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“गुनाह”, “कचहरी”, “कोतवाल” अब इतिहास? राजस्थान पुलिस में शब्दों की सर्जरी शुरू… जानें क्या होगा बदलाव

राजस्थान पुलिस की डिक्शनरी अब पूरी तरह बदलने वाली है। जिस थाने में अब तक ‘रोजनामचा’ में केस दर्ज होते थे, वहां जल्द ही ‘दैनिक विवरण’ लिखा जाएगा। जिस ‘मुजरिम’ को पकड़ने के लिए पुलिस दल भेजे जाते थे, उसे अब ‘अपराधी’ कहा जाएगा। राज्य सरकार ने फैसला किया है कि पुलिस की भाषा से उर्दू और फारसी के शब्द हटाए जाएंगे और उनकी जगह शुद्ध हिंदी शब्दों का प्रयोग किया जाएगा। यह फैसला जितना ऐतिहासिक है, उतना ही विवादों और पेचीदगियों से भी भरा हुआ है।

गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढ़म ने हाल ही में पुलिस महानिदेशक (DGP) को एक पत्र भेजा है। इसमें उन्होंने कहा है कि डीजीपी एक प्रस्ताव तैयार करें और उसे सरकार को सौंपें, ताकि मुख्यमंत्री की मंजूरी के बाद इसे लागू किया जा सके। मंत्री ने तर्क दिया कि पुलिस में प्रयुक्त उर्दू और फारसी के शब्द ‘मुगलकाल की देन’ हैं और आज की पीढ़ी न तो इन्हें समझती है और न ही इन्हें पढ़ती है। लिहाजा, पुलिस की कामकाजी भाषा में बदलाव वक्त की ज़रूरत है

इस बदलाव के बाद ‘रोजनामचा’, ‘इस्तगासा’, ‘मुजरिम’, ‘गुनाह’, ‘मुकदमा’, ‘चश्मदीद’, ‘गवाह’, ‘सजा-ए-मौत’, ‘दफ़ा’, ‘मौका मुआयना’, ‘वकील’, ‘कचहरी’, ‘ख़जांची’ जैसे तमाम शब्दों का इस्तेमाल बंद हो जाएगा। इनकी जगह हिंदी के विकल्प तलाशे जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर अब ‘वकील’ की जगह ‘अभिभाषक’, ‘मुजरिम’ की जगह ‘अपराधी’ और ‘कचहरी’ की जगह ‘न्यायालय’ जैसे शब्द प्रयोग में लिए जाएंगे।

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लेकिन यहीं से कहानी में आता है असली ट्विस्ट।

क्या यह इतना आसान है?

भाषा का ये बदलाव दिखने में भले ही सहज लगे, लेकिन यह एक बेहद जटिल और संवेदनशील मसला है। वरिष्ठ अधिवक्ता अजय कुमार जैन कहते हैं, “पुलिस और न्यायिक व्यवस्था में प्रयुक्त उर्दू-फारसी के तमाम शब्द दशकों से आम बोलचाल का हिस्सा बन चुके हैं। ‘वकील’ शब्द को हटाकर ‘अभिभाषक’ कहना कानूनी दस्तावेजों में तो संभव है, लेकिन आम जनता के लिए यह बदलाव पचाना मुश्किल होगा।”

वे यह भी कहते हैं कि, “अगर आप ‘पुलिस थाना’ को भी देखें तो यह भी हिंदी शब्द नहीं है। अब सवाल ये उठता है कि क्या उसे भी बदला जाएगा? अगर हां, तो किस शब्द से?” यानी बात सिर्फ शब्दों की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की पहचान से जुड़ी है।

राजस्थान पुलिस के लिए क्यों जरूरी समझा गया बदलाव?

गृह राज्य मंत्री जवाहर बेढम के मुताबिक, जब वे जिलों के दौरे पर गए तो कई पुलिस अधिकारियों ने इस बात की शिकायत की कि उन्हें उर्दू और फारसी के इन शब्दों को समझने और इस्तेमाल करने में दिक्कत होती है। नए भर्ती हुए पुलिसकर्मियों ने भी कहा कि उनके पाठ्यक्रम में ये शब्द नहीं होते, जिससे वे भ्रमित रहते हैं।

बेडम का मानना है कि जब जनता और पुलिस के बीच संवाद आसान और स्पष्ट होगा, तभी न्यायिक प्रक्रिया बेहतर हो सकेगी। उनका यह भी तर्क है कि दक्षिण भारत के राज्यों में भी अपनी-अपनी भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन वहां की पुलिस स्थानीय भाषा में काम करती है। ऐसे में राजस्थान में हिंदी को पुलिस की कामकाजी भाषा बनाने में कोई बुराई नहीं है।

लेकिन क्या कानून भी कहता है ऐसा?

संविधान की धारा 343 हिंदी को राजभाषा मानती है, लेकिन साथ ही राज्यों को यह छूट भी देती है कि वे अपनी सुविधा के अनुसार अन्य भाषाओं का भी प्रयोग कर सकते हैं। राजस्थान जैसे राज्य में जहां न्याय व्यवस्था, अदालती प्रक्रिया और पुलिस रिकॉर्ड्स में लंबे समय से उर्दू-फारसी शब्दों का प्रयोग होता आया है, वहां यह बदलाव सिर्फ आदेश से नहीं, बल्कि व्यापक कानूनी सलाह और व्यावहारिक परीक्षण के बाद ही संभव होगा।

आगे क्या होगा?

डीजीपी से प्रस्ताव मंगवाया गया है। उसके बाद सरकार उसे कैबिनेट में लाएगी और मुख्यमंत्री की मंजूरी के बाद इसे क्रियान्वित किया जाएगा। लेकिन भाषा को लेकर ये बदलाव फौरन नहीं हो पाएंगे। पहले पुलिसकर्मियों को नई शब्दावली की ट्रेनिंग दी जाएगी। सरकारी दस्तावेजों, रिपोर्टिंग सॉफ्टवेयर, FIR और पंचनामों की भाषा को भी अपडेट करना पड़ेगा।

राजस्थान पुलिस की भाषा बदलने की तैयारी सिर्फ शब्दों का नहीं, सोच और प्रणाली का बदलाव है। लेकिन सवाल अब भी बना हुआ है — क्या ‘रोजनामचा’ का विकल्प इतना ही असरदार होगा? क्या ‘वकील’ को ‘अभिभाषक’ कहना उतना ही सहज होगा जितना सुनने में लगता है? पुलिस की जुबान से निकलने वाले ये नए शब्द क्या जनता की समझ में आएंगे?

राजस्थान सरकार ने बदलाव का बिगुल बजा दिया है। अब देखना यह है कि ये भाषा क्रांति पुलिस व्यवस्था को कितना बदलती है और आम आदमी इसे कितनी सहजता से स्वीकार करता है।

 

 

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