लकड़ी को रूप देने में माहिर है, नोहर के त्रिलोकचंद सुथार, लेकिन कला की कद्र नही
लकड़ी से किसी भी प्रकार की कलाकृति बनाने में माहिर है नोहर के त्रिलोक चंद, लेकिन कला की कद्र नही होने से हताश भी है।
राजस्थान की धरती जमीन से जुड़े कलाकारों की धरती है , लेकिन जब इन कलाकारों को उनकी कला के अनुसार मौके और सम्बल नही मिलता तो ये इन कलाओं के मिटने का एक कारण बन जाता है। आज हम आपको मिलवाते है राजस्थान के एक ऐसे ही कलाकार, एक ऐसे हुनरमंद इंसान से जो आज भी एक ऐसी कला को संजोए हुए है जो बेहद कम मिलती है। लकड़ी के फ्रेम, मूर्ति, चित्रकारी, बर्तन, गहने, वाद्ययंत्र, चारपाई, चौकी आदि दैनिक जीवन मे काम आने वाली तथा सजावटी कई प्रकार की कलाकृतियों का निर्माण करने वाले। 6 MM की आटा चक्की, 4 MM की अंगूठी में विश्व स्तर पर रिकॉर्ड बनाने वाले, जी हां हम बात कर रहें है राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील के गांव ढंढेला के रहने वाले त्रिलोक चंद सुथार की।
त्रिलोक चंद सुथार लकड़ी से अंगुली में पहनने वाली अंगूठी से लेकर किसी भी इंसान का हूबहू चेहरा लकड़ी पर उकेर सकते है। त्रिलोक चंद के अनुसार उनको ये कार्य करते हुए लगभग 35 साल हो चुके है।
त्रिलोक चंद ने बताया कि सर्वप्रथम वे 1984-85 ग़ांव से मिडल पास करने के बाद 9th में ग्रामोउथान संगरिया में पढ़ने गया था तब वहां एक गेट पर कार्बिन का काम देख कर लकड़ी का काम करने की इच्छा मन में जागृति हुई ।इसके बाद मैं काम सीखने के लिए हरियाणा के शेखूपर दड़ोली चला गया वहां कुछ साधारण काम किया जैसे किसान के औजार ,जोड़ी ,फर्नीचर इत्यादि । ये काम मैने काफी समय तक किया और मंदिरों का अद्भुत कार्य भी किया फिर मेरे ग़ांव के पास टॉपरियाँ ग़ांव है वहां के जाने माने पेंटिंग आर्टिस्ट अस कुमार नागल का मेरे पास आना जाना हुआ । नागल साहब ने मेरे को कहा कि आपके हाथ मे जादू है, आप लकड़ी की मूर्तियां बनाइये, नांगल जी ने लकड़ी पर स्केच से गणेश की आकृति बनाई और कहा आप इसको उकेरो । मैने गणेश को तीन दिन में उकेर दिया और उन्होंने देखकर दूसरी कृष्ण की आकृति बनाई वह भी बन गई ।इनके बाद उन्होंने कहा कि अब आप किसी भी फोटो को देखो ओर बनाओ । ये मेरे में एक अद्भुत जनून हो गया, इसके बाद मैने पीछे मुड़कर नही देखा भूख प्यास का कभी ख्याल नही रहा और साज कला ,बर्तन कला ,मूर्ति कला ,लकड़ी के गहने बनते चले गए आज में हर इंसान की लकड़ी में दो से तीन दिन में मूर्ति बनाता हूँ और जो कहें वह बना सकता हूँ।
त्रिलोक चंद के अनुसार उनकी कलाकृतियों की प्रदर्शनियाँ तो कई जगह लगी है। लोगों ने उनकी कला को सराहा भी है लेकिन सरकारी तन्त्र ने उनकी कला की कभी कद्र नही की।
त्रिलोक चंद अब तक हजारों कलाकृतियें बना चुके है और काफी भेंट कर चुके है। लेकिन बेचते नही है। यही कारण है आज इनका घर एक संग्रालय बन चुका है। जिसे देखने को तो प्रशासन के बड़े अधिकारी से लेकर राजनेता तक आते है, लेकिन सिर्फ आश्वासन के अलावा आज तक इनको कोई सहयोग नही मिला।
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त्रिलोक चंद का मानना है तो सरकारी सहयोग नही मिलने की वजह से आज ये कला लुप्त होने की कगार पर है लेकिन फिर भी ये आज की पीढ़ी को सिखाने का प्रयास कर रहें है।
त्रिलोक चंद की जुबानी की मेरे दिल मे तमन्ना सिर्फ काम करने की रही है कुछ समाज सेवियों से मदद लेता हूँ ओर हर समाज के महान पुरुषों की आर्ट बनाकर कला को जीवित रखूंगा दूसरी इच्छा मेरी यह है कि हमारे राजस्थान के मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जी को उनका आर्ट बनाकर भेंट करू।