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अमूल्य संस्कृति के वाहक है राजस्थानी, दक्षिण में लिख रहे विकास कि कहानी : एन सुगालचंद जैन

एक कहावत है कि जहां न पहुंचे बैलगाड़ी वहां पहुंचे मारवाड़ी। इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए मारवाडिय़ों ने अपनी काबिलियत का डंका बजाते हुए न केवल बुलंदियों को छुआ बल्कि देश-विदेश में राजस्थानियों का नाम ऊंचा किया। राजस्थान के लोग जहां भी जाते हैं अपनी मेहनत व लगन से अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं।
लगभग 300 वर्ष पहले भारत के विभिन्न राज्यों से राजस्थान समुदाय ने आकर चेन्नई में अपना निवास किया है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों से आए राजस्थानीयों का एक बड़ा समूह चेन्नई में निवास कर रहा है। कई वर्षो पूर्व हमारे पूर्वज देशाटन कर पैदल, बैल गाडी, घोडा गाडी आदि विभिन्न माध्यमों से गांव से पलायन कर व्यापार के सिलसिले में चेन्नई आकर बस गए।
अपनी संस्कृति व सभ्यता सर्वोपरि है। इसी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए राजस्थानी काम कर रहे हैं। तमिलनाडु में रहने वाले प्रवासियों के दिल में अपने प्रदेश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हमेशा ही दिल में हिलोरे लेता रहता है। राजस्थानी लोग व्यावसायिक कौशल के साथ ही साहसी एवं निष्ठावान है। कई गुणों को आत्मसात किए राजस्थानी चाहे जन्मभूमि हो या फिर कर्मभूमि सदैव सेवा भावना को सर्वोपरि रखते हैं।प्रवासी राजस्थानियों ने व्यवसाय के साथ ही सामाजिक सरोकारों व अन्य महत्वपूर्ण कार्यो के माध्यम से राजस्थान का नाम देश-विदेश में रोशन किया है। मेहनत, अटूट परिश्रम और अपनी व्यापारिक प्रतिबद्धता के लिए पहचाने जाने वाले राजस्थानी ने मेहनत के बल पर इस मुकाम को हासिल किया है। करीब तीन सौ वर्ष पूर्व रोजगार के सिलसिले में राजस्थान से पलायन कर दक्षिण की भूमि पर पहुंचे राजस्थानी अपनी मेहनत एवं लगन से व्यवसाय की असीम उंचाइयों को प्राप्त किया हैं। विशेष बात यह है कि इतनी दूर होने के बाद भी वह अपनी सभ्यता व संस्कृति से आज भी जुड़े हुए हैं। “अपणायत” के लिए पहचाने जाने वाला राजस्थानी अपनी संस्कृति को जीवित रखे हुआ है। तमिलनाडु के विकास में राजस्थानयो का योगदान अतुलनीय है। बात चाहे रीति-रिवाज, परम्परा या संस्कृति की हो राजस्थान से दूर रहते हो राजस्थानी आज भी इनका अनुसरण कर तमिलनाडु में तमिल वासियों के समक्ष अद्भुत मिसाल पेश कर रहे हैं। अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम में इनका कोई सानी नहीं है,फिर चाहे देश हो या विदेश यह अपनी छाप छोड़ ही जाते हैं। अपनी मिलनसार संस्कृति के लिए पहचाने जाने वाले राजस्थानी ने आज अपने व्यवहार से सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक, व्यापारिक सहित हर क्षेत्र और हर समुदाय वर्ग के बीच में अपना स्थान बनाया है।
अपने मधुर लोक व्यवहार के माध्यम से जैसे दूध में शक्कर घुलती है, उस प्रकार चेन्नई के लोगों के बीच में घुल मिल गए। अपनी मीठी वाणी और सरल लोक व्यवहार के लिए जाने जाने वाले राजस्थानीयों ने संपूर्ण चेन्नई में एक अलग पहचान स्थापित की है।राजस्थानी समाज द्वारा चेन्नई में अपने औद्योगिक समूह एवं व्यापार प्रतिष्ठानों की स्थापना की गई एवं इसके माध्यम से असंख्य लोगों को रोजगार प्रदान किया गया। वर्तमान व्यापारिक परिदृश्य में भी देखा जाए तो राजस्थानी समूह चेन्नई में व्यापार में अपना अच्छा खासा एकाधिकार रखता है। राजस्थानीयों ने कभी भी अपने व्यापार के लिए स्थानीय व्यापारियों से प्रतिस्पर्धा नहीं की है।अगर देखा जाए तो आज चेन्नई में जितने भी राजस्थानी व्यापारी है,उनके यहां 1 प्रतिशत भी राजस्थानी कर्मचारी कार्यरत नहीं है। उन्होंने अधिकांश स्थानीय लोगों को ही रोजगार प्रदान किया है।
राजस्थानी धनार्जन के साथ पुण्यार्जन के कार्यों में भी अग्रणी रहा है। तमिलनाडु समाज द्वारा संचालित विभिन्न चिकित्सालय शैक्षणिक संस्थाओं व अन्य सामाजिक संस्थाओं में राजस्थानीयों ने मुक्त हस्त से दान दिया है। दान के साथ अपना अमूल्य समय निकाल कर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में अपना अच्छा खासा  योगदान भी दिया है। राजस्थानी समाज ने लगभग 100 से अधिक  शिक्षण संस्थानों कि स्थापना कि जिसमें इन्जिनियरिंग कालेज, आर्टस एन्ड साइन्स कालेज, फार्मेसी कालेज, सीबीएसई एवं आईबीएम स्कूल, मेट्रिक बोर्ड स्कूल, सरकारी सहायता प्राप्त राजकीय बोर्ड के स्कूलों कि स्थापना की हैं। इन शिक्षण संस्थानों में लगभग दो लाख विधार्थी पढ़कर लाभान्वित हो रहे हैं। राजस्थानी समाज द्वारा संचालित स्कूलों व शिक्षण संस्थानों में किसी प्रकार का कैपिटेशन फीस अथवा दान प्रवेश के समय विद्यार्थियों एवं उनके अभिभावकों से नहीं लिया जाता है। एक लाख की व्यापारिक आबादी वाला समाज दो लाख से अधिक बच्चों को परोक्ष रूप से एवं अन्य दो लाख बच्चों को शिक्षा मुहैया करवा रहा है।
इसके साथ ही बुक बैंक सुविधा के माध्यम से लगभग 20000 पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध करवाता रहा है।
पिछले चार-पांच दशकों में लगभग 4-5 दशकों से 5 लाख विद्यार्थी इस सुविधा से लाभान्वित हुए हैं। वस्त्र बैंक के माध्यम से स्कूली बच्चों को युनिफार्म एवं आर्थिक स्थिति से कमजोर वर्ग को नए एवम पुराने वस्त्र उपलब्ध करवाए जाते हैं। एक मुट्ठी अनाज योजना माध्यम से सामाजिक संस्थाओं को प्रति माह अन्न जैसे चावल, दाल गेहूँ आदि पहुँचाया जाता है। राजस्थानी समाज ने लगभग सौ भवन बनवाकर समाज को अर्पित किए है। इन भवनों में सामाजिक कार्य जैसे विवाह, सगाई, स्कूलों के कार्यक्रम होते है। इनका किराया काफी कम और वाजिब रखा गया है ताकि हमारा मानव समाज इसका लाभ उठा सकें।स्वास्थ्य सेवाओ में भी राजस्थानी अग्रणी है। लगभग 50 छोटे-बड़े चिकित्सालय संस्थान हैं जो समाज द्वारा बनाए गए हैं। नेत्र चिकित्सा, डायलिसिस,डायग्नोसिस जैसी सेवाओं के माध्यम से असंख्य लोग लाभान्वित हो रहे हैं। तमिलनाडु समाज द्वारा स्थापित रुग्नालय मे दान देकर संचालन में भागीदारी कर समाज कि सेवा में आगे है। राजस्थानी समाज व्यापार भी नैतिकता, प्रमाणिकता के साथ आगे है। राजनीतिक क्षेत्र में भी राजस्थानी समुदाय का अच्छा वर्चस्व है।लोकसभा, राज्यसभा सहित विभिन्न राजनीतिक पदों पर सुशोभित है एवं उनका प्रतिनिधित्व कर रहा है। इस प्रकार जैसा कि मैंने पूर्व में कहा था कि राजस्थानी समाज आज हर क्षेत्र में  मिल गया है। तमिलनाडु प्रदेश के एक अभिन्न अंग के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुका है।व्यापार के साथ सामाजिक सेवा व अन्य परोपकार के कार्यों में भी राजस्थानीयों ने समय-समय पर अपनी सफल भूमिका का निर्वाह किया है।
एन.सुगालचंद जैन

(लेखक प्रवासी राजस्थानी एवं विख्यात औद्योगिक सुगाल समूह के संस्थापक अध्यक्ष हैं।)

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