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कला आत्माभिव्यक्ति का सुंदरतम माध्यम है – कला मंजर



कला व संस्कृति किसी भी क्षेत्र की विशेष पहचान होती है जिसकी झलक वहाँ के निवासियों में देखने को मिलती है ।
कला जितनी अधिक सम्पन्न होगी उस क्षेत्र की संस्कृति भी उतनी ही समृद्ध और विस्तृत होगी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए लेखिका व व्याख्याता मीनाक्षी माथुर ने वरिष्ठ संगीतकार व रंगकर्मी अनिल सक्सेना ‘ अन्नी ‘ जी के संरक्षण में संस्था ” कला मंज़र ” की स्थापना की है।
कला – संस्कृति , संगीत , साहित्य व समाजसेवा से सम्बद्ध संस्था “कला मंज़र” की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अपनी कला-संस्कृति , संगीत ,साहित्य,परम्पराओं के प्रति जागरूकता लाना और उनमें रुचि उत्पन्न करना है। मीनाक्षी माथुर ने बताया कि ”कला मंज़र” के माध्यम से समाज को ये सन्देश देने का प्रयास है कि जहाँ अपनी कला-संस्कृति , साहित्य,परम्पराओं का सम्मान और संरक्षण होता है वहाँ आत्मनिखार, आत्माभव्यक्ति, आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता स्वतः पनपते हैं।

मीनाक्षी माथुर ने बताया कि इस संस्था का मुख्य उद्देश्य लोक कलाकार जिनमे मुख्य रूप से महिला और दिव्यांग को मंच प्रदान करना है, जिससे उनमे आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भरता आ सके।

मीनाक्षी माथुर ने बताया कि बचपन से ही मेरी नाटक ,गायन ,नृत्य में रुचि रही है स्वयं कई प्रोग्राम भी कर चुकी हूँ , और अब इसी के चलते इस संस्था की स्थापना की है।

संरक्षक अनिल सक्सेना ‘ अन्नी ‘ जी ने बताया कि संस्था कला मंज़र युवाओं में ये जागरूकता लाना चाहती है कि ”कला के विविध रूप आत्मनिर्भरता और आत्माभिव्यक्ति के लिए श्रेष्ठतम अवसर उपलब्ध कराते हैं।”
अनेक बार ये देखा गया है कि कला साहित्य संगीत के क्षेत्र में पर्याप्त संसाधनों के अभाव में प्रतिभा सम्पन्न लोग अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन नही कर पाते। संस्था कला मंज़र अपनी गतिविधियों के माध्यम से उन्हें प्रेरित करना चाहती हैं कि ” सीमित साधनों से छोटे छोटे प्रयास करते रहिये , सफलता अवश्य प्राप्त होगी।
संस्था कला मंज़र विशेष योग्यताजनो,महिला व आर्थिक रूप से पिछड़े लोक कलाकारों के साथ विशेष रूप से जुड़ना चाहती है और उनके साथ काम करना चाहती है।

वर्तमान में संस्था फेस बुक और अपने यु – ट्यूब चेनल के माध्यम से दूर दराज के आंचलिक क्षेत्रों में रहने वाले राजस्थानी लोक कलाकारों की संगीतमयी श्रृंखला प्रस्तुत कर रही है ताकि कोरोना महामारी के इस विकट समय में उनका मनोबल बना रहे। अभी तक डीडवाना की दृष्टि बाधित लोक गायिका रमा कुमारी व चुरू जिले के ढोलक वादक कालू खां बावरा जी व तबला वादक अरसद खां बावरा की श्रंखला प्रस्तुत की जा चुकी है। इससे पहले कई स्कूलों में भी कार्यक्रमों का आयोजन किया जा चुका है, जिनमे कुछ स्कूल अंडर प्रिविलेज बच्चों के भी थे।


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