
Deepawli Special : दीवाली अंतर में उजास का पर्व डॉ. नेहा पारीक
हमारे देश में दीवाली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है जहाँ लगभग एक मास पहले से ही तैयारियाँ शुरु हो जाती हैं और लोग दीवाली के कामों में अति व्यस्त हो जाते हैं।इस पर्व को मनाने के पीछे बहुत सारी मान्यताएँ हैं लेकिन पर्व का उद्देश्य सिर्फ़ एक ही है और वह है-रोशनी और जगमगाहट के साथ उल्लास।यहाँ उल्लास का सही मायनों में अर्थ ये है कि हम अपने अंतर्मन से खुश रहे और ये खुशी सिर्फ़ अपने लिये कुछ करने से नहीं आती है,ये खुशी तब मिलती है जब हम दूसरों के लिये कुछ करें।दूसरों के जीवन से तिमिर हटा उजियारे का प्रयास हमें भी अवश्य प्रकाशित करता है और तभी इस पर्व को मनाना सार्थक होगा।
कार्तिक मास की अमावस्या को हम दीवाली मनाते हैं और भगवान राम जी के रावण दहन के बाद सीताजी को साथ लेकर लौटने व अच्छाई की जीत के रुप में उल्लास व हर्ष के साथ यह रोशनी का पर्व मनाया जाता है लेकिन इस दिन हमें इस पर्व के मायने समझ कर भगवान श्री राम के जीवन आचरण का अनुसरण करना होगा जो अनुशासनपरक जीवन यापन व अपने आदर्शों के कारण मर्यादा पुरषोत्तम कहलाते हैं।भगवान श्री राम से संयम व अनुशासन हम सभी को सीखना होगा जो सीताजी को लंका नगरी से सकुशल लाने के लिये सभी बाधाओं को पार कर गये और जिनका अवतार हम सभी को जीवन के बहुत सारे आदर्शों को आत्मसात करने की आवश्यकता की याद दिलाता है।
दीवाली का पर्व धनतेरस से ही शुरु हो जाता है और इसके साथ ही शुरु हो जाती है दीपदान की परम्परा।दीपक का उद्देश्य तो वैसे भी अंधकार को दूर करना होता है,एक छोटे से कमरे में दीपक को जलाते ही वहाँ प्रकाश फैल जाता है और ये पर्व तो है ही रोशनी का पर्व। इस पंच दिवसीय दीपोत्सव पर क्यूँ ना इस बार हम सभी एक छोटे से संकल्प के साथ मनाये?
इस दीवाली,हम धनतेरस के दिन जब दीया जलायें तो कोशिश करें कि अपने आसपास किसी मजबूर को ये त्यौंहार मजबूरी में ना मनाना पड़े और हम थोड़ी सी खुशियाँ उनके घर भी ले आयें।छोटी दीवाली जिसे हम रुप चतुर्दशी भी कहते हैं,उस दिन हम ये मन ही मन में ठान लें कि हमारे आसपास कोई भी महिला हिंसा और तिरस्कार का शिकार ना हो क्यूँकि आत्मसम्मान ही सोलह शृंगार का प्रथम सोपान है।दीवाली के दिन माँ लक्ष्मी की पूजा के साथ हम ये भी मन में संकल्प लें कि हम अपने आस-पास किसी भी बेसहाय को मजबूत बनाये,उसका जीवन स्तर सुधार पाये और उसे आत्मनिर्भर बना पाये ताकि सब के घर दीवाली आये ,ताकि सबके चेहरों पर रोशनी टिमटिमाये और सब उल्लास के साथ पर्व मनायें।
तो आईये,भगवान गोवर्धन के अन्नकूट का भोग हम सब साथ मिलकर लगायें और हमारे देश की सारी वसुधा को कुटुम्ब मानने की परम्परा को सही मायने में साकार करें और तब देखियेगा सभी बहनें अपने भाइयों के लिये भाई-दूज का पर्व उल्लास से मनाती नज़र आयेंगीं।
आओ ।
स्नेह की बाती बनाये
करुणा के दीप में घी लगाये
मानवता की अलख जगाये
उल्लास से दीपोत्सव मनाये।