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पण्डित श्रवण भारद्वाज के साथ जाने आज का पंचाग व आवश्यक बातें –

🌞आज का पंचाग🌞
📅दिनांक :- 03 जनवरी 2021
🧾वार :- रविवार
⛳तिथि :- चतुर्थी    प्रातःकाल 08:21बजे तक तत्पश्चात पंचमी
🌓पक्ष :- कृष्ण पक्ष
🍁माह :- पौष
🪐नक्षत्र :- मघा    शाम 07:55 बजे तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र शुरू
💥योग :- प्रीती
🔥करण :- बालव सुबह 08:22 बजे तक तत्पश्चात तैतुल करण शुरू
🌕चन्द्र राशि     :- सिंह
🌝सूर्य राशि :- धनु
🌈ऋतु :- हेमंत
❇️आयन :- उत्तरायण
🌎संवत्सर    :- शार्वरी
🌍विक्रम संवत :- 2077 विक्रम संवत
🌏शाका संवत    :- 1942 शाका संवत
🌅सूर्योदय :- 07:27 बजे
🌄सूर्यास्त :- 17:50 बजे
🏞️दिन काल :- 10 घण्टे 22 मिनट
🌌रात्री काल :- 13 घण्टे 38 मिनट
🌇चंद्रास्त :- 10:39
🌆चंद्रोदय    :- 22:00
❎राहू काल :- 16:32 – 17:50    अशुभ
✅अभिजित     :- 12:18 -12:59    शुभ
🔱पंचक :- नहीं
🕖समय मानक :- मोमासर बीकानेर राज.
⚜️दिशाशूल :- पश्चिम दिशा
🌝चोघडिया, दिन🌝
💠उद्वेग :- 07:28 – 08:45    अशुभ
💠चर :-    08:45 – 10:03    शुभ
💠लाभ     :- 10:03 – 11:21    शुभ
💠अमृत :- 11:21 – 12:39    शुभ
💠काल :- 12:39 – 13:56    अशुभ
💠शुभ :- 13:56 – 15:14    शुभ
💠रोग :- 15:14 – 16:32    अशुभ
💠उद्वेग :- 16:32 – 17:50    अशुभ
🌕चोघडिया, रात🌕
💠शुभ    :- 17:50 – 19:32    शुभ
💠अमृत    :- 19:32 – 21:14    शुभ
💠चर     :- 21:14 – 22:56    शुभ
💠रोग    :- 22:56 – 24:39*    अशुभ
💠काल    :- 24:39* – 26:21*    अशुभ
💠लाभ     :- 26:21* – 28:03*    शुभ
💠उद्वेग    :- 28:03* – 29:45*    अशुभ
💠शुभ    :- 29:45* – 31:28*    शुभ
⛅ व्रत पर्व विवरण –
💥 विशेष – चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है।
💥 रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।
💥 रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।
💥 रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।
💥 स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
भगवान सूर्य जी का मंत्र : ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।।
🌠 रविवार को की गई सूर्य पूजा से व्यक्ति को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन उगते हुए सूर्य को देव को एक ताबें के लोटे में जल, चावल, लाल फूल और रोली डालकर अर्ध्य करें।
इस दिन आदित्य ह्रदय स्रोत्र का पाठ करें एवं यथा संभव मीठा भोजन करें। सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है, सूर्य देव को जल देने से पितृ कृपा भी मिलती है।
रविवार के दिन भैरव जी के दर्शन, आराधना से समस्त भय और संकट दूर होते है, साहस एवं बल की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन जी के दर्शन अवश्य करें ।
रविवार के दिन भैरव जी के मन्त्र ” ॐ काल भैरवाय नमः “ या ” ॐ श्री भैरवाय नमः “ की एक माला जाप करने से समस्त संकट, भय दूर होते है, रोगो, अकाल मृत्यु से बचाव होता है, मनवांछित लाभ मिलता है।
✏️ तिथि का स्वामी – चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश जी और पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता है ।
🪙 नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी- मघा नक्षत्र के देवता पितर देव और नक्षत्र स्वामी केतु जी है।
⚜️ दिशाशूल – रविवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से पान या घी खाकर जाएँ ।
🚕 यात्रा शकुन- इलायची खाकर यात्रा प्रारंभ करें।
👉🏼 आज का मंत्र-ॐ घृणि: सूर्याय नम:।
💁🏻‍♀️ आज का उपाय- किसी मंदिर में एक नारियल व आठ बादाम चढाएं।
🌴 वनस्पति तंत्र उपाय-बेल के वृक्ष में जल चढ़ाएं।
✍🏼 विशेष – चतुर्थी तिथि को मूली एवं पञ्चमी तिथि को बिल्वफल त्याज्य बताया गया है। इस चतुर्थी तिथि में तिल का दान और भक्षण दोनों त्याज्य होता है। इसलिए चतुर्थी तिथि को मूली और तिल एवं पञ्चमी को बिल्वफल नहीं खाना न ही दान करना चाहिए। चतुर्थी तिथि एक खल और हानिप्रद तिथि मानी जाती है। इस चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश जी हैं तथा यह चतुर्थी तिथि रिक्ता नाम से विख्यात मानी जाती है। यह चतुर्थी तिथि शुक्ल पक्ष में अशुभ तथा कृष्ण पक्ष में शुभफलदायिनी मानी गयी है।
⚜️ चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना से सभी प्रकार के संकटो से रक्षा होती है।
आज गणेश जी को रोली का तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करके, लड्डुओं या गुड़ का भोग लगाकर “ॐ गण गणपतये नम:” मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करें ।
चतुर्थी को गणेश जी की आराधना से किसी भी कार्य में विघ्न नहीं आते है।
पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता है। पंचमी तिथि को नाग देवता की पूजा करने से काल सर्प दोष दूर होता है, नाग के काटने का भय नहीं रहता है ।
पंचमी तिथि के समय भगवान शिव का पूजन शुभ माना गया है, पंचमी तिथि को शिवलिंग का जिस पर नाग बना हो दूध या पंचामृत से अभिषेक करने से नाग देवता प्रसन्न होते है।
🌷 कर्ज हो तो 🌷
💰 किसी के सिर पर कर्जा है तो एक सफेद कपड़ा ले लिया और पाँच फूल गुलाब के ले लिए |एक फूल हाथ में लिया और गायत्री मंत्र बोल देना :
🌷 ॐ भू र्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् |
🌹 और कपड़े पर रख दिया | ऐसे पाँचो फूल गायत्री मंत्र जपते हुये कपडे पर रख दिये और कपड़े को गठान लगाईं और प्रार्थना पूर्वक कि मेरे सिर पर जो भार है.. हे भगवान, हे भागीरथी गंगा !! वो भार भी बह जाये, दूर हो जाये, नष्ट हो जाये ऐसा करके जो कपड़ा बाँधा है फूल रखकर वो बहते हुए पानी में (नदी में) बहा दे |
🙏🏻 पौष हिन्दू धर्म का दसवाँ महीना है। इस वर्ष 31 दिसंबर 2020 (उत्तर भारत हिन्दू पंचांग के अनुसार) से पौष का आरम्भ हो गया है। पौष मास की पूर्णिमा को अधिकांशतः चंद्र पुष्य नक्षत्र में होते हैं। तैत्तिरीय संहिता में पौष का नाम सहस्य बताया गया है। यह मास दक्षिणायनांत है। पौष मास में अधिकांशतः सूर्य धनु राशि में होते हैं। पौष मास को खर मास बहुत से लोग मानते हैं और इसमें कोई शुभ कार्य नहीं करते विशेषतः जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश कर जाएँ।
🌷 महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार “पौषमासं तु कौन्तेय भक्तेनैकेन यः क्षिपेत्। सुभगो दर्शनीयश्च यशोभागी च जायते।।” जो पौष मास को एक वक्त भोजन करके बिताता है वह सौभाग्यशाली, दर्शनीय और यश का भागी होता है ।
🙏🏻 शिवपुराण के अनुसार पौषमास में पूरे महिनेभर जितेन्द्रिय और निराहार रहकर द्विज प्रात:कालसे मध्यांन्ह कालतक वेदमाता गायत्रीका जप करें | तत्पश्चात रातको सोने के समयतक पंचाक्षर आदि मन्त्रों का जप करें | ऐसा करनेवाला ब्राह्मण ज्ञान पाकर शरीर छूटने के बाद मोक्ष प्राप्त कर लेता हैं |
🙏🏻 शिवपुराण के अनुसार पौष मास में नमक के दान से षडरस भोजन की प्राप्ति होती है।
🙏🏻 पौषमास में शतभिषा नक्षत्र के आने पर गणेश जी की पूजा करनी चाहिए
🌷 महाभारत अनुशासन पर्व में ब्रह्मा जी कहते हैं
पौषमासस्य शुक्ले वै यदा युज्येत रोहिणी। तेन नक्षत्रयोगेन आकाशशयनो भवेत्॥
एकवस्त्रः शुचिः स्नातः श्रद्दधानः समाहितः। सोमस्य रश्मयः पीत्वा महायज्ञफलं लभेत्॥
🙏🏻 पौषमास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन रोहिणी नक्षत्र का योग हो, उस दिन की रात में मनुष्य स्नान आदि से शुद्ध हो एक वस्त्र धारण करके श्रद्धा और एकाग्रता के साथ खुले मैदान में आकाश के नीचे शयन करे और चन्द्रमा की किरणों का ही पान करता रहे । ऐसा करने से उसको महान यज्ञ का फल मिलता है।
🙏🏻 ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखण्ड  के अनुसार चैत्र, पौष तथा भाद्रपद मास के पवित्र मंगलवार को भगवान विष्णु ने भक्ति पूर्वक तीनों लोकों में लक्ष्मी पूजा का महोत्सव चालू किया। वर्ष के अन्त में पौष की संक्रान्ति के दिन मनु ने अपने प्रांगण में इनकी प्रतिमा का आवाहन करके इनकी पूजा की। तत्पश्चात तीनों लोकों में वह पूजा प्रचलित हो गयी।
🙏🏻शिवपुराण के अनुसार धनु की संक्रांति से युक्त पौषमास में उष:काल में शिव आदि समस्त देवताओं का पूजन क्रमश: समस्त सिद्धियों की प्राप्ति करानेवाला होता हैं | इस पूजन में अगहनी के चावल से तैयार किये गये हविष्य का नैवेद्य उत्तम बताया जाता हैं | पौषमास में नाना प्रकार के अन्नका नैवेद्य विशेष महत्त्व रखता हैं |


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