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6 महीने से ठप न्याय की आवाज़: राजस्थान महिला आयोग में न अध्यक्ष, न सुनवाई…इंसाफ के लिए दर-दर भटकती पीड़िताएं

राजस्थान राज्य महिला आयोग इन दिनों लाचार और निष्क्रिय है। वजह यह कि पिछले छह माह से आयोग की अध्यक्ष का पद खाली है। इस खाली पद का सीधा असर महिला उत्पीडऩ से जुड़े मामलों पर पड़ा है, खासकर उन मामलों पर जिनमें व्यक्तिगत सुनवाई जरूरी होती है। आयोग की इस अहम प्रक्रिया के ठप होने से न केवल शिकायतों का अंबार लग गया है, बल्कि कई पीडि़ताएं न्याय की उम्मीद छोड़ चुकी हैं। राज्य महिला आयोग में पूर्व अध्यक्ष रेहाना रियाज का कार्यकाल 10 फरवरी 2025 को समाप्त हुआ था। इसके बाद से अब तक सरकार अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं कर पाई है।

परिणाम ये कि जिन पीडि़ताओं को आयोग से न्याय मिलना चाहिए था वे अब फाइलों और तारीखों की भूल-भुलैया में फंसकर रह गई हैं।

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आयोग के आंकड़े खुद बयां कर रहे हैं हाल

राजस्थान महिला आयोग के आंकड़े स्वयं आयोग की मौजूदा स्थिति की कहानी बयां कर रहे हैं। 11 फरवरी 2022 से 10 फरवरी 2025 की अवधि में आयोग के पास कुल 11,933 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 9,981 मामलों का निस्तारण हुआ। इस दौरान आयोग के पास पहले से लंबित 2,254 पुराने मामले भी थे, जिनमें से 1,952 का निपटारा किया गया। इस प्रकार कुल मिलाकर 994 मामलों की पर्सनल हियरिंग के लिए सुनवाई हुई, जिनमें से 900 मामलों का निस्तारण हुआ, जबकि 94 मामले अब भी लंबित हैं।

वहीं, 11 फरवरी 2025 से 23 जून 2025 तक की ताजा अवधि की बात करें तो इस दौरान आयोग को 1,379 नए मामले प्राप्त हुए, परंतु केवल 142 मामलों का ही निस्तारण हो सका। 555 पुराने मामले भी इस अवधि में लंबित रहे। इस समय कुल लंबित मामलों की संख्या बढ़कर 1,237 तक पहुंच गई है। सबसे चिंता की बात यह है कि इस अवधि में किसी भी मामले की व्यक्तिगत सुनवाई (पर्सनल हियरिंग) नहीं हुई, जिससे सभी मामले अब तक लंबित पड़े हैं। यह आंकड़े आयोग में अध्यक्ष की अनुपस्थिति और सुनवाई प्रक्रिया के ठप हो जाने की गंभीरता को उजागर करते हैं।

आयोग की शक्ति और कार्यप्रणाली

-व्यक्तिगत सुनवाई करने का विशेषाधिकार

संबंधित अधिकारियों को तलब करने की शक्ति

समय-सीमा में केस निस्तारित करने की जिम्मेदारी

पुलिस-प्रशासन को निर्देश देने की वैधानिक क्षमता

लेकिन चेयरपर्सन के अभाव में इन सभी कार्यों पर विराम लग चुका है।

महिला आयोग में चेयरपर्सन की नियुक्तियों में देरी का रिकॉर्ड

क्या होती है व्यक्तिगत सुनवाई’ और क्यों है यह जरूरी?

महिला आयोग में पर्सनल हियरिंग यानी व्यक्तिगत सुनवाई, आयोग की सबसे प्रभावी और त्वरित प्रक्रिया मानी जाती है। इसमें आयोग की चेयरपर्सन खुद पीडि़ता, आरोपी और संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को आमने-सामने बैठाकर मामला सुनती हैं। लेकिन ये सभी शक्तिशं केवल चेयरपर्सन के पास होती हैं। जैसे ही यह पद खाली होता है, यह प्रक्रिया भी ठप हो जाती है।

इस प्रक्रिया में कैसे होती है सुनवाई

-दोनों पक्षों की बात सुनी जाती है

-संबंधित एसपी, कलेक्टर या विभागीय अफसरों को बुलाया जा सकता है

-मौके पर ही आदेश, चेतावनी या समाधान निकाला जा सकता है

-गंभीर मामलों में तत्काल एक्शन लिया जा सकता है

6 महीने से व्यक्तिगत सुनवाई बंद, क्या है असर?

नतीजा ये है कि फरवरी 2025 से जून 2025 तक एक भी पर्सनल हियरिंग नहीं हुई, आयोग सिर्फ केस दर्ज कर रहा है, निस्तारण बेहद धीमा है। पीडि़ताएं थानों, कोर्ट और समाज में चक्कर काटने को मजबूर है। वहीं, कई मामलों में तत्काल राहत की जरूरत थी, लेकिन फाइलें अटकी हैं

महिला आयोग में चेयरपर्सन की नियुक्तियों में सरकारों की सुस्ती

राजस्थान राज्य महिला आयोग का चेयरपर्सन पद पिछले दो दशकों में कई बार लंबे समय तक खाली रहा है। 2002 में कांता कथूरिया का कार्यकाल समाप्त होने के बाद करीब एक साल की देरी से 2003 में डॉ. पवन सुराणा को नियुक्त किया गया। इसके बाद तारा भंडारी का कार्यकाल 2009 में खत्म हुआ, लेकिन अगली नियुक्ति 2011 में हुई, यानी करीब दो साल तक आयोग नेतृत्वविहीन रहा।

यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। लडक़ुमारी जैन के बाद एक साल का अंतर रहा, लेकिन सबसे बड़ी चूक 2018 के बाद हुई, जब सुमन शर्मा का कार्यकाल पूरा होने के बाद कांग्रेस सरकार ने चार साल तक कोई चेयरपर्सन नहीं नियुक्त किया। आखिरकार 2022 में रेहाना रियाज को जिम्मेदारी सौंपी गई। अब 2025 में उनका कार्यकाल पूरा हो चुका है और फिर से पद खाली है।

यह साफ है कि महिला आयोग की अध्यक्ष नियुक्ति को लेकर सरकारें गंभीर नहीं रहीं। फर्क सिर्फ इतना रहा कि किसी ने कम देरी की, तो किसी ने पूरा कार्यकाल ही निकाल दिया।

पूर्व चेयरपर्सन रेहाना रियाज ने लाइव हिंदुस्तान टाइम्स से विशेष बातचीत में कहा –

महिला आयोग का चेयरमैन पद कोई राजनीतिक कुर्सी नहीं है, इसलिए इस पर देरी नहीं होनी चाहिए। यह पद सीधे तौर पर महिलाओं के हितों और उनके साथ होने वाले अपराधों से जुड़ा है। उन्होंने मांग की कि आयोग को तुरंत चेयरमैन दिया जाए, ताकि महिलाओं की सुनवाई सही तरीके से हो सके। आयोग का काम सिर्फ कागजी कार्रवाई नहीं है, यह महिलाओं को न्याय देने का जरिया है। सामान्य मामलों में शिकायत के 7 दिन के भीतर कार्रवाई होती है। लेकिन यदि मामला गंभीर हो तो उसी दिन महिला या परिवार को बुलाकर सुनवाई होती है।

रियाज ने बताया कि जब वह अध्यक्ष थीं, तब वह औसतन रोज 80 मामले देखती थीं। सोमवार और मंगलवार को आयोग मुख्यालय पर पर्सनल हियरिंग होती थी, जबकि बाकी दो दिन जिलों में जाकर केस स्टडी करती थीं। कई बार ऐसे केस आते थे जिनमें कलेक्टर, एसपी या अन्य अधिकारियों से तुरंत बात करनी पड़ती थी। यह सब बिना चेयरमैन के संभव नहीं है।

समय सीमा वाले मामलों में चेयरमैन की मौजूदगी जरूरी

कई मामलों की समय सीमा तय होती है। खासतौर पर केस को पर्सनल हियरिंग में भी चैयरमेन दे सकती है और केस की सुनवाई भी चेयरमैन की मौजूदगी में ही संभव है। ऐसे में अगर चेयरमैन नहीं होंगे तो पर्सनल हियरिंग और निर्णय में परेशानी आती है।

वीरेंद्र यादव, सदस्य सचिव, राजस्थान महिला आयोग

वेबसाइट पर भी अधूरी जानकारी

महिला आयोग की वेबसाइट पर 31 जनवरी 2024 तक का ही डेटा उपलब्ध है। वेबसाइट पर कुल केस 66,138, निस्तारित केस 63,545, लंबित केस 2,593 मौजूद है। जबकि, पर्सनल हियरिंग से जुड़े आंकड़े वेबसाइट पर मौजूद नहीं है। 2023 के बाद का केस स्टेटस अपडेट नहीं है।

कहां से आ रहे सबसे ज्यादा केस?

महिला आयोग को सबसे ज्यादा परिवाद जयपुर, दौसा, भरतपुर, अलवर, अजमेर, झालावाड़, करौली, सवाई माधोपुर से मिल रहे हैं।

(आयोग की अधिकृत वेबसाइट पर 31 जनवरी 2024 तक के आंकड़े उपलब्ध है)

राजस्थान के विभिन्न जिलों में महिला संबंधित मामलों की स्थिति चिंताजनक है। जयपुर जिले में कुल 15,135 केस दर्ज किए गए, जिनमें से 709 केस अब भी लंबित हैं जबकि 14,426 मामलों का निपटारा हो चुका है। यहां प्रमुख रूप से घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न के मामले सामने आए हैं। भरतपुर में 2,974 मामलों में से 65 केस पेंडिंग हैं और 2,909 मामलों का निपटान हुआ है, जहां छेड़छाड़ और विवाह विवाद जैसी शिकायतें मुख्य रूप से दर्ज की गईं। अलवर जिले में 3,279 केस में से 129 लंबित हैं और 3,150 मामलों का निस्तारण हो चुका है, जिनमें बलात्कार और साइबर क्राइम के मामले प्रमुख रहे। अजमेर में 2,245 मामलों में से केवल 74 केस अभी शेष हैं, जहां नौकरी में भेदभाव और तलाक के मुद्दे सामने आए। दौसा जिले में 2,617 केस दर्ज हुए, जिनमें से 90 केस लंबित हैं और मानसिक प्रताड़ना व छेड़खानी जैसे मामलों की अधिकता रही। झालावाड़ में 1,619 मामलों में से 70 अब भी पेंडिंग हैं और अवैध रिश्ते व दहेज विवाद के केस देखने को मिले। करौली जिले में कुल 1,962 मामलों में से 59 केस अब भी लंबित हैं, जिनमें बाल विवाह और पारिवारिक हिंसा के मामले प्रमुख हैं। सवाई माधोपुर में 1,901 मामलों में से 94 केस लंबित हैं और यौन उत्पीड़न व महिला अधिकारों से जुड़े मुद्दे मुख्य रूप से सामने आए हैं।

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