05.05.2022, गुरुवार, सरदारशहर, चूरु (राजस्थान)
लगभग नौ वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद अपनी मातृभूमि सरदारशहर में लम्बा प्रवास करा रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी सरदारशहरवासियों को अपनी अमृतवाणी और मंगल आशीष से आच्छादित कर रहे हैं। जनकल्याण के समर्पित आचार्यश्री महाश्रमणजी लोगों का कल्याण करने के लिए प्रतिदिन प्रातः की मंगल बेला में तेरापंथ भवन से विहार करते हैं और सरदारशहर के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मंगल आशीष प्रदान करने पहुंच रहे हैं। महातपस्वी का महाश्रमयुक्त ऐसा अनुग्रह प्राप्त कर जन-जन भावविभोर नजर आ रहा है। लोग अपने घर, दुकान, मकान, हवेली, प्लाट आदि के आसपास आचार्यश्री के दर्शन कर मंगलपाठ श्रवण को लालायित नजर आ रहे हैं।
गुरुवार को तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें गुरु आचार्यश्री महाश्रमणजी नगर भ्रमण के उपरान्त युगप्रधान समवसरण में पधारे। जहां उपस्थित श्रद्धालुओं को मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं। चार कषाय और चार संज्ञाएं भी होती हैं। वृत्तियां अच्छी और बुरी भी हो सकती हैं। अनेक दुर्वृत्तियों में एक दुर्वृत्ति है-अहंकार। अहंकार किसी भी प्रकार का हो सकता है। आदमी के पास ज्ञान हो जाए तो वह ज्ञान का घमण्ड कर लेता है। वह समझता है कि अब उससे बड़ा ज्ञाता कोई नहीं है, लेकिन दुनिया में कोई उससे भी बड़ा ज्ञाता हो सकता है। ज्ञान का घमण्ड न हो और उसके प्रदर्शन का भी प्रयास न हो। ज्ञान होने पर भी मौन रहना और ज्ञान का सम्यक् आराधन करना ज्ञान की महत्ता है।
गृहस्थ को धन का घमण्ड भी हो सकता है। आदमी के पास पैसा ज्यादा आ गया तो उसका घमण्ड नहीं करना चाहिए। हो सकता है पैसा आज है और कल न रहे तो फिर पैसे का क्या घमंड करना। पैसा हो गया तो उसका दुरुपयोग न हो। आदमी को रूप को भी घमण्ड हो सकता है। कई आदमी को अच्छा रूप अच्छा सुडौल शरीर भी प्राप्त हो सकता है, किन्तु उसकी भी अनित्यता का चिंतन हो कि भला मेरा शरीर ऐसा कब तक रह सकता है। इसलिए रूप का भी घमंड नहीं करना चाहिए। किसी आदमी को सत्ता अथवा पद की प्राप्ति हो जाए तो उसका भसी अहंकार कर लेता है। आदमी को भाग्य से प्राप्त सत्ता के अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों द्वारा प्रदान की गई सत्ता कब तक बनी रह सकती है। सत्ता प्राप्त हो जाए तो उससे किसी का भला, किसी की पवित्र सेवा करने का प्रयास होना चाहिए। सत्ता के मद में किसी का बुरा करने का प्रयास नहीं होना चाहिए। किसी को कोई विशेष चीज प्राप्त हो जाए तो भी उसके अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। साधु हो अथवा गृहस्थ को अहंकार किसी के काम का नहीं है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने लोगों को संबोधित किया। साध्वी मीमांसाप्रभाजी ने अपने आराध्य के समक्ष श्रद्धाभिव्यक्ति दी। श्री छतरमल बुच्चा ने गीत का संगान किया। श्रीमती सुमन पींचा व श्री विमल श्यामसुखा ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त कर आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।