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श्रीडूंगरगढ़ अंचल में गोपाष्टमी मनाई गई, पढ़े गोपाष्टमी पर्व मनाए जाने की पौराणिक कथा

गुरुवार को ग्रामीण अंचल में गोपाष्टमी का पर्व मनाया गया। इस अवसर कहीं गौशालाओ में हवन पूजन हुए तो कहीं गायों को तिलक लगाकर पूजन किया गया।

मोमासर में गोपाष्टमी के अवसर पर गांव के बनिया जोहड़ में गाय माता को तिलक व पूजन करके खल गुड़ चाटा दिया गया।  इस शुभ अवसर पर विद्याधर जी शर्मा, मनफूल जी गोदारा, मनोज जी संचेती, भंवर लाल जी साहू, सुखराम गोदारा, जगदीश बेरा, पवन सेनी, आसाराम जाट, रामस्वरूप मेघवाल, गौरीशंकर यह ग्रामीण जन इस शुभ अवसर पर उपस्थित रहे।
आपको गोपाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

आज गोपास्टमी पर गांव आड़सर की भगवती गौ शाला में हवन ग्राम वासियो द्वारा किया गया

इस अवसर पर भगवती गौ शालाध्यक्ष किस्तुरा राम नैण, उपाध्यक्ष हनुमान मल जोशी, व्यवस्थापक रामदास स्वामी, कोषाध्यक्ष हनुमान प्रसाद सोनी, व सदस्य फुसनाथ नरेश सिंह, अजीत सिंह, गजू सिह, जयचन्द लाल जोशी, देवकरण स्वामी, नरेन्द्र आरी आदि ग्रामीण व महिलाये रही उपस्थित रहे।

श्री कृष्ण की गौ-चारण लीला की पौराणिक कथा:- 
भगवान ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान माता यशोदा से बोले- मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं….
मैय्या यशोदा बोली- अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें…
भगवान ने कहा- अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे…
मैय्या ने कहा- ठीक है बाबा से पूछ लेना। मैय्या के इतना कहते ही झट से भगवान नंद बाबा से पूछने पहुंच गए…
बाबा ने कहा- लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चराओ..
भगवान ने कहा- बाबा अब मैं बछड़े नहीं गाय ही चराऊंगा…
जब भगवान नहीं माने तब बाबा बोले- ठीक है लाल तुम पंडित जी को बुला लाओ- वह गौ चारण का मुहूर्त देख कर बता देंगे…
बाबा की बात सुनकर भगवान झट से पंडित जी के पास पहुंचे और बोले- पंडित जी, आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का मुहूर्त देखना है, आप आज ही का मुहूर्त बता देना मैं आपको बहुत सारा माखन दूंगा…
पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे तब नंद बाबा ने पूछा, पंडित जी के बात है ? आप बार-बार क्या गिन रहे हैं? पंडित जी बोले, क्या बताएं नंदबाबा जी केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है… पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान को गौ चारण की स्वीकृति दे दी।
भगवान जो समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहूर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरंभ किया और वह शुभ तिथि थी कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी, भगवान के गौ-चारण आरंभ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।
माता यशोदा ने अपने लल्ला के श्रृंगार किया और जैसे ही पैरों में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले मैय्या यदि मेरी गौएं जूतियां नहीं पहनती तो मैं कैसे पहन सकता हूं। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो… और भगवान जब तक वृंदावन में रहे, भगवान ने कभी पैरों में जूतियां नहीं पहनी। आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान की गौ-चारण लीला का आरंभ हुआ।
जब भगवान गौएं चराते हुए वृंदावन जाते तब उनके चरणों से वृंदावन की भूमि अत्यंत पावन हो जाती, वह वन गौओं के लिए हरी-भरी घास से युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पों की खान बन गया था।


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