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विनायक चतुर्थी पर आज करें गणेशजी की पूजा, जानें इसकी कथा

देवी-देवताओं में प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की पूजा हमेशा ही होती है लेकिन विनायक चतुर्थी का दिन ज्यादा शुभ होता है। हिन्दु कैलेण्डर के मुताबिक अमावस्या के बाद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। पण्डित श्रवण सारस्वत के अनुसार विनायक चतुर्थी के दिन उपवास भी रखा जाता है। हालांकि जो लोग पूरे दिन व्रत रखने में असमर्थ हैं वह गणेश जी की पूजा के बाद अन्न ग्रहण कर सकते हैं।
💥ऐसे करें गणेश पूजन🌞
विनायक चतुर्थी के दिन दोपहर को मध्याह्न काल में पूजा करना शुभ माना जाता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें। इसके बाद गणेश जी के सामने हाथ जोड़कर विनायक चतुर्थी का व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद मध्याह्न काल में एक पाटे पर लाल कपड़ा बिछाकर गणेश जी छोटी प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद कलश स्थापित कर उनकी पूजा करें व कथा पढ़ें। गणेश जी को मोदक का भोग लगाकर आरती आदि करें।
विनायक चतुर्थी कथा
इस व्रत को लेकर एक पैराणिक कथा कही जाती है। एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थे। इस दौरान देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से चौपड़ खेलने को कहा। भगवान शंकर भी तैयार हो गए लेकिन सवाल उठा कि हार-जीत का फैसला कौन करेगा। ऐसे में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बनाकर उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर दी। इसके बाद शंकर जी ने उससे कहा कि वह और पार्वती चौपड़ खेलना चाहते हैं। इसलिए तुम ध्यान पूर्वक देखकर बताना कि हममें से कौन हारा और कौन जीता। इस खेल में तीन बार चाल हुई और तीनों बार पार्वती जी जीती लेकिन उस बालक ने शंकर जी को विजयी बताया। इस पर पार्वती जी को क्रोध आया और उन्होंने उसे लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक बहुत दुखी हुआ और उसने पार्वती जी से क्षमा मांगते हुए खुद को अज्ञानी बताया। इस पर माता ने उस बालक को क्षमा करते हुए कहा कि जब यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आएंगी तब तुम भी उनसे विधि पूछकर गणेश जी का व्रत करोगे। ऐसा करने के बाद तुम मुझे प्राप्त करोगे।
नाग कन्याओं के आने के बाद उस बालक ने उनके कहे अनुसार 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। श्री गणेश जी ने प्रसन्न होकर उस बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। बालक ने कहा कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं। गणेश जी के वरदान देने के बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर माता पार्वती और शिव जी के पास पहुंच गया। यहां पर उसने भगवान शिव को पूरी कथा सुनाई। इसके बाद जब पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गई तो उन्होंने भी श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया। इससे पार्वती जी खुश हो गईं और शिव जी ने पार्वती जी को यह पूरी कथा बताई। इतना सुनने के बाद पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा हुई और उन्होंने 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया। इसके बाद कार्तिकेय स्वयं अपनी मां पार्वती से मिलने आ पहुंचे। इस तरह से चतुर्थी को गणेश जी का पूजन किया जाने लगा।
🌹श्रीमहालक्ष्मिकृतम् गणपति स्तोत्रम्🌹
नमो महाधरायैव नानालीलाधराय ते ।
सदा स्वानन्दसंस्थाय भक्तिगम्याय वै नमः ॥ १॥
अनन्ताननदेहाय ह्यनन्तविभवाय ते ।
अनन्तहस्तपादाय सदानन्दाय वै नमः ॥ २॥
चराचरमयायैव चराचरविवर्जित ।
योगशान्तिप्रदात्रे ते सदा योगिस्वरूपिणे ॥ ३॥
अनादये गणेशायादिमध्यान्तस्वरूपिणे ।
आदिमध्यान्तहीनाय विघ्नेशाय नमो नमः ॥ ४॥
सर्वातिपूज्यकायैव सर्वपूज्याय ते नमः ।
सर्वेषां कारणायैव ज्येष्ठराजाय ते नमः ॥ ५॥
विनायकाय सर्वेषां नायकाय विशेषतः ।
ढुण्ढिराजाय हेरम्ब भक्तेशाय नमो नमः ॥ ६॥
सृष्टिकर्त्रे सृष्टिहर्त्रे पालकाय नमो नमः ।
त्रिभिर्हीनाय देवेश गुणेशाय नमो नमः ॥ ७॥
कर्मणां फलदात्रे च कर्मणां चालकाय ते ।
कर्माकर्मादिहीनाय लम्बोदर नमोऽस्तु ते ॥ ८॥
योगेशाय च योगिभ्यो योगदाय गजानन ।
सदा शान्तिघनायैव ब्रह्मभूताय ते नमः ॥ ९॥
किं स्तौमि गणनाथं त्वां सतां ब्रह्मपतिं प्रभो ।
अतश्च प्रणमामि त्वां तेन तुष्टो भव प्रभो ॥ १०॥
धन्याहं कृतकृत्याहं सफलो मे भवोऽभवत् ।
धन्यौ मे जनकौ नाथ यया दृष्टो गजाननः ॥ ११॥
एवं स्तुतवती सा तं भक्तियुक्तेन चेतसा ।
साश्रुयुक्ता बभूवाथ बाष्पकण्ठा युधिष्ठिर ॥ १२॥
तामुवाच गणाधीशो वरं वृणु यथेप्सितम् ।
दास्यामि ते महालक्ष्मि भक्तिभावेन तोषितः ॥ १३॥
त्वया कृतं च मे स्तोत्रं भुक्तिमुक्तिप्रदं भवेत् ।
पठतां श‍ृण्वतां देवि नानाकार्यकरं तथा ।
धनधान्यादिसम्भूतं सुखं विन्दति मानवः ॥ १४॥
🌹इति श्रीमहालक्ष्मिकृतम् गणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।🌺


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