हल्की सर्द चांदनी रात में मोमासर का ताल मैदान और उसमें बिखरती राजस्थानी लोक संस्कृति, मौका था मोमासर उत्सव की सांस्कृतिक संध्या का। शुक्रवार रात को मोमासर के ताल मैदान में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुवात वीरेंद्र सिंह किशनगढ़ के चरी नृत्य से हुई। इसके बाद नाथू राम का नगाड़ा वादन हुआ। कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण में से एक अंतराष्ट्रीय कालबेलिया नृत्यगना गुलाबो का कार्यक्रम रहा। जिसमे खास बात ये रही की गुलाबो ने अपनी पोती के साथ नृत्य करके वाहवाही बटोरी। नेहा झा के छाप तिलक सब छीनी रे तोसे नयना मिला के कथक नृत्य ने मन मोहा , पवन शर्मा का ढ़ोल थाली नृत्य रहे। सुनील परिहार और राधा का भवई नृत्य, अलवर के भपंग वादक जुम्मा मेवाती ने अपनी कला से दर्शकों तालियां बजाने से खुद को नहीं रोक पाए। पाबूसर की पार्टी का चंग वादन के अलावा राजस्थानी स्वर कोकिला सीमा मिश्रा के राजस्थानी गायन ने दर्शकों को आधी रात के बाद तक रोके रखा। राजेश भट्ट और उनकी पार्टी का फूलों की होली ने माहौल कृष्णमय बना दिया। कार्यक्रम का आयोजन जाजम फाउंडेशन द्वारा किया गया। इसके अलवा इस वर्ष राजस्थान पर्यटन विभाग ने भी वार्षिक मेल और उत्सव में मोमासर उत्सव को शामिल किया। कार्यक्रम आयोजन में सुरवी चेरिटेबल ट्रस्ट का खास सहयोग रहा। कार्यक्रम देर रात तक चला।
जाजम फाउंडेशन के फेस्टिवल डायरेक्टर और सीईओ विनोद जोशी ने बताया की लोक कलाएं जितनी भी हैं वे पैदा गांव में हुई है, लेकिन वैभव शहरों में है। फेस्टिवल सारे शहरों में होते हैं। हमारी कोशिश है की लोक कला को उसकी जमीन पर ही साकार किया जाए। यह सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं कर रहे, इसमें एक संदेश है। दूसरा, यहां जो भी आएगा वह पक्का संगीत प्रेमी ही होगा। गांव के लोगों को इस बहाने रोजगार भी मिलेगा।
इससे पहले सुबह सुबह 6 बजे से साढ़े 6 बजे तक संगीत के साथ योग से सुबह की शुरुवात हुई। इसके बाद सुबह 7 बजे से 8 बजे तक सुरेंद्र पटावरी के फार्म हॉउस पर भोर की भक्ति कार्यक्रम हुआ। दोपहर बाद जयचंद लाल पटवारी की हवेली पर संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
मोमासर उत्सव का आयोजन 2011 से किया जा रहा है पिछले दो साल कोरोना के कारण आयोजन नहीं हो पाया था। इस वजह से भी इस वर्ष खास उत्साह देखा गया।