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मोमासर के सांवरमल सुथार की कला के आगे हर कोई दबा लेता है दाँतों तले अंगुलियां

राजस्थान कला का प्रदेश है, और इंसान की कला और मेहनत के आगे तो पत्थर में भी जान फूंकी जा सकती है, ऐसी ही एक कला और उसको निखारने वाला कलाकार है बीकानेर के मोमासर गांव का सांवरमल सुथार। मोमासर का सांवरमल सुथार पत्थर को छेनी और हथोड़े से तराश कर वो रूप दे देता है, जिसकी कला को देखकर हर कोई अचंभित हो जाता है। सांवरमल ने बताया कि वह ये काम पिछले 30 वर्षों से कर रहा है, इस दौरान साँवर मल पुत्र गोपाला राम सुथार ने पंजाब के कई बड़े गुरुद्वारों में भव्य काम किया है हुवा है , इसके अलावा हरियाणा, मुम्बई में अपनी कला से लोगों की प्रशंसा प्राप्त की है।

इस कला को ही अपना रोजगार बना चुके सांवरमल ने इसे सीखने के लिए किसी प्रकार की शिक्षा या ट्रेनिंग नही ली। बचपन मे उनको ये शौक था कि कुछ रचनात्मक कार्य करू, और उसी के चलते इस इसकी कला में निखार आता चला गया। सांवरमल सुथार आज पत्थर के साथ साथ लकड़ी पर कलाकृति बनाने में भी पारंगत है। जब वह अपने कार्य मे डूबता है तो उसको सिर्फ एक हेल्पर की जरूरत होती है। बाकी कार्य वे स्वयं ही पूरा करता है।

कोरोना काल में लॉकडाउन लग जाने के कारण कार्य हेतु बाहर जाना संभव नही था साथ सांवरमल चाहता था कि वह अपने प्रदेश राजस्थान में अपने जिले तहसील व गांव भी शिल्प कला सृजन का काम करें, ऐसे में मोमासर के दुर्गा मंदिर का भव्य द्वार का निर्माण शुरू कर दिया। सांवरमल ने बताया कि पिछले एक महीने से वे ये द्वार बना रहे है और अभी कम से कम 10 से 15 दिन का समय और लग सकता है। अपनी इस कला को आगे बढ़ाने के एक तरफ वे अपने छोटे भाइयो को सिखा रहें है, साथ अन्य जिसमे भी सीखने की ललक हो उसको भी सिखाने के लिए तैयार रहते है।

मैंने मेरे छोटे भाइयों को यह काम सिखाया है और जिसकी सीखने की इच्छा होती है मैं उसे सिखाता हू, सांवरमल के अनुसार पत्थर के कार्य मे वे अधिकतर धौलपुर मार्बल को प्रयोग में लेते है, इसके अलावा भी अन्य पत्थर जो अनुकूल लगे काम के लिए मैं उस पत्थर को उपयोग में ले लिया जाता है। साथ ये एकल पत्थर को तराश के उसे मनचाहा रूप देने में भी माहिर है।


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