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आज श्री अन्नपूर्णा षष्ठी का व्रत कर पायें अन्न धन और सुखी परिवार का आशीर्वाद

मान्‍यता है कि जगत शिव और शक्ति का स्वरूप है जहां शिव विश्वेश्वर हैं और उनकी शक्ति मां पार्वती हैं। सृष्टि की रचना काल में पार्वती को ‘माया’ कहा जाता है और पालन के समय वही ‘अन्नपूर्णा’ नाम के नाम से जानी हैं, जबकि संहार काल में वे ‘कालरात्रि’ बन जाती हैं।पालन करने वाली अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन दैहिक, दैविक, भौतिक सुख प्रदान करता है। अतः अन्न-धन, ऐश्वर्य, आरोग्य एवं संतान की कामना करने वाले स्त्री-पुरूषों को अन्नपूर्णा माँ का व्रत-पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए।*
मोमासर के पंडित श्रवण सारस्वत के अनुसार हर साल मार्गशीर्ष (अगहन) मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को श्री अन्नपूर्णा षष्ठी का पूजा और व्रत किया जाता है, 💖हालांकि यह व्रत अगहन मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से प्रारम्भ होकर शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि तक 16 दिन चलता है, लेकिन जिनके ऐसा करना संभव ना हो वे एक दिन 20 December 2020 इसका संपूर्ण लाभ पा सकते हैं। सबसे पहले स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजन की सामग्री रख कर रेशमी अथवा साधारण सूत का डोरा लेकर उसमें 17 गांठ लगायें। अब लाल कुसुम, चंदनादि से पूजन कर डोरे को अन्नपूर्णा माता के चित्र या मूर्ति के सामने रख कर मां भगवती अन्नपूर्णा की प्रार्थना करें। प्रार्थना के बाद पुरूष दाहिने हाथ तथा स्त्री बायें हाथ की कलाई में डोरे को धारण कर कथा को सुनें।*
*🙏ध्‍यान रहे कथा निराहार रह कर ही कहें और सुनें। ऐसा करने से पुत्र, यश, वैभव, लक्ष्मी, धन-धान्य, वाहन, आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्‍ति होती है।🌞*
*बाल का कल्पवृक्ष, अन्न से भरा हुआ पात्र, करछुल, 17 पात्रों में बिना नमक के पकवान और गुड़हल या गुलाब जैसे पुष्‍पों की आवश्‍यकता होती है। यह पूजा शाम सूर्यास्त के बाद होती है, सारी सामग्री एकत्रित करके सफेद वस्त्र धारण कर पूजागृह में धान की बाली का कल्पवृक्ष बनायें और उसके नीचे भगवती अन्नपूर्णा की मूर्ति सिंहासन या चौकी पर स्थापित करे। उस मूर्ति के बायीं ओर अन्न से भरा हुआ पात्र तथा दाहिने हाथ में करछुल रखें। धूप दीप, नैवेद्य, सिन्दूर, फूल आदि भगवती अन्नपूर्णा को समर्पित करे। अपने हाथ के डोरे को निकालकर भगवती के चरणों में रख प्रार्थना करे। उसके बाद अन्नपूर्णा व्रत की कथा सुनें। गुरू को दक्षिणा प्रदान करें। 17 प्रकार के पकवानों का भोग लगाएँ। सुपात्र को भोजन करायें, उसके बाद रात में स्वयं भी बिना नमक का भोजन करें।*🅿
*🙏अन्नपूर्णा की कथा पढ़ें और भोग लगाएं ।* 🙏
*🌼अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे।*
*💥ज्ञान वैराग्य सिध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति।।*
*🔆माता च पार्वति देवी पिता देवो महेश्वरः।*
*🌹बान्धवा शिव भक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्।*
*💖कथा*💎
*🌞एक समय की बात है। काशी निवासी धनंजय की पत्नी का नाम सुलक्षणा था । उसे अन्य सब सुख प्राप्त थे, केवल निर्धनता ही उसके दुःख का कारण थी। यह दुःख उसे हर समय सताता था । एक दिन सुलक्षणा पति से बोली- स्वामी! आप कुछ उद्यम करो तो काम चले । इस प्रकार कब तक काम चलेगा ? सुलक्षण्णा की बात धनंजय के मन में बैठ और वह उसी दिन विश्वनाथ शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए बैठ गया और कहने लगा- हे देवाधिदेव विश्वेश्वर ! मुझे पूजा-पाठ कुछ आता नहीं है, केवल तुम्हारे भरोसे बैठा हूँ । इतनी विनती करके वह दो-तीन दिन भूखा-प्यासा बैठा रहा । यह देखकर भगवान शंकर ने उसके कान में ‘अन्नपूर्णा ! अन्नपूर्णा!! अन्नपूर्णा!!!’ इस प्रकार तीन बार कहा। यह कौन, क्या कह गया ? इसी सोच में धनंजय पड़ गया कि मन्दिर से आते ब्राह्मणों को देखकर पूछने लगा- पंडितजी ! अन्नपूर्णा कौन है ? ब्राह्मणों ने कहा- तू अन्न छोड़ बैठा है, सो तुझे अन्न की ही बात सूझती है । जा घर जाकर अन्न ग्रहण कर ।*
*धनंजय घर गया, स्त्री से सारी बात कही, वह बोली-नाथ! चिंता मत करो, स्वयं शंकरजी ने यह मंत्र दिया है। वे स्वयं ही खुलासा करेंगे। आप फिर जाकर उनकी आराधना करो । धनंजय फिर जैसा का तैसा पूजा में बैठ गया। रात्रि में शंकर जी ने आज्ञा दी । कहा- तू पूर्व दिशा में चला जा । वह अन्नपूर्णा का नाम जपता जाता और रास्ते में फल खाता, झरनों का पानी पीता जाता । इस प्रकार कितने ही दिनों तक चलता गया । वहां उसे चांदी सी चमकती बन की शोभा देखने में आई । सुन्दर सरोवर देखने में या, उसके किनारे कितनी ही अप्सराएं झुण्ड बनाए बैठीं थीं । एक कथा कहती थीं । और सब 👆‘मां अन्नपूर्णा’ 🙏इस प्रकार बार-बार कहती थीं।*
*यह अगहन मास की उजेली रात्रि थी और आज से ही व्रत का ए आरम्भ था । जिस शब्द की खोज करने वह निकला था, वह उसे वहां सुनने को मिला । धनंजय ने उनके पास जाकर पूछा- हे देवियो ! आप यह क्या करती हो? उन सबने कहा हम सब मां अन्नपूर्णा का व्रत करती हैं । व्रत करने से गई पूजा क्या होता है? यह किसी ने किया भी है? इसे कब किया जाए? कैसा व्रत है में और कैसी विधि है? मुझसे भी कहो। वे कहने लगीं- इस व्रत को सब कोईकर सकते हैं । इक्कीस दिन तक के लिए 21 गांठ का सूत लेना चाहिए । 21 दिन यदि न बनें तो एक दिन उपवास करें, यह भी न बनें तो केवलकथा सुनकर प्रसाद लें। निराहार रहकर कथा कहें, कथा सुनने वाला कोई न मिले तो पीपल के पत्तों को रख सुपारी या घृत कुमारी (गुवारपाठ) वृक्ष को सामने कर दीपक को साक्षी कर सूर्य, गाय, तुलसी या महादेव को बिना कथा सुनाए मुख में दाना न डालें। यदि भूल से कुछ पड़ जाए तो एक दिवस फिर उपवास करें। व्रत के दिन क्रोध न करें और झूठ न बोलें।*
*धनंजय बोला- इस व्रत के करने से क्या होगा ? वे कहने लगीं- इसके करने से अन्धों को नेत्र मिले, लूलों को हाथ मिले, निर्धन के घर धन आए, बांझी को संतान मिले, मूर्ख को विद्या आए, जो जिस कामना से व्रत करे, मां उसकी इच्छा पूरी करती है। वह कहने लगा- बहिनों! मेरे भी धन नहीं है, विद्या नहीं है, कुछ भी तो नहीं है, मैं तो दुखिया ब्राह्मण हूँ, मुझे इस व्रत का सूत दोगी? हां भाई तेरा कल्याण हो , तुझे देंगी, ले इस व्रत का मंगलसूत ले। धनंजय ने व्रत किया । व्रत पूरा हुआ, तभी सरोवर में से 21 खण्ड की सुवर्ण सीढ़ी हीरा मोती जड़ी हुई प्रकट हुई। धनंजय जय ‘अन्नपूर्णा’ ‘अन्नपूर्णा’ कहता जाता था। इस प्रकार कितनी ही सीढि़यां उतर गया तो क्या देखता है कि करोड़ों सूर्य से प्रकाशमान अन्नपूर्णा का मन्दिर है, उसके सामने सुवर्ण सिंघासन पर माता अन्नपूर्णा विराजमान हैं। सामने भिक्षा हेतु शंकर भगवान खड़े हैं। देवांगनाएं चंवर डुलाती हैं। कितनी ही हथियार बांधे पहरा देती हैं।*
*धनंजय दौड़कर जगदम्बा के चरणों में गिर गया। देवी उसके मन का क्लेश जान गईं । धनंजय कहने लगा- माता! आप तो अन्तर्यामिनी हो। आपको अपनी दशा क्या बताऊँ ? माता बोली – मेरा व्रत किया है, जा संसार तेरा सत्कार करेगा । माता ने धनंजय की जिह्नवा पर बीज मंत्र लिख दिया । अब तो उसके रोम-रोम में विद्या प्रकट हो गई । इतने में क्या देखता है कि वह काशी विश्वनाथ के मन्दिर में खड़ा है। मां का वरदान ले धनंजय घर आया । सुलक्षणा से सब बात कही । माता जी की कृपा से उसके घर में सम्पत्ति उमड़ने लगी। छोटा सा घर बहुत बड़ा गिना जाने लगा। जैसे शहद के छत्ते में मक्खियां जमा होती हैं, उसी प्रकार अनेक सगे सम्बंधी आकर उसकी बड़ाई करने लगे। कहने लगे-इतना धन और इतना बड़ा घर, सुन्दर संतान नहीं तो इस कमाई का कौन भोग करेगा? सुलक्षणा से संतान नहीं है, इसलिए तुम दूसरा विवाह करो । अनिच्छा होते हुए भी धनंजय को दूसरा विवाह करना पड़ा और सती सुलक्षणा को सौत का दुःख उठाना पड़ा ।*
*इस प्रकार दिन बीतते गय फिर अगहन मास आया। नये बंधन से बंधे पति से सुलक्षणा ने कहलाया कि हम व्रत के प्रभाव से सुखी हुए हैं । इस कारण यह व्रत छोड़ना नहीं चाहिए । यह माता जी का प्रताप है। जो हम इतने सम्पन्न और सुखी हैं । सुलक्षणा की बात सुन धनंजय उसके यहां आया और व्रत में बैठ गया। नयी बहू को इस व्रत की खबर नहीं थी। वह धनंजय के आने की राह देख रही थी । दिन बीतते गये और व्रत पूर्ण होने में तीन दिवस बाकी थे कि नयी बहू को खबर पड़ी। उसके मन में ईष्र्या की ज्वाला दहक रही थी । सुलक्षणा के घर आ पहुँची ओैर उसने वहां भगदड़ मचा दी । वह धनंजय को अपने साथ ले गई । नये घर में धनंजय को थोड़ी देर के लिए निद्रा ने आ दबाया । इसी समय नई बहू ने उसका व्रत का सूत तोड़कर आग में फेंक दिया । अब तो माता जी का कोप जाग गया । घर में अकस्मात आग लग गई, सब कुछ जलकर खाक हो गया । सुलक्षणा जान गई और पति को फिर अपने घर ले आई । नई बहू रूठ कर पिता के घर जा बैठी । पति को परमेश्वर मानने वाली सुलक्षणा बोली- नाथ ! घबड़ाना नहीं । माता जी की कृपा अलौकिक है । 💖पुत्र कुपुत्र हो जाता है पर माता कुमाता नहीं होती।🙏 अब आप श्रद्धा और भक्ति से आराधना शुरू करो। वे जरूर हमारा कल्याण करेंगी ।*
*धनंजय फिर माता के पीछे पड़ गया। फिर वहीं सरोवर सीढ़ी प्रकट हुई, उसमें ‘ मां अन्नपूर्णा’ कहकर वह उतर गया। वहां जा माता जी के चरणों में रुदन करने लगा । माता प्रसन्न हो बोलीं-यह मेरी स्वर्ण की मूर्ति ले, उसकी पूजा करना, तू फिर सुखी हो जायेगा, जा तुझे मेरा आशीर्वाद है । तेरी स्त्री सुलक्षणा ने श्रद्धा से मेरा व्रत किया है, उसे मैंने पुत्र दिया है । धनंजय ने आँखें खोलीं तो खुद को काशी विश्वनाथ के मन्दिर में खड़ा पाया । वहां से फिर उसी प्रकार घर को आया । इधर सुलक्षणा के दिन चढ़े और महीने पूरे होते ही पुत्र का जन्म हुआ । गांव में आश्चर्य की लहर दौड़ गई । मानता आने लगा। इस प्रकार उसी गांव के निःसंतान सेठ के पुत्र होने पर उसने माता अन्नपूर्णा का मन्दिर बनवा दिया, उसमें माता जी धूमधाम से पधारीं, यज्ञ किया और धनंजय को मन्दिर के आचार्य का पद दे दिया । जीविका के लिए मन्दिर की दक्षिणा और रहने के लिए बड़ा सुन्दर सा भवन दिया। धनंजय स्त्री-पुत्र सहित वहां रहने लगा । माता जी की चढ़ावे में भरपूर आमदनी होने लगी। उधर नई बहू के पिता के घर डाका पड़ा, सब लुट गया, वे भीख मांगकर पेट भरने लगे । सुलक्षणा ने यह सुना तो उन्हे बुला भेजा, अलग घर में रख लिया और उनके अन्न-वस्त्र का प्रबंध कर दिया ।*
*🙏धनंजय, सुलक्षणा और उसका पुत्र माता जी की कृपा से आनन्द से रहने लगे। माता जी ने जैसे इनके भण्डार भरे वैसे सबके भण्डार भरें।*🙏
*💖श्रीअन्नपूर्णास्तोत्रम् / अन्नपूर्णाष्टकम्💖*
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी । var घोरपापनिकरी
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ १॥
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी मुक्ताहारविलम्बमान विलसत् वक्षोजकुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ २॥
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ३॥
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ४॥
दृश्यादृश्य विभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनः प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ५॥
उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी वेणीनीलसमानकुन्तलधरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ६॥
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ७॥
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी वामे स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्य माहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ८॥
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी चन्द्रार्काग्निसमानकुण्डलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ ९॥
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी ॥ १०॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे । ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥ ११॥
माता मे पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ १२॥
*🚩॥ इति श्रीशङ्करभगवतः कृतौ अन्नपूर्णास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥*👆
*👆किन दशाओं में मां अन्नपूर्णा की पूजा-उपासना विशेष फलदायी होती है?💎*
*- अगर कुंडली में दरिद्र योग या दिवालिया होने का योग हो.*
*- अगर कुंडली में गुरु-चांडाल योग हो.*
*- अगर शनि पंचम, अष्टम या द्वादश भाव में हो.*
*- अगर राहु द्वितीय या अष्टम भाव में हो.*
*- अगर कुंडली में विष योग हो.*
*🌎मां अन्नपूर्णा की पूजा में किन-किन बातों की सावधानी रखनी चाहिए?*🌞
*- मां अन्नपूर्णा की पूजा प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में या संध्याकाल में करनी चाहिए.*
*- पूजा के समय लाल, पीले और श्वेत वस्त्र धारण करें.*
*- भगवती अन्नपूर्णा को कभी भी दूर्वा (दूब) अर्पित न करें.*
*- मंत्र जाप के लिए तुलसी की माला का प्रयोग न करें.*
*- अपनी माता और घर की स्त्रियों का सम्मान करें.*
*🙏🚩भगवान शिव चूंकि समस्त सृष्टि का नियंत्रण अपने परिवार की तरह करते हैं. अतः उनके इस परिवार की गृहस्थी मां अन्नपूर्णा चलाती हैं. मां अन्नपूर्णा की उपासना से समृद्धि, सम्पन्नता और संतोष की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही साथ व्यक्ति को भक्तिऔर वैराग्य का आशीर्वाद भी मिलता है.🙏💖*


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