुकार कीजिए जीवन के जो कमी हैं उन्हें बताइए परंतु केवल सकाम भाव से जप तप व्रत पूजा निश्चित रूप से ही उचित नहीं है भक्ति भाव को प्रेम में परिवर्तित करके भगवान में निस्वार्थ भाव से शुरू कर दीजिए तो यह अनुराग हो जाएगा और रघुपति से प्रीति आप अवश्य प्राप्त करेंगे राम प्रभु ने कहा भी है कि
“मोहि कपट छल छिद्र न भावा निर्मल मन जन सो मोहि पावा ”
इस प्रकार आज का सत्संग पूर्ण हुआ
आज श्री पाटेश्वर संस्कार वाहिनी के ऑनलाइन फार्म को गूगल फाइल पर जारी किया गया साथ ही बहुत से भक्तों एवं माताओं ने पाटेश्वर संस्कार वाहिनी के फार्म भरे बाबा जी ने सभी को धन्यवाद दिया और पूरे प्रदेश के लोगों को इस संगठन में जुड़ने का आवाहन किया
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम
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नेमसिंह सेन की खबर
8103765326


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